Tag: #अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर०अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम” के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • अनिल कुमार गुप्ता अंजुम की कवितायेँ

    यहाँ पर अनिल कुमार गुप्ता अंजुम की कवितायेँ दिए जा रहे हैं :-

    मुख्य बिन्दु :-

    मैंने उसे – कविता

    मैंने उसे
    किसी का सहारा बनते देखा
    मुझे अच्छा लगा

    शायद आपको भी ……….

    मैंने उसे किसी की भूख
    मिटाते देखा
    मुझे अच्छा लगा

    शायद आपको भी ……….

    मैंने उसे किसी की राह के
    कांटे उठाते देखा
    मुझे अच्छा लगा

    शायद आपको भी ……….

    मैंने उसे किसी का गम
    कम करते देखा
    मैं बहुत खुश हुआ

    शायद आपको भी ……….

    मैंने उसे किसी की
    राह के रोड़े उठाते देखा
    मुझे अच्छा लगा

    शायद आपको भी ……….

    मासूम बचपन को
    मैंने उसे मुस्कान बांटते देखा
    मुझे अच्छा लगा

    शायद आपको भी ……….

    मैंने उसे बागों में
    फूल खिलाते देखा
    मुझे अच्छा लगा

    शायद आपको भी ……….

    जीवन को मूल्यों के साथ
    जीने को प्रोत्साहित करता वह
    मुझे अच्छा लगा

    शायद आपको भी ……….

    पालने के मासूम से
    बचपन के साथ खेलता
    उसे खुदा का दर्ज़ा देता वह
    मुझे बहुत अच्छा लगा

    शायद आपको भी ……….

    गिरतों को उठाता
    मानवता को पुरस्कृत करता
    मानव मूल्यों को संजोता
    संस्कारों को बचपन में पिरोता
    हर – पल जो हमारे साथ होता
    जो किस्सा ए जिंदगी होता
    वह मुझे बहुत अच्छा लगा

    शायद आपको भी ……….
    शायद आपको भी ……….
    शायद आपको भी ……….

    – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    मै बिन पंखों के – कविता

    मै बिन पंखों के
    उड़ना चाहता हूँ
    नै आसमां से
    दुनिया देखना चाहता हूँ
    सुना है आसमां से
    दुनिया सुन्दर दिखती है
    खुली आँखों से
    ये नज़ारे लेना चाहता हूँ
    मै बिन पंखों के
    उड़ना चाहता हूँ
    आसमां में तारे हैं
    बहुत से
    मै पास जाकर
    इनको छूना चाहता हूँ
    सुना है चाँद भी
    दिखता है निराला
    मै चाँद पर जाकर
    उसे निहारना चाहता हूँ
    मै बिन पंखों के
    उड़ना चाहता हूँ
    फूलों की खुशबू ने
    किया है मुझको कायल
    मै भंवरा बन फूलों का
    रस लेना चाहता हूँ
    किस्से कहानियों से
    मेरा नाता पुराना
    मै परी की
    कहानी सुनना चाहता हूँ
    मै बिन पंखों के
    उड़ना चाहता हूँ
    मै कोयल बन
    मधुर गीत गाना चाहता हूँ
    मै कवि बन जीवन में
    रौशनी लाना चाहता हूँ
    मै शिक्षक बन
    ज्ञान विस्तार करना चाहता हूँ
    मै बिन पंखों के
    उड़ना चाहता हूँ
    समर्पण की भावना ने
    किया मुझको प्रभावित
    मै पृथ्वी की तरह
    महान बनना चाहता हूँ
    देश भक्ति का जज्बा भी
    मुझमे कम नहीं है
    मै भगत,सुखदेव
    और बिस्मिल बनना चाहता हूँ
    मै बिन पंखों के
    उड़ना चाहता हूँ
    दिखने में छोटा साथ बाती
    पर अँधेरे पर है बस उसका
    मै अपनी जिंदगी को
    दीपों की माला में पिरोना चाहता हूँ
    मै दीप बन सबकी जिंदगी को
    रोशन करना चाहता हूँ
    मै बिन पंखों के
    उड़ना चाहता हूँ
    मै आसमां से
    दुनिया देखना चाहता हूँ

    – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    उतरो उस धरा पर – कविता

    उतरो उस धरा पर
    जहां चाँद का बसेरा हो
    खिलो फूल बनकर
    जहां खुशबुओं का डेरा हो
    चमको कुछ इस तरह
    जिस तरह तारे चमकें
    उतरो उस धरा पर
    जहां चाँद का बसेरा हो

    न्योछावर उस धरा पर
    जहां शहीदों का फेरा हो
    उतरो उस धरा पर
    जहां सत्कर्म का निवास हो
    खिलो उस बाग में
    जहां खुशबुओं की आस हो
    उतरो उस धरा पर
    जहां चाँद का बसेरा हो

    बनाओ आदर्शों को सीढ़ी
    खिलाओ जीवन पुष्प
    राह अग्रसर हो उस ओर
    जहां मूल्यों का सवेरा हो
    उतरो उस धरा पर
    जहां चाँद का बसेरा हो

    खिले बचपन खिले यौवन
    संस्कारों का ऐसा मेला हो
    संस्कृति पुष्पित हो गली- गली
    ऐसा हर घर में मेला हो
    उतरो उस धरा पर
    जहां चाँद का बसेरा हो

    प्रकृति का ऐसा यौवन हो
    हरियाली सबका जीवन हो
    सुनामी, भूकंप, बाढ़ से बचे रहें हम
    आओ प्रकृति का श्रृंगार करें हम
    उतरो उस धरा पर
    जहां चाँद का बसेरा हो

    – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    चलने दो जितनी चले आंधियां – कविता

    चलने दो जितनी चले आंधियां
    आँधियों से डरना क्या
    मुस्कराकर ठोकर मारो
    वीरों मन में भय कैसा

    चलने दो जितनी चले आंधियां

    तूफानों की चाल जो रोके
    पल में नदियों के रथ रोके
    वीर धरा के पवन पुतले

    चलने दो जितनी चले आंधियां

    पाल मन में वीरता को
    झपटे दुश्मन पर बाज सा
    करता आसान राहें अपनी
    तुझे हारने का दर कैसा

    चलने दो जितनी चले आंधियां

    भारत माँ के पूत हो प्यारे
    लगते जग में अजब निराले
    करते आसाँ मुश्किल सारी
    तुझे पतन का भय कैसा

