प्रिय का अनुपम श्रृंगार

प्रिय का अनुपम श्रृंगार

चंदन, कालीयक,
अंगरू, सुगंध मिल,
क्या खूब बना है अंगराग।
स्नान के जल पुष्प से सुरभित,
लो कर लिए तुमने जलविहार,
देख मेरा मन बोल उठा अब,
प्रिय का अनुपम श्रृंगार ।।

केसर,कमल,मंदार,शिरीष सब,
शरीर की सज्जा बढ़ाती है,
मुंह सुगंधित करने को तूम,
तांबुल, पान जो खाती है,
कानों में शोभित है झुमके,
शोभ रहा नौलखा हार,
देख मेरा मन बोल उठा अब,
प्रिय का अनुपम श्रृंगार ।।

घाघरा,चोली पहन प्रिय,
तुम कितनी अच्छी लगती ,
माथे पे है बिंदिया प्यारी,
माँग बीच सिन्दूर भरी,
आंख में काजल लगाकर जब,
तुम पहन रही थी मोतीहार,
देख मेरा मन बोल उठा अब,
प्रिय का अनुपम श्रृंगार ।।

हथेली में क्या खूब जो तुमने,
अद्भुत मेहँदी रचाई हो,
वणियो,अलका,और जूड़ो से प्यारी
बालों को सजाई हो,
श्वेत चंदन का लेप लगा जब,
गा रही थी मल्हार,
देख मेरा मन बोल उठा अब,
प्रिय का अनुपम श्रंगार ।।

बीच ठोढ़ी पर तिल भर काजल,
हारों का अद्भुत झंकार,
प्रियतम की सौन्दर्य हैं प्यारा,
देख रहा सारा संसार।
ख्वाब बदला हकीकत में अब,
साथ प्रिय का मिल रहा प्यार।
देख मेरा मन बोल उठा अब,
प्रिय का अनुपम श्रृंगार ।।

बांके बिहारी बरबीगहीया

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *