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सुधारू बुधारू के गोठ -मनीभाई नवरत्न

सुधारू बुधारू के गोठ (छत्तीसगढ़ी व्यंग्य)

बुधारू ह गांव के गौंटिया के दमाद के भई के बिहाव म जाय बर फटफटी ल पोछत राहे।सुधारू ओही बखत आ धमकिस।
अऊ बुधारू ल कहिस -“कइसे मितान!तोर फूफू सास के नोनी ल अमराय बर (कन्या विदाई ) जात हस का जी।”
बुधारू कहिस -“लगन के तारीक ह एके ठन हे मितान ।फुफा के समधी ह सादा व्यवस्था करे हे अऊ गौंटिया के दमाद ह आज रंगीन व्यवस्था करे हे।अऊ बिहाव म मोला रोना-धोना बिलकुल पसंद नईये।तिकर पाय आज रंगीन प्रोग्राम बन  गय हावे “
बुधारू के  गोठ सुनके सुधारू ह असल बात ल समझ गय रहिस कि आजकल रिश्ता-नता के अहमियत ले जादा बिहाव म खानापीना के व्यवस्था म वजन रईथे ।


(लिखैय्या :- मनी भाई )

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