    चलने दो जितनी चले आंधियां

    पड़े पाँव दुश्मन की छाती पर
    चीरे सीना पल भर में
    थर – थर काँपे दुश्मन
    या हो कारगिल , या हो सियाचिन

    चलने दो जितनी चले आंधियां

    पायी है मंजिल तूने प्रयास से
    पस्त किये दुश्मन के हौसले
    फ़हराया तिरंगा खूब शान से
    नमन तुझे ए भारत वीर

    चलने दो जितनी चले आंधियां

    – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    दीदार का तेरे इन्तजार है मुझको- ग़ज़ल

    तू यहीं कहीं आसपास है, ये एतबार है मुझको
    मै तुझको ढूंढूं , ऐसी जुर्रत मै कर नहीं सकता
    तू हर एक सांस में बसता है , ये एतबार है मुझको

    मक्का हो या मदीना, जहां में सब जगह
    तेरे नाम का सिक्का है, ये एतबार है मुझको
    दीदार का तेरे, एतबार है मुझको

    किस्सा-ए-करम तेरा, बयान मै क्या करूं
    हर शै में तेरा नाम, हर जुबान पे तेरा नाम
    खुशबू तेरा एहसास, ये एतबार है मुझको

    पलती है जिंदगी, एक तेरी कायनात में
    खिलता है तू फूल बनकर, ये एतबार है मुझको
    दीदार का तेरे, एतबार है मुझको

    मेरे पिया तेरा करम, तेरी इनायत हो
    जियूं तो तेरा नाम, मेरे साथ-साथ हो
    मेरा सारा दर्द तेरा, ये एहसास है मुझको

    तेरा आशियाना हो, आशियाँ मेरा
    तू रहता है साथ मेरे, ये एतबार है मुझको
    दीदार का तेरे, एतबार है मुझको

    जीता हूँ तेरे दम से, जीता हूँ तेरे करम से
    हर एक आह मेरी, करती परेशां तुझको
    तू हर दुःख में साथ मेरे, ये एतबार है मुझको

    कर दे तू राह आशां, कर दे तू पार मुझको
    मरूं तो जुबान पे तू हो, ये एतबार है मुझको
    दीदार का तेरे, एतबार है मुझको

    – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    अखिल विश्व तेरा गगन हो – कविता

    अखिल विश्व तेरा गगन हो
    रत्नाकर सा तेरा जीवन हो
    नरेश सा तू राज करना
    हर दिलों में वास करना

    अखिल विश्व तेरा गगन हो
    रत्नाकर सा तेरा जीवन हो

    कोविद सा तू पावन हो
    धरा सा तू अचल हो
    कांति महके हर दिशा में
    सम्पूर्ण धरा तेरा आँचल हो

    अखिल विश्व तेरा गगन हो
    रत्नाकर सा तेरा जीवन हो

    संघर्ष तेरा कर्मक्षेत्र हो
    निर्वाण तेरा अंतिम सत्य हो
    सहचर प्रकृति तेरी हो
    सरस्वती का तू वन्दनीय हो

    अखिल विश्व तेरा गगन हो
    रत्नाकर सा तेरा जीवन हो

    महक तेरी चहुँओर फैले
    वैरागी सा तेरा जीवन हो
    महेश सा रौद्र हो तुझमे
    नारद सा तू चपल हो

    अखिल विश्व तेरा गगन हो
    रत्नाकर सा तेरा जीवन हो

    प्रज्ञा तेरी सहचर बने
    पर्वत सा तू अटल हो
    नैसर्गिक ऊर्जा हो तुझमे
    गजानन वरद हस्त हो तुझ पर

    अद्वितीय मनाव बने तू
    जगत में तू अमर हो
    अखिल विश्व तेरा गगन हो
    रत्नाकर सा तेरा जीवन हो

    – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    तिमिर पथगामी तुम बनो ना- कविता

    तिमिर पथगामी तुम बनो ना
    कानन जीवन तुम भटको ना

    अहंकार पथ तुम चरण धरो ना
    लालसा में तुम उलझो ना

    तिमिर पथगामी तुम बनो ना
    कानन जीवन तुम भटको ना

    अंधकार में तुम झांको ना
    अनल मार्ग तुम धारो ना

    निशिचर बन तुम जियो ना
    कुटिल विचार तुम मन धारो ना

    तिमिर पथगामी तुम बनो ना
    कानन जीवन तुम भटको ना

    कल्पवृक्ष बन जीवन जीना
    शशांक सा तुम शीतल होना

    अमृत सी तुम वाणी रखना
    अम्बर सा विशाल बनो ना

    तिमिर पथगामी तुम बनो ना
    कानन जीवन तुम भटको ना

    किंचिं सा भी तुम डरो ना
    घबराहट को मन में पालो ना

    क्लेश वेदना सब त्यागो तुम
    पुष्कर सा तुम पावन हो ना

    तिमिर पथगामी तुम बनो ना
    कानन जीवन तुम भटको ना

    द्रव्य वासना तुम उलझो ना
    दुर्जन सा हठ तुम पालो ना

    सुरसरि सा तुम्हारा जीवन हो ना
    पावन निर्मल मार्ग बनो तुम

    चीर तिमिर प्रकाश बनो तुम
    अलंकार उत्कर्ष वरो तुम

    तिमिर पथगामी तुम बनो ना
    कानन जीवन तुम भटको ना

    – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    चरण कमल तेरे बलि – बलि जाऊं – कविता

    चरण कमल तेरे बलि – बलि जाऊं
    मुझको पार लगा देना
    गिरने लगूं तो मेरे मालिक
    बाहों में अपनी उठा लेना

    चरण कमल तेरे बलि – बलि जाऊं

    पुष्पक वाहन हों मेरे साथी
    पुष्प भी हों मेरे सहवासी
    तन को मेरे उजले मन से
    जीवन सार बता देना

    चरण कमल तेरे बलि – बलि जाऊं

    ध्यान तेरा हर पहर हो मालिक
    मन मंदिर में बस जाना
    पुण्य पुष्प बन जियूं धरा पर
    मुझको तुझमे समां लेना

    चरण कमल तेरे बलि – बलि जाऊं

    पुष्प समर्पित चरणों में तेरे
    गीता सार बता देना
    पा लूं तुझको इस जीवन में
    ऐसा मन्त्र बता देना

    चरण कमल तेरे बलि – बलि जाऊं

    पुण्य कर्म विकसित कर मालिक
    चरण कमल श्रृंगार धरो तुम
    खिला सकूं आदर्श धरा पर
    पूर्ण जीव उद्धार करो तुम

    चरण कमल तेरे बलि – बलि जाऊं
    चरण कमल तेरे बलि – बलि जाऊं
    चरण कमल तेरे बलि – बलि जाऊं

    – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    विजय रथ उसको मिलेगा – कविता

    विजय रथ उसको मिलेगा
    धर्म पथ जो चलेगा
    विजय ध्वज उसको मिलेगा
    विजय रथ उसको मिलेगा

    विजय रथ उसको मिलेगा
    धर्म पथ जो चलेगा

    राष्ट्र्पथ पर जो चलेगा
    जीत केवल उसकी ही होगी
    युद्ध पथ पर जो बढ़ेगा
    विजय रथ उसको मिलेगा

    विजय रथ उसको मिलेगा
    धर्म पथ जो चलेगा

    जयमाल उसको मिलेगी
    संघर्षपथ अग्रसर जो होगा
    जयघोष उसकी ही होगी
    जो विजयपताका थाम लेगा
    विजय रथ उसको मिलेगा

    विजय रथ उसको मिलेगा
    धर्म पथ जो चलेगा

    जयघोषणा उसकी होगी
    जयपूर्ण कर्म जो करेगा
    विजय स्तंभ उसका बनेगा
    गौरवपूर्ण जिसका भूतकाल होगा

    विजय रथ उसको मिलेगा
    धर्म पथ जो चलेगा

    ज़र्रा – ज़र्रा कायल उसका होगा
    सारी कायनात पर अहसान जिसका होगा
    स्मारक उसका बनेगा
    संघर्ष जिसकी पहचान होगी

    विजय रथ उसको मिलेगा
    धर्म पथ जो चलेगा

    जीवनी उसकी लिखेगी
    जीवन जिसने जिया होगा
    आदर्श जिसकी पूँजी होगी
    संकल्प जिसने लिया होगा

    विजय रथ उसको मिलेगा
    धर्म पथ जो चलेगा

    जय मंगल गान उसका होगा
    जिसने सबका मंगल किया होगा
    जयघोष उसकी ही होगी
    जो दूसरों के लिए जिया होगा

    विजय रथ उसको मिलेगा
    धर्म पथ जो चलेगा

    जय परायण केवल वो होगा
    जिस पर प्रभु का हाथ होगा
    जगमगायेगा वही इस धरा पर
    जिसने पत्थर को तराशा होगा

    विजय रथ उसको मिलेगा
    धर्म पथ जो चलेगा

    पायेगा वही जाकर वहाँ कुछ
    जिसने यहाँ कुछ खोया होगा

    विजय रथ उसको मिलेगा
    धर्म पथ जो चलेगा

    – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    वर्तमान किस तरह परिवर्तित हो गया है – कविता

    वर्तमान किस तरह परिवर्तित हो गया है
    टीचर आज का टयूटर हो गया है

    जनता का रक्षक, भक्षक हो गया है
    वर्तमान किस तरह परिवर्तित हो गया है

    मानव आज का, दानव हो गया है
    सुविचार, कुविचार में परिवर्तित हो गया है

    गार्डन अब युवाओं के दिल गार्डन – गार्डन करने लगे हैं
    चौराहे – तिराहे लवर पॉइंट बनने लगे हैं

    आज का शिक्षक, शिष्या पर लट्टू हो गया है
    गुरु – चेले का रिश्ता भ्रामक हो गया है

    स्त्रियों की संख्या, पुरुषों से कमतर हो गयी है
    सभ्यता लुप्त प्रायः सी हो गयी है

    समाज का पतन, देश का पतन हो गया है
    चरित्र का पतन, आस्था का पतन हो गया है

    लुंगी को छोड़, जीन्स का चलन हो गया है
    कपड़े छोटे हो गए हैं तन का दिखावा शुरू हो गया है

    लडकियां, लड़कों सी दिखने लगी हैं लड़के, लड़कियों से दिखने लगे हैं
    चारों ओर ब्यूटी पार्लर का चलन हो गया है

    वर्तमान किस तरह परिवर्तित हो गया है
    वर्तमान किस तरह परिवर्तित हो गया है

    – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    धरा पर आज भी ईमान बाकी है – कविता

    धरा पर आज भी
    ईमान बाकी है
    धरा पर आज भी
    इंसान बाकी है

    यदि ऐसा नहीं होता
    तो भोपाल त्रासदी देख
    मन सबका रोता क्यों
    धरा पर आज भी
    ईमान बाकी है

    धरा पर आज भी
    इंसान बाकी है
    यदि ऐसा नहीं होता
    तो सुनामी देख
    मन सबका रोता क्यों
    धरा पर आज भी
    ईमान बाकी है

    धरा पर आज भी
    इंसान बाकी है
    यदि ऐसा नहीं होता
    तो लातूर का विनाश देख
    मन सबका रोता क्यों
    धरा पर आज भी
    ईमान बाकी है

    धरा पर आज भी
    इंसान बाकी है
    यदि ऐसा नहीं होता
    तो म्यामार का आघात देख
    मन सबका पसीजा क्यों
    धरा पर आज भी
    ईमान बाकी है

    धरा पर आज भी
    इंसान बाकी है
    यदि ऐसा नहीं होता
    तो गाजापट्टी में नरसंहार देख
    मन सबका व्याकुल होता क्यों
    धरा पर आज भी
    ईमान बाकी है

    धरा पर आज भी
    इंसान बाकी है
    यदि ऐसा नहीं होता
    तो मंदिरों में भीड़ का
    अम्बार नहीं होता
    मंत्रोच्चार नहीं होता

    मस्जिद में अजान
    सुनाई न देती
    CHURCH में घंटों की आवाज
    सुनाई न देती
    गुरुद्वारों में पाठ
    सुनाई न देता
    मानव के हाथ
    दुआ के लिए
    न उठ रहे होते
    गरीबों का कोई
    सहाई न होता
    यदि ऐसा नहीं होता
    तो धरती पर
    कोई किसी की बहिन नहीं होती
    कोई किसी का भाई नहीं होता
    धरा पर आज भी
    ईमान बाकी है

    धरा पर आज भी
    इंसान बाकी है
    गिरते को कोई
    उठा रहा न होता
    बहकते को कोई
    संभल न रहा होता
    ये मानव की नगरी है
    यहाँ देवों का वास होता है
    ये संतों की नगरी है
    यहाँ संतों का वास होता है

