यह पतन का पाशविक उत्थान /रेखराम साहू

     यह पतन का पाशविक उत्थान है

शीर्ष से आहत हुआ सोपान है,
भूमिका का घोर यह अपमान है।

झुर्रियों का जाल है जो भाल पर,
काल से संघर्ष का आख्यान है।

पारितोषिक में अनाथालय उसे,
उम्र भर जिसने किया बलिदान है।

युद्ध का ज्वर,ज्वार है वर्चस्व का,
यह पतन का पाशविक उत्थान है।

बाढ़ आई थी यहाँ आतंक की,
प्रेम की नगरी पड़ी वीरान है।

स्नेह की सरिता नहीं गाती यहाँ,
हो गया जैसे मरुस्थल ज्ञान है।

तथ्य निष्ठा का नमक की दृष्टि से,
कापुरुष से श्रेष्ठतर तो श्वान है।

है उलूकों को तिमिर से मित्रता,
शत्रु तो उनके लिए दिनमान है।

आयु रेखा,प्रेम है संबंध की,
यह हृदय से प्राण का विज्ञान है।

*रेखराम साहू*