बैताली छंद के कविता
काम क्रोध , लोभ छोड़ दे ।
राम संग , प्रीत जोड़ दे ।।
एक राम , सत्य है यहाँ ।
हो अचेत , सो रहा कहाँ ।।
स्वार्थ हेतु , प्रीत को रचे ।
खो प्रपंच , ग्यान से बचे ।।
चार रात , चाँदनी सजे ।
अंत छोड़ , आग में तजे ।।
हाड़ मांस , से भरी हुई ।
पीब कीच , से सनी हुई ।।
ग्यान बोध , मूल का नहीं ।
डार पात , देखता कहीं ।।
रोम रोम , राम बोल रे ।
लोक लाज , बंध खोल रे ।।
भेद जान , शास्त्र संग में ।
राम ढ़ूँढ़ , मूढ़ अंग में ।।
छोड़ आज , है विकार जो ।
शुद्ध भाव , ला विचार जो ।।
ले विराम , राम खोज के ।
तोड़ फंद , रोज रोज के ।।
रामनाथ साहू ” ननकी “,मुरलीडीह