    धरा पर आज भी
    ईमान बाकी है
    धरा पर आज भी
    इंसान बाकी है

    – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    भँवर – कविता

    ये किस भँवर में
    आ फंसे हैं हम
    किनारे की आस तो है
    पर किनारा मिलता नहीं है
    हो रहे हैं

    दिन प्रतिदिन आसामाजिक
    फिर भी
    समाज में रहने का भ्रम
    पाले हुए हैं हम
    ये किस भँवर में
    आ फंसे हैं हम

    किनारे की आस तो है
    पर किनारा मिलता नहीं है
    हमारी चाहतों ने
    हमारी जरूरतों ने
    हमें एक दूसरे
    से बाँध रखा है
    वरना अपने अपने अस्तित्व के लिए
    जूझ रहे हैं हम

    ये किस भँवर में
    आ फंसे हैं हम
    बंद कर दिए हैं हमने
    मंदिरों के दरवाजे
    नेताओं के चरणों की
    धूल हो गए हैं हम

    ये किस भँवर में
    आ फंसे हैं हम
    चाटुकारिता से पल्ला
    झाड़ा नहीं हमने
    चापलूसी का दामन
    छोड़ा नहीं हमने
    बदनुमा जिंदगी के
    मालिक हो गए हैं हम

    ये किस भँवर में
    आ फंसे हैं हम
    दर्द दूसरों का बाँटने में
    पा रहे हम स्वयं को अक्षम
    स्वयं की ही परेशानियों
    से परेशान हो रहे हैं हम
    चलना हो रहा है दूभर
    सहारा किसका बन सकेंगे हम

    ये किस भँवर में
    आ फंसे हैं हम
    आये दिन की घटनाओं के
    पात्र हो गए हैं हम
    सामाजिक अशांति के चरित्र हो
    जी रहे हैं हम
    जीने की भयावहता में
    राह भटके जा रहे हैं हम

    ये किस भँवर में
    आ फंसे हैं हम
    आस है उस पल की
    जो आशां कर दे
    सारी राहें
    ले चले इस

    अनैतिक व्यवहार से दूर
    आँचल में अपने समेटे

    सभी दुःख दर्द
    जीने की राह दे

    जीवन को अस्तित्व दे
    मार्ग प्रशस्त कर
    दूसरों के लिए जीने की लालसा जगा
    ताकि कोई भी ये न कह सके

    ये किस भँवर में
    आ फंसे हैं हम
    किनारे की आस तो है
    पर किनारा मिलता नहीं है

    – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    कवि हूँ – कविता

    कवि हूँ कवि की गरिमा को पहचानो

    करोगे वाहवाही कविताओं की झड़ी लगा दूंगा
    डूबते बीच मझदार को पार लगा दूंगा

    कविता करना मेरा कोई सजा नहीं है
    बुराइयों से बचाकर तुझे सजा पार करा दूंगा

    कवि हूँ कवि की गरिमा को पहचानो

    कविता की ताकत को तुम क्या जानो
    तुमने किया सजदा तो सर कटा दूंगा
    उठाई जो तलवार तुमने प्रेम का पाठ पढ़ा दूंगा
    की जो प्रेम की बातें सीने से लगा लूँगा

    कवि हूँ कवि की गरिमा को पहचानो

    प्रकृति मेरा प्रिय विषय रही है
    हो सका तो चारों और फूल खिला दूंगा
    सुंदरता की तारीफ की बातें न पूछो मुझसे
    हो सका तो इसे नायाब चीज बना दूंगा

    कवि हूँ कवि की गरिमा को पहचानो

    जीता हूँ में समाज की बुराइयों में
    लिखता हूँ कवितायें तनहाइयों में
    अपराध बोध बुराइयों पर कर प्रहार
    एक सभ्य समाज का निर्माण करा दूंगा

    कवि हूँ कवि की गरिमा को पहचानो

    सभ्यताओं ने किया कवि दिल पर प्रहार
    दिए नए नए जख्म नए नए विचार
    विचारों की इन नई श्रंखला में भी
    जीवन अलंकार करा दूंगा

    कवि हूँ कवि की गरिमा को पहचानो

    कवि हमेशा जिया है दूसरों के लिए
    कवि हमेशा लिखता है समाज के लिए
    दिल से बरबस आवाज ये निकलती है
    हे मानव जीवन तुम सब पर वार कर दूंगा

    कवि हूँ कवि की गरिमा को पहचानो

    – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    पाप पुण्य – कविता

    पाप पुण्य के चक्कर में
    मत पड़ प्यारे
    कर्म कर कर्म कर
    कर्म कर ले प्यारे

    परिणाम की चिंता में
    नींद हराम मत कर प्यारे
    कर्म कर कर्म कर
    कर्म कर ले प्यारे

    जीवन बहती धारा का
    नाम प्यारे
    कर्म कर कर्म कर
    कर्म कर ले प्यारे

    आत्मा पवित्र कर
    परमात्मा में लीन हो प्यारे
    कर्म कर कर्म कर
    कर्म कर ले प्यारे

    सद्चरित्र धरती पर
    जीतता हर मुकाम है
    कर्म कर कर्म कर
    कर्म कर ले प्यारे

    निराशा के झूले में
    झूलना मत प्यारे
    कर्म कर कर्म कर
    कर्म कर ले प्यारे

    योग का आचमन कर
    आत्मा को पुष्ट कर प्यारे
    कर्म कर कर्म कर
    कर्म कर ले प्यारे

    जीवन बहती नदी है
    विश्राम न कर प्यारे
    कर्म कर कर्म कर
    कर्म कर ले प्यारे

    मन है चंचल पर
    आत्मा पर अंकुश
    लगा प्यारे
    कर्म कर कर्म कर
    कर्म कर ले प्यारे

    जीना है इस धरा पर तो
    पुण्यमूर्ति बन प्यारे
    कर्म कर कर्म कर
    कर्म कर ले प्यारे

    सत्कर्मीय एवं पूजनीय को
    परमात्मा दर्शन देते प्यारे
    कर्म कर कर्म कर
    कर्म कर ले प्यारे

    जीवन लगाम कस
    अल्लाह को सलाम कर प्यारे
    कर्म कर कर्म कर
    कर्म कर ले प्यारे

    बंधनों के मोह में
    तू न पड़ प्यारे
    कर्म कर कर्म कर
    कर्म कर ले प्यारे

    शांत स्वभाव और
    मृदु वचन बोल प्यारे
    कर्म कर कर्म कर
    कर्म कर ले प्यारे

    निर्बाध तू बढ़ा चल
    भक्ति का आँचल पकड़
    जीवन राह विस्तार कर ले प्यारे
    कर्म कर कर्म कर
    कर्म कर ले प्यारे

