शीत ऋतु पर ताँका
{01}
ऋतु हेमंत
नहला गई ओस
धरा का मन
तन बदन गीले
हाड़ों में ठिठुरन ।
{02}
लाए हेमंत
दांतों में किटकिट
हाड़ों में कंप
सर्द सजी सुबह
कोहरा भरी शाम ।
{03}
हेमंत साथ
किटकिटाए दाँत
झुग्गी में रात
ढूँढ रहे अलाव
काँपते हुए हाथ ।
□ प्रदीप कुमार दाश “दीपक”