रजत विषय पर दोहा
रजत वर्ण की चाँदनी,फैल रही चहुँओर।
चमक रहा है चंद्रमा, लगे रात भी भोर।।
रात अमावस बाद ही , होता पूर्ण उजास।
दुग्ध धवल सी पूर्णिमा,करती रजत प्रकाश।।
कर्म सभी ऐसा करो , हो जाए जो खास।
रजत पट्टिका में पढ़े,स्वर्णिम सा इतिहास।।
रजत आब वृषभानुजा,श्याम वर्ण के श्याम।
दर्शन दोनो के मिले,मिले नयन विश्राम।।
भूषण रजत व स्वर्ण के ,धारे नारी देह।
सजती है पति के लिए,करती उसको नेह।।
©डॉ एन के सेठी