    साँसों की डोर की मजबूती का
    कोई भरोसा नहीं है
    उड़ सके तो भक्ति के आसमां में
    उड़ ले प्यारे
    कर्म कर कर्म कर
    कर्म कर ले प्यारे

    अधर्म की राह छोड़
    धर्म पथ से नाता जोड़
    किस्मत अपनी संवार ले प्यारे
    कर्म कर कर्म कर
    कर्म कर ले प्यारे

    छूना है आसमां और पाना है
    उस पुण्यमूर्ति परमात्मा को
    जीवन को अपने कर्म पथ पर
    निढाल कर ले प्यारे
    कर्म कर कर्म कर
    कर्म कर ले प्यारे

    – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    सत्य वचन अनमोल वचन- कविता

    सत्य वचन अनमोल वचन कब हो जाता है
    सत्य वचन मुखरित हो जब पुष्प खिला जाता है

    सत्य कर्म अनमोल कर्म कब हो जाता है
    सत्य कर्म प्रेरणा स्रोत जब बन जाता है

    सत्य वचन अनमोल वचन कब हो जाता है
    सत्य वचन सत्य राह जब निर्मित कर जाता है

    सत्य कर्म अनमोल कर्म कब हो जाता है
    सत्य कर्म परम कर्म जब हो जाता है

    सत्य वचन अनमोल वचन कब हो जाता है
    सत्य वचन परम धर्म जब बन जाता हैं

    सत्य कर्म अनमोल कर्म कब हो जाता है
    सत्य कर्म जब सामाजिकता पा जाता है

    सत्य वचन अनमोल वचन कब हो जाता है
    सत्य वचन जब मानव मुक्ति साधन हो जाता है

    सत्य कर्म अनमोल कर्म कब हो जाता है
    सत्य कर्म जब पाप कर्म को धो जाता है

    सत्य वचन अनमोल वचन कब हो जाता है
    सत्य वचन जब मानव मन पर छा जाता है

    सत्य कर्म अनमोल कर्म कब हो जाता है
    सत्य कर्म जब धर्म प्रेरित कर्म बन जाता है

    सत्य वचन अनमोल वचन कब हो जाता है
    सत्य वचन जब मानव का तारक हो जाता है

    सत्य कर्म अनमोल कर्म कब हो जाता है
    सत्य कर्म जब मानव कल्याण हित हो जाता है

    सत्य वचन अनमोल वचन कब हो जाता है
    सत्य वचन साधारण को असाधारण कर जाता है

    सत्य वचन अनमोल वचन हर पल होता है
    सत्य कर्म अनमोल कर्म हर छण होता है
    मानव पूर्ण तभी होता है
    जब वह दोनों के सत्संग होता है

    – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    जीवन ज्योति जगाऊं कैसे – कविता

    कैसे करूँ तेरा अभिनन्दन
    कैसे करूँ मैं कोटि वंदन
    निर्मल नहीं है काया मेरी
    शीतल नहीं हुआ मन मेरा

    जीवन ज्योति जगाऊं कैसे

    निर्मल नीर कहाँ से लाऊं
    कैसे तेरे चरण पखाऊँ
    तामस होता मेरा तन मन
    निर्जीव जी रहा हूँ जीवन

    जीवन ज्योति जगाऊं कैसे

    अमृत वचन कहाँ से पाऊं
    कैसे तेरी स्तुति गाऊं
    सूरज बन चमकूँ मै कैसे
    चंदा बन चमकूँ मैं कैसे

    जीवन ज्योति जगाऊं कैसे

    आँगन मेरा तुम बिन सूना
    अधीर हो रहे मेरे नयना
    निश्चल समाधि पाऊं कैसे
    जीवन ज्योति जगाऊं कैसे

    जीवन ज्योति जगाऊं कैसे

    उत्कर्ष मेरा होगा प्रभु कैसे
    बंधन मुक्त रहूँगा कैसे
    पीड़ा मन की दूर करो तुम
    असह्य मेरा दर्द हरो तुम

    जीवन ज्योति जगाऊं कैसे
    नैतिकता की राह दिखा दो

    – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    आधुनिकता का दंभ – कविता

    आधुनिकता का दंभ भर
    जी रहे हैं हम
    टेढ़ी मेढ़ी पगडण्डी पर
    चल रहे हैं हम
    आधुनिकता का दंभ भर
    जी रहे हैं हम
    वस्त्रों से हमें क्या लेना
    चिथडो पर जी रहे हैं हम
    मंत्र सीखे नहीं हमने
    गानों से जी बहला रहे हैं हम
    आधुनिकता का दंभ भर
    जी रहे हैं हम
    पुस्तकें पढ़ना हमें
    अच्छा नहीं लगता
    इन्टरनेट मोबाइल से
    दिल बहला रहे हैं हम
    आधुनिकता का दंभ भर
    जी रहे हैं हम
    अति महत्वाकांक्षा ने हमको
    कहाँ ला खड़ा किया है
    अपराध की अंधी दुनिया मे
    जिंदगी ढूंढ रहे हैं हम
    आधुनिकता का दंभ भर
    जी रहे हैं हम
    सत्कर्मो से हमें
    हमें करना क्या
    बेशर्मो की तरह जिंदगी
    जिए जा रहे हैं हम
    आधुनिकता का दंभ भर
    जी रहे हैं हम
    अर्थ के मोह ने
    हमें व्याकुल किया है
    तभी अपराध की शरण
    हो रहे हैं हम
    आधुनिकता का दंभ भर
    जी रहे हैं हम
    आवश्यकताएं रोटी कपडा और मकान से
    ऊपर उठ चुकी हैं
    कहीं जमीर कहीं तन
    कही सत्य बेचने लगे हैं हम
    आधुनिकता का दंभ भर
    जी रहे हैं हम
    शक्ति और धन की उर्जा का
    दुरपयोग करने लगे हैं हम
    गिरतों को और नीचे गिराने
    ऊंचों को और ऊँचा उठाने लगे हैं हम
    आधुनिकता का दंभ भर
    जी रहे हैं हम
    हमारे पागलपन की हद तो देखो
    मानव को मानवबम बना रहे हैं हम
    जानवरों की संख्या घटा दी हमने
    आज आदमी का शिकार करने लगे हैं हम
    आधुनिकता का दंभ भर
    जी रहे हैं हम
    अब तो संभलो यारों
    अनैतिकता से दूरी रख जीवन संवारो यारों
    आधुनिकता की अंधी दौड से बहार आओ यारों
    चारों और इंसानियत और मानवता
    का मन्त्र सुनाओ यारों

    – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    कविता ऐसे करो – कविता

    कविता ऐसे करो की मन की कल्पना साकार हो जाए
    अक्षरों से शब्द बनें विचार अलंकार हो जाए

    विचार हों ऐसे कि बुराई शर्मशार हो जाए
    मिले समाज को नए विचार कि हर एक कि जिंदगी गुलजार हो जाए

    कविता ऐसे करो की मन की कल्पना साकार हो जाए
    छोड़ो तीर शब्दों के कुविचारों पर कि धरा पुण्य हो जाए

    मिटा दो आंधियां मोड़ दो रास्ते तूफानों के जिंदगी पतवार हो जाए
    कविता ऐसे करो की मन की कल्पना साकार हो जाए

    बहा दो ज्ञान की गंगा मिटा अँधियारा भीतर का
    कि जीवन जगमग हो जाए

    रहे न कोई अछूता ज्ञान गंगा से कि जीवन पवित्र संगम हो जाए
    कविता ऐसे करो की मन की कल्पना साकार हो जाए

    मिटाकर बुराई को,
    मिटा मन के अँधेरे को
    कि ज़िन्दगी आशा का दीपक हो जाए

    बनो ऐसे बढ़ो ऐसे रहो ऐसे
    कि आसमां से तारे फूल बरसाएं
    कविता ऐसे करो की मन की कल्पना साकार हो जाए

    करो शब्दों के प्रहार छोड़ो शब्दों की बौछार
    कि ज़िन्दगी काँटों के बीच फूल कि मानिंद हो जाए

    जियो ऐसे धरा पर बनो ऐसे धरा पर
    कि खुदा भी जन्नत छोड़ धरा पर
    तुझे आशीर्वाद देने आ जाए
    तुझे गले लगाने आ जाए
    कविता ऐसे करो की मन की कल्पना साकार हो जाए

    – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    भाग रहे हैं सब

    भाग रहे हैं सब
    इधर से उधर

    चाह में सुनहरे कल की
    वर्तमान को घसीटते
    आत्मा को कचोटते

    चाह पाने की
    थोड़ी सी छाँव
    धन की लालसा
    विलासिता में आस्था
    चाह अहम की

    पंक्षी बन उडूं गगन में
    बिन पंखों के
    आधारहीन
    चाल के साथ हवा में
    भाग रहे हैं सब

    इधर से उधर
    आत्मा पर कर वार
    जी रहे हैं सब
    उधार की

    जिंदगी के बोझ तले
    अज्ञान के
    बिन दीये के
    रौशनी की चाह में
    भाग रहे हैं सब

    इधर से उधर
    उद्देश्यहीन राह पर
    चौसर की बिसात पर
    जिंदगी जी रहे सभी
    अकर्म की सेज पर चाहते
    फूलों के ताज

    समझ नहीं आ रहा
    हम जा रहे किधर
    भाग रहे हैं सब
    इधर से उधर

    पालना है फूलों से सजा
    मोतियों से भरा
    गुब्बारे भी दीख रहे
    छन – छन करता
    हाथ में खिलौना
    पर आधुनिक
    माँ के स्तन को टोह रहा
    झूले का बचपन
    जा रहा हमारा समाज किधर
    भाग रहे हैं सब
    इधर से उधर

    समय की विवशता
    ऊँचाइयों को छूने
    का निश्चय
    एक ही कदम में
    अनगिनत सीढियां नापते
    कदम अनायास ही
    गिर जाने को
    मजबूर करते हैं

    अस्तित्व खो संस्कारों
    को धो
    क्या पाना चाहता है
    मानव
    मानव दौडता है
    केवल दौडता ही
    रह जाता है

    इधर से उधर
    भाग रहे हैं सब
    इधर से उधर
    जीवन अर्थ समझना है
    तो धार्मिक ग्रंथों
    की खिड़कियाँ खोल
    दिव्य दर्शन ,
    स्वयं दर्शन
    करना होगा
    दिव्य विभूतियों
    के चरणों का
    आश्रय पाना होगा
    संस्कृति
    व संस्कारों को
    जीवंत बनाना होगा

    छोड़ राह
    भागने की
    इधर से उधर
    जीवन से
    विलासिताओं को
    हटाना होगा
    स्थिर होना होगा
    संतुष्टि, संयम के साथ
    स्वयं को संकल्पों
    से बाँधना होगा
    निश्चयपूर्ण जीवन
    जीना होगा
    श्रेष्ठ जीवन
    राह निर्मित
    करना होगा

    मनुष्य को
    मशीन की बजाय
    मानव बनना होगा
    मानव बनना होगा

    आज जानकारियों का बढ़ गया भण्डार है

    आज जानकारियों का बढ़ गया भण्डार है.
    कुछ सच्ची कुछ झूठी , कुछ की महिमा अपरम्पार है l


    कुछ यू – ट्यूब पर चला रहे चैनल , कुछ के ब्लॉग बेमिसाल हैं.
    वेबसाइट के अंदाज़ भी निराले हैं , कुछ इन्स्टाग्राम , एफ़ बी , ट्विटर के मतवाले हैं l


    खे रहे हैं सब अपनी – अपनी नावें,
    कुछ को हासिल मंजिल, कुछ बीच मझधार हैं l


    व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी की अपनी ही माया है.
    फेसबुक , ट्विटर पर हर कोई छाया है l


    किसी के दुःख दर्द से , किसी को कोई फ़र्क नहीं पड़ता.
    सूचनाओं का बाज़ार गर्म होना चाहिए l


    गम किसी के कम हों न हों , क्यों सोचें.
    टी आर पी का खेल बदस्तूर चलते रहना चाहिए l


    कोई आविष्कार का बना रहा वीडियो तो कोई सुसाइड का.
    कोई डूबते हुए का बना रहा वीडियो, तो कोई तेज़ाब में नहा चुकी ……..का l


    किसी को फ़र्क पड़े तो पड़े क्यों.
    यू – ट्यूब से कमाई की राह निकलती रहनी चाहिए l


    आज जानकारियों का बढ़ गया भण्डार है
    समाज अपनी ही तरक्की पर शर्मशार है l


    संस्कृति, संस्कारों को बचाने की आज चुनौती है
    “ बाबे “ निकल रहे बहुरूपिये , ये अजब कसौटी है l


