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  • पर्यावरण हमारा /आचार्य मायाराम ‘पतंग’

    पर्यावरण हमारा /आचार्य मायाराम ‘पतंग’

    पर्यावरण हमारा /आचार्य मायाराम ‘पतंग’

    पर्यावरण हमारा /आचार्य मायाराम 'पतंग'

    हमको जीवन देता है यह पर्यावरण हमारा ।

    इसे नष्ट करने से होगा जीवन नष्ट हमारा ॥

    अज्ञानी हम ज्ञान राशि,

    औरों को बाँट रहे हैं।

    उसी डाल पर बैठ उसे ही,

    जड़ से काट रहे हैं।

    माँ प्रकृति ने हमको पाला,

    अपना दूध पिलाकर ।

    हम उसको ही पीड़ित करते,

    तिल-तिल जला जलाकर ।

    सोचो फिर कैसे हो पाएगा कल्याण हमारा ?

    हमको जीवन देता है यह पर्यावरण हमारा

    पेट फाड़कर पर्वत का हम,

    पत्थर बजरी लाते।

    काट-काटकर जंगल,

    नग को नंगा करते जाते ।

    नंगे हैं जो पर्वत बोलो

    किसकी शर्म करेंगे ?

    निश्चित भोगेंगे वैसे ही,

    जैस कर्म करेंगे।

    कुदरत को अपमानित करके, क्या सम्मान हमारा ?

    हमको जीवन देता है यह पर्यावरण हमारा ॥

    धरती माँ ने बहुत फूल फल,

    देकर हमको पाला ।

    रस बरसाते सूरज चंदा,

    देकर हमें उजाला ।

    पवन प्राण बन स्वयं हमारी

    साँसों में बसती है।

    वर्षा ही जीवन धारण कर,

    फसलों में हँसती है।

    मानवता को मिला निरंतर सुखकर सत्य सहारा।

    हमको जीवन देता है यह पर्यावरण हमारा ॥

    रखिए इसका ध्यान जीव को,

    चाहो अगर बचाना।

    जितने ज्यादा लगा सको

    धरती पर पेड़ लगाना ।

    सर सरिता का जल जीवन की

    प्रतिपल प्यास बुझाता ।

    प्रकृति प्राणियों का सचमुच है,

    माँ-बेटे का नाता ।

    समझो संतानों के नाते क्या कर्त्तव्य हमारा।

    हमको जीवन देता है यह पर्यावरण हमारा ॥

  • 8 मार्च अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर कविता

    8 मार्च अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर कविता

    1857 में 8 मार्च को न्यूयॉर्क में कपड़ा मिलों की कामकाजी महिलाओं ने अधिक वेतन व काम के घण्टे 15-16 से घटाकर 10 घण्टे करने की मांग को लेकर प्रदर्शन किया। चुकीं यह विश्व की महिलाओं का यह प्रथम प्रदर्शन था, इस लिए इस दिन को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रुक में मनाया जाता है उनकी एकता के लिए.

    परन्तु उस समय के श्रम संघों ने भी नापसन्द किया। परिणामस्वरूप यह आन्दोलन असफल रहा, किन्तु यह आन्दोलन पुलिस द्वारा कुचलने के बावजूद महिला संघर्ष के इतिहास में अमिट छाप छोड़ गया।

    आज नारी का स्वत:

    आचार्य मायाराम ‘पतंग’

    आज नारी का स्वतः सम्मान जागा है।

    अस्मिता का आज फिर अभिमान जागा है।

    अब निरक्षरता ने होगी शीश पर ढोनी।

    हर कदम पर एक आशा की फसल बोनी ।

    कर्म के पथ में अथक संधान जागा है।

    अस्मिता का आज फिर अभिमान जागा है ॥

    सजग होती शक्ति से संसार नत होगा।

    कर्तव्य के उत्थान से अधिकार नत होगा ॥

    त्याग की झंकार से बलिदान जागा है।

    अस्मिता का आज फिर अभिमान जागा है।

    बातियाँ ये नित्य निज तल जलाएँगी।

    तम हरेंगी सत्यपथ वो जगमगाएँगी ॥

    ज्योति में रवि-रश्मि का आह्वान जागा है

    अस्मिता का आज फिर अभिमान जागा है।

    किरण को कोई कहीं क्या रोग पाया है ?

    उसे ज्ञानाभाव ने बंदी बनाया है ।

    विस्मरण में आत्मबल का ज्ञान जागा है।

    अस्मिता का आज फिर अभिमान जागा है ।