वृक्ष कोई मत काटे

वृक्ष कोई मत काटे

काटे जब हम पेड़ को,कैसे पावे छाँव।
कब्र दिखे अपनी धरा,उजड़े उजड़े गाँव।।
उजड़े उजड़े गाँव,दूर हरियाली भागे।
पर्यावरण खराब,देख मानव कब जागे।।
उपवन को मत काट,कमी को हम मिल पाटे।
ऑक्सीजन से जान,वृक्ष कोई मत काटे।।

देते ठंडक जो हमे,करते औषधि दान।
आम बेल फल सेब खा,भावे खूब बगान।।
भावे खूब बगान,रबर भी हमको मिलता।
चले हवा जब जोर,लचक कर तरु है हिलता।।
पेड़ो से है साँस,जीव सब के सब लेते
दफना कर फल बीज,वादियाँ फिर रख देते।।

पानी बरसे मेघ से,नीम आम हो मेड़।
स्रोत मिले जब नीर का,लगे भूमि में पेड़।।
लगे भूमि में पेड़,धार पानी बढ़ जाए।
पानी बोतल दाम,समस्या दूर हटाए।।
शादी षष्ठी होय,वृक्ष रोपे सब ज्ञानी।
संकट काहे आय,बचा ले मिलकर पानी।।

राजकिशोर धिरही
तिलई,जांजगीर
छत्तीसगढ़
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

You might also like