    नेता धर्म का कर रहे अतिक्रमण
    राम के नाम पर लग रही बोली है l


    मंदिरों पर अंधाधुंध चढ़ावे चढ़ रहे हैं
    झोपड़ी में लाल भूख से बिलख रहे हैं l


    कोरोना का भयावह रूप देखकर भी नहीं सुधरी दुनिया
    इस भयावह त्रासदी में करोड़ों की उजड़ गयी दुनिया l


    “ बाबे “ सभी हो गए बिज़नेसमैन
    गली – मुहल्लों में खुल रही इनकी दुकान है


    प्रकृति से खिलवाड़ को समझ रहे तरक्की का सिला
    कभी सुनामी कभी बाढ़ कभी भूकंप तो कभी कोरोना की मार है l


    पहाड़ों का दिल चीरकर कम कर रहे दूरी
    अजब तरक्की का गजब बुखार है l


    कोरोना ने इंसान को कीड़े मकोड़ों की तरह कुचला
    फिर भी इंसान का दिल इंसान की मौत पर नहीं पिघला l


    मंदिरों में घंटों की ध्वनि पर लग गया विराम
    आज भी डीजे पर नाचने वालों को कहाँ आराम l


    आज अजब नज़ारे दिखा रही है ये धरा और ये आसमां
    अभी भी चाहे तो संभल जा ए आदम की औलाद , अपनी जिन्दगी को नासूर न बना l

    तरक्की के मायने बदल, लिख सके तो लिख इबारत इंसानियत की तरक्की की
    सजा सके तो सजा महफ़िल , खुदा की इबादत की l

    इस नायाब प्रकृति को बना अपनी जिन्दगी का हमसफ़र
    सिसकती सांसों का बन मरहम , इस धरा को कर रोशन l

    आज जानकारियों का बढ़ गया भण्डार है
    कुछ सच्ची कुछ झूठी , कुछ की महिमा अपरम्पार है ll

    मैं चाहता हूँ

    चाहता हूँ
    एक जहां बसाना
    जिस पर हो
    तारों का ठिकाना

    चन्दा करता हो अठखेलियाँ
    बाद्लों के पीछे
    कभी सूरज अपनी शरारतपूर्ण
    हरकतों से चाँद को
    करता दिखता हो परेशान

    चाहता हूँ एक जहां बसाना
    जहां बादल बूंदों को
    अपने में समाये
    बादल जो धरा पर
    जीवन तत्व की बरसात
    करते हैं
    मैं चाहता हूँ
    एक ऐसा ठिकाना
    जहां आसमां पर
    जीवन के सतरंगे
    पलों को अपने में समाये
    इन्द्रधनुष दिखाई देता है

    मेरा मन चाहता है
    एक ऐसा आशियाँ
    जहां भोर होते ही
    पंक्षियों की चहचहाहट
    सुनाई देती है

    जहां सुबह की भोर के आलाप
    मनुष्य को
    उस परमात्मा से जोड़ते हैं

    जहां पालने में
    रोते बालक की
    आवाज सुनते ही
    माँ तीव्रगति से
    अपने बच्चे की ओर भागकर
    उसे गले से लगा लेती है

    मैं एक ऐसा जहां
    बसाना चाहता हूँ
    जहां संस्कार ,
    संस्कृति के रूप में
    पल्लवित होता है

    यह वह जहां है
    जहां मानव
    मानव की परवाह करता है
    नज़र आता है
    जहां कोई
    मानव बम नहीं होता
    जहाँ कोई आतंकवाद नहीं होता
    जहां कोई धर्मवाद , जातिवाद ,
    सम्प्रदायवाद नहीं होता

    असंस्कृत हुई भाषा

    असंस्कृत हुई भाषा
    असभ्य होते विचार

    असमंजस के वशीभूत जीवन
    संकीर्ण होते सुविचार

    अहंकार बन रहा परतंत्रता
    असीम होती लालसा

    जिंदगी का ठहराव भूलती
    आज कि जिंदगी
    ‘ट्वीट’ के नाम पर
    हो रही बकबक

    असहिष्णु हो रहा हर पल
    ये कौन सी आकाशगंगा
    आडम्बर हो गया ओढनी
    आवाहन हो गयी बीती बातें

    मधुशाला कि ओर बढ़ते कदम
    संस्कार हो गए आडम्बर

    ये कैसा कुविचारों का असर
    संस्कृति माध्यम गति से रेंगती

    विज्ञान का आलाप होती जिंदगी
    धार्मिकता शून्य में झांकती

    मानवता स्वयं को
    अन्धकार में टटोलती

    ये कैसी कसमसाहट
    ये कैसा कष्ट साध्य जीवन

    कांपती हर एक वाणी
    काँपता हर एक स्वर

    मानव क्यों हुआ छिप्त
    क्यों हुआ रक्तरंजित

    समाप्त होती संवेदनाएं
    फिर भी न विराम है

    कहाँ होगा अंत
    समाप्त होगी कहाँ ये यात्रा

    न तुम जानो न हम ………..

    शिक्षक

    जीवन में ज्ञान रस घोल गया कोई
    उसे शिक्षक कह गया कोई

    जीने की राह दिखा गया कोई
    उसे शिक्षक कह गया कोई

    पुस्तकों से परिचय करा गया कोई
    उसे शिक्षक कह गया कोई

    मन में समर्पण का भाव जगा गया कोई
    उसे शिक्षक कह गया कोई

    ज्ञान के सागर में गोता लगाना सिखा गया कोई
    उसे शिक्षक कह गया कोई

    देश प्रेम की भावना मन में जगा जीवन संवार गया कोई
    उसे शिक्षक कह गया कोई

    जीवन में अनुशासन का महत्व बता गया कोई
    उसे शिक्षक कह गया कोई

    अंधविश्वासों के मोहजाल से बाहर कर जीवन सजा गया कोई
    उसे शिक्षक कह गया कोई

    शिक्षा के माध्यम से जीवन को अलंकृत करने की कला सिखा गया कोई
    उसे शिक्षक कह गया कोई

    पालने में अज्ञान के झूल रहा था अब तक
    जीवन में ज्ञान के चार चाँद लगा गया कोई
    उसे शिक्षक कह गया कोई

    अनुशासन की बेडी पहना मेरा जीवन संवार गया कोई
    उसे शिक्षक कह गया कोई

    नैतिकता के मूल्यों का गहना उस पर मानवता का चोला पहना
    पूर्ण मानव बना गया कोई
    उसे शिक्षक कह गया कोई

    किस्मत में न थे जिसकी धरा के मोती उसे आसमान का सितारा बना गया कोई
    उसे शिक्षक कह गया कोई

    उसे शिक्षक कह गया कोई
    उसे शिक्षक कह गया कोई

    मानवता

    खा गई ज़मीन
    या खा गया आसमां
    ऐ मानवता तू है कहाँ ?
    ऐ मानवता तू है कहाँ ?
    उड़ गई क्या शोले बनकर
    आसमां में

    मैं ढूँढता हूँ तुझे
    ए इंसानियत
    तेरा ठिकाना है कहाँ ?
    तेरा ठिकाना है कहाँ ?

