प्रकृति मातृ नमन तुम्हें

प्रकृति मातृ नमन तुम्हें

हे! जगत जननी,
             हे! भू वर्णी….
हे! आदि-अनंत,
            हे! जीव धर्णी।
हे! प्रकृति मातृ नमन तुम्हें
हे! थलाकृति…हे! जलाकृति,
हे! पाताल करणी,हे! नभ गढ़णी।
हे! विशाल पर्वत,हे! हिमाकरणी,
हे! मातृ जीव प्रवाह वायु भरणी।
हे! प्रकृति मातृ नमन तुम्हे
तू धानी है,वरदानी है..
तुझे ही जुड़े सब प्राणी है।
तू वर्षा है,तू ग्रीष्म…है
और तू शीतल शीत है…..!
तू ही माँ प्राण-दायनी है।
हे ! प्रकृति मातृ नमन तुम्हे
तू ज्वाल है, तू उबाल है…
समंदर की लहरों का उछाल है।
तू हरितमा,तू स्वेतमा…
तू शांत है, तू ही भूचाल है…!
हे! उर्वरा, हे! सरगम स्वरा,
झरने की झर-झर..
हिम के स्वेत रंग निर्झर..
मुक्त पवन की सर-सर।
हे ! प्रकृति मातृ नमन तुम्हे
हे! खेत खलिहान,मरूथल,
हे! रेतिली रेंगिस्थान……!
हे! पंक तू, हे! उत्थान तू…
नित करती माँ नव निर्माण..!
हे! महाद्वीप, हे!न्युन शिप,
है पहान तू, है निशान तू ।
हे! पृथ्वी,हे! प्रकृति,हे! शील,
परमाणु की पहचान तू।
हे ! प्रकृति मातृ नमन तुम्हे
नमन करता आपको..यादव,
हे! देवी तुम ही मेरा आधार…हो।
जीवन में,हर स्पर्श में, स्वांस में,
पुक्कू कहता सब तुम ही सार..हो।
हे प्रकृति मातृ नमन तुम्हे
               रचना-
   _पुखराज यादव”पुक्कू”
          9977330179

कविता बहार

"कविता बहार" हिंदी कविता का लिखित संग्रह [ Collection of Hindi poems] है। जिसे भावी पीढ़ियों के लिए अमूल्य निधि के रूप में संजोया जा रहा है। कवियों के नाम, प्रतिष्ठा बनाये रखने के लिए कविता बहार प्रतिबद्ध है।

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