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  • संत गाडगे पर कविता

    संत गाडगे को जाना है
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    दीन दुखियों को गले लगाकर,
    जिसने अपना माना है ।
    मानव सेवा बन मसीहा ,
    संत गाडगे को जाना है ।

    फूले बुद्ध कबीर जी का,
    ज्ञान सदा जो पढ़ता है ।
    निर्गुण भक्ति की धारा में ,
    नित आगे ही बढ़ता है ।
    अपने त्याग तपस्या के बल,
    संत गाडगे जी कनक बने।
    मानवता का धर्म निभाकर,
    हम बहुजनों के जनक बने।
    परम ज्ञान के स्वामी को ,
    सबको आगे लाना है।
    मानव सेवा बन मसीहा ,
    संत गाडगे को जाना है ।

    नहीं उपजता जिनके मन में,
    लोभ कपट अनुराग ।
    सांसारिक सुख को वही करते,
    उर अंतस से त्याग ।
    मंदिर में न ईश्वर होता,
    खुदा न रहता मस्जिद में।
    गिरजाघर में गॉड  न होता,
    गुरुनानक न गुरुद्वारा में।
    अंतर्मन में बसा सभी के,
    वही असली भगवाना है।
    मानव सेवा बन मसीहा ,
    संत गाडगे को जाना है ।
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    डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”