गंगा की पुकार

गंगा की पुकार गंगा घलो रोवत हे,देख पापी अत्याचार।रिस्तेदारी नइये ठिकाना,बढ़गे ब्यभीचार।। कलयुग ऊपर दोष मढत हे,खुद करम में नहीं ठिकाना।कइसे करही का करही एमनओ नरक बर करही रवाना।। स्वार्थ के डगर अब भारी होगेअनर्थ होत हे प्यार।प्यार अंदर अब नफरत हवयबढे हवय अत्याचार।। प्यार नाम अब धोखा हवे सुन लौ जी संत समाज।हृदय काकरो … Read more