मेरी पलकें नमाज़ी हुई

मेरी पलकें नमाज़ी हुई मेरी  पलकें  नमाज़ी  हुई  तेरे  दीदार  सेनूर बरसता है यूँ पाक़  तेरे रुख़सार से ।मुजस्सिम ग़ज़ल हो मेरी, उम्र की ताजमहल काबेयक़ीन  हुआ  नहीं  मैं  इश्क़  में  ऐतबार  से ।गोया  कि  तुम  मेरे हाथ  की लकीर हो या रबहाथ  होता  नहीं  तो  क्या  होता जाँ निसार से ।मसरूफ़ियत  में  भी  हमने  … Read more

सूरज का है आमंत्रण

सूरज का है आमंत्रण अंधेरों से बाहर आओ,सूरज का है आमंत्रण!बिखरो न यादों के संग,बढ़ो,लिए विश्वासी मन!अतीत के पन्नों पर नूतन,गीत गज़ल का करो सृजन!भीगी आंखों को धोकर,भर लो अब तुम नवजीवन!खुशियों को कर दो ‘अर्पण’,जियो औरों की ‘प्रेरणा’बन!! -डॉ. पुष्पा सिंह’प्रेरणा’

प्यार एक दिखावा

प्यार एक दिखावा न कसमें थीं न वादे थेफिर भी अच्छे रिश्ते थेआखों से बातें होती थींकुछ कहते थे न सुनते थेन आना था न जाना थाछत पर छुप कर मिलते थेवो अपनी छत हम अपनी छतबस दूर से देखा करते थेअब कसमें है और वादे हैऔर प्यार एक दिखावा हैआखों से कुछ कहना मुश्किलहोंठ … Read more

प्रीत की रीत

प्रीत की रीत चंद्र गगन में आधा हो ,प्रिय से मिलन का वादा हो ,बनता है इक गीत|निस दिन अंखियां बरसी हो ,पिया मिलन को तरसीं होंबढ़ती है तब प्रीत|जब सारी रस्में निभानीं हो,छोटी जिंदगानीं हो,सजती है तब  प्रीत की रीत|सपनें देखें संग संग में ,प्यार पले दोनों मन में ,बनते तब वे सच्चे मीत|दिल … Read more

तीन ताँका – प्रदीप कुमार दाश

तीन ताँका नेकी की राहछोड़ते नहीं पेड़खाये पत्थरपर देते ही रहेफल देर सबेर । जेब में छेदपहुँचाता है खेदसिक्के से ज्यादागिरते यहाँ रिश्तेअचरज ये भेद । डूबा सूरजडूबते वक्त दिखारक्तिम नभलौट रहे हैं नीड़अनुशासित खग ।        ~ ● ~ □ प्रदीप कुमार दाश “दीपक”