रास नहीं क्यों आता है
शौचालय का अभियान चला,वंचित घर रह जाता है।
बाहर जाते बच्चे उनके,रास नहीं क्यों आता है
जाति भेद को करते रहते,जलते रहते बढ़ने से
टाँग अड़ाते फिरते रहते,रोका करते पढ़ने से
चाँद पर जा रही है दुनिया,बैरी के मन काले हैं
खुले में शौच करने से ही,हत्या कर डाले हैं
रंजिश रखते हैं वो दुश्मन,शौचालय कैसे होवे
जान गई है जिन बच्चों की,पालक उनके ही रोवे
सदियों से ही सुनते रहते,छुआ वाली कहानी को
पी नहीं पाते वो नागरिक,हैण्डपम्प के पानी को
शर्म नहीं है उन लोगो को,वीडियो बना डाले हैं
कैसे कैसे हैं आरोपी,दिल में नफरत पाले हैं
मध्यप्रदेश की भावखेड़ी,जात पात को पाते हैं
मारे जाते भारत में,हम सब एक बताते हैं
सख्त से सख्त सजा मिले अब,हत्या करने वालो को
पता चले कानून बना है,छुआछूत के ख्यालों को
राजकिशोर धिरही
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्य
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