    लोग कहते हैं
    खुदा हर एक के
    दिल में बसता है
    फिर यह
    बर्बरतापूर्ण व्यवहार देख

    थरथराती ज़मीन देख
    कांपती ज़मीन देख
    कांपता जीवन देख
    कहाँ छुप गया है खुदा ?

    मैं ढूँढता हूँ तुझे
    यहाँ और वहाँ
    यहाँ और वहाँ

    ऐ खुदा
    क्या तू
    युग परिवर्तन की
    देख रहा है राह

    मैं
    मानवशोलों,
    धर्माधिकारियों
    के मुंह से निकले
    अनैतिकपूर्ण
    बोलों के बीच

    सारी मानव
    जाति में
    एकता , अखंडता ,
    सांस्कृतिकता को
    ढूंढ रहा हूँ
    ये सब हैं कहाँ ?
    ये सब हैं कहाँ ?

    ऐ खुदा
    यदि तुझे
    पता हो
    तो बता

    चारों ओर
    मच रही चीख
    चित्रों में
    तब्दील होता
    मानव शरीर

    फिर भी उनका
    गंवारा नहीं करता
    ज़मीर
    ये भटकते विचार

    ये आतंकवाद
    मानव संस्कृति
    मानव सभ्यता
    मानव संस्कारों
    को करते तार – तार

    आज मानव जीवन पर
    कर रहे
    बार – बार वार
    शायद खुदा
    युग परिवर्तन की आड़ में

    मानव मस्तिष्क
    मानव मन
    को टटोल रहा है
    उसकी जिद
    व भावनाओं को

    सच व झूठ के
    तराजू में
    तौल रहा है
    और कह रहा है

    अब तो रुक
    अब तो संभल
    अब तो अपनी
    अनैतिकतापूर्ण ,
    असामाजिक,
    कायरतापूर्ण ,
    आतंकवादी ,
    अमनावतावादी
    गतिविधियों पर
    लगा विराम

    क्योंकि
    जिस विस्फोट
    से अभी – अभी
    तूने जिस दुधमुहें
    बच्चे
    के मासूम
    व कोमल तन
    को छोटे – छोटे
    टुकड़ों में
    बिखेर दिया है

    वह कोई और नहीं
    मैं खुदा ही था
    तुम सब के बीच
    मैं खुदा ही था
    तुम सब के बीच
    मैं खुदा ही था
    तुम सब के बीच |

    आज के चैनल – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    आज के चैनल
    आधुनिकता का पाठ पढ़ा रहे हैं
    और हमारे विश्वास व आस्था को
    अंधविश्वास व रूढिवादिता बता रहे हैं
    आज के चैनल
    आधुनिकता का पाठ पढ़ा रहे हैं
    और बुद्धिजीवी आने वाली पीढ़ी के
    भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं
    सीरियल देखकर महिलायें
    अपने आपको
    नए श्रृंगारों , परिधानों
    एवं भव्य जीवन शैली
    से अपने आपको लुभा रही हैं
    और पति बेचारों की जेबें
    पत्नियों की मांगें पूरी करने में
    अपने आपको असहाय पा रही हैं
    युवा पीढ़ी डेट को खजूर समझकर
    उसके पीछे भाग रही है
    और
    अपनी जेबें खाली करने के
    साथ – साथ
    अपराध की ओर अग्रसर हो रही है
    इस डेट रुपी विचार ने
    युवा पीढ़ी को
    अन्धकार रुपी भविष्य की ओर
    धकेल दिया है
    टी वी को सेंसर की
    जरूरत महसूस होने लगी है
    चूंकि टी वी पर महिलाओं
    के कपड़े छोटे होने लगे हैं
    टू पीस में टी वी बालायें
    अपने आपको श्रेष्ठ फिगर
    का ताज पहनाती
    गौरवशाली पा रही हैं
    दूसरी ओर आज की मम्मियां
    अपने आपको टी वी के सामने
    अपने बच्चों के साथ
    असहज पा रही हैं
    युवा पीढ़ी व आधुनिक मम्मियों
    को ये सब बहुत भा रहा है
    पर हमें
    होने वाली पीढ़ी का भविष्य
    गर्त में नज़र आ रहा है
    टी वी पर ठुमके
    आज आम हो गए हैं
    नैतिकता, सुविचार
    सुआचरण, मानवता सभी
    कहीं खो गए हैं
    जागो और कुछ करो
    ये टी वी
    भविष्य के भारत के
    सामजिक परिदृश्य हेतु
    अनैतिक कुविचार है
    इन पर रोक लगाओ
    स्वस्थ वातावरण बनाओ
    युवाओं आगे आओ
    देश को बचाओ
    संस्कृति , संस्कारों को बचाओ
    अपने मानव होने का धर्म निभाओ
    अपने मानव होने का धर्म निभाओ
    अपने मानव होने का धर्म निभाओ

    शिक्षक कौन कहलाये

    ज्ञान – विज्ञान की जो बात बताए
    वही जन शिक्षक कहलाये

    उचित – अनुचित का बोध कराये
    वही जन शिक्षक कहलाये

    सही गलत का फर्क बताए
    वही जन शिक्षक कहलाये

    भटके राही को राह पर लाये
    वही जन शिक्षक कहलाये

    जो अनुशासन का पाठ पढाए
    वही जन शिक्षक कहलाये

    जो देश प्रेम के भाव जगाये
    वही जन शिक्षक कहलाये

    जो पढ़ने में जो रूचि जगाये
    वही जन शिक्षक कहलाये

    आदमी को जो इंसान बनाए
    वही जन शिक्षक कहलाये

    जो ज्ञान की राह पर लेकर आये
    वही जन शिक्षक कहलाये

    प्रेरणा का जो स्रोत बन जाए
    वही जन शिक्षक कहलाये

    वही जन शिक्षक कहलाये
    वही जन शिक्षक