सुधारू बुधारू के गोठ -मनीभाई नवरत्न

सुधारू बुधारू के गोठ (छत्तीसगढ़ी व्यंग्य)

बुधारू ह गांव के गौंटिया के दमाद के भई के बिहाव म जाय बर फटफटी ल पोछत राहे।सुधारू ओही बखत आ धमकिस।
अऊ बुधारू ल कहिस -“कइसे मितान!तोर फूफू सास के नोनी ल अमराय बर (कन्या विदाई ) जात हस का जी।”
बुधारू कहिस -“लगन के तारीक ह एके ठन हे मितान ।फुफा के समधी ह सादा व्यवस्था करे हे अऊ गौंटिया के दमाद ह आज रंगीन व्यवस्था करे हे।अऊ बिहाव म मोला रोना-धोना बिलकुल पसंद नईये।तिकर पाय आज रंगीन प्रोग्राम बन  गय हावे “
बुधारू के  गोठ सुनके सुधारू ह असल बात ल समझ गय रहिस कि आजकल रिश्ता-नता के अहमियत ले जादा बिहाव म खानापीना के व्यवस्था म वजन रईथे ।


(लिखैय्या :- मनी भाई )

मनीभाई नवरत्न

यह काव्य रचना छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के बसना ब्लाक क्षेत्र के मनीभाई नवरत्न द्वारा रचित है। अभी आप कई ब्लॉग पर लेखन कर रहे हैं। आप कविता बहार के संस्थापक और संचालक भी है । अभी आप कविता बहार पब्लिकेशन में संपादन और पृष्ठीय साजसज्जा का दायित्व भी निभा रहे हैं । हाइकु मञ्जूषा, हाइकु की सुगंध ,छत्तीसगढ़ सम्पूर्ण दर्शन , चारू चिन्मय चोका आदि पुस्तकों में रचना प्रकाशित हो चुकी हैं।

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