रामनाथ की कुण्डलिया
(1) प्रातः जागो भोर में ,
लेके हरि का नाम ।
मातृभूमि वंदन करो ,
फिर पीछे सब काम ।।
फिर पीछे सब काम ,
करो तुम दुनियादारी ।
अपनाओ आहार ,
शुद्ध ताजे तरकारी ।।
कह ननकी कविराज ,
मांस ये मदिरा त्यागो ।
देर रात मत जाग ,
हमेशा प्रातः जागो ।।
(2) दीपक चाहे स्वर्ण का ,
या फिर मिट्टी कोय ।
उसकी कीमत जोत है ,
कितना उजाला होय ।।
कितना उजाला होय ,
अँधेरा रहता कितना ।
गरीब अमीर मित्र ,
. भले हो चाहे जितना ।।
कह ननकी कविराज,
बनो मत कोई दीमक ।
गर्वित हो संबंध ,
जलो बन के तुम दीपक ।।
~ रामनाथ साहू ” ननकी “
मुरलीडीह (छ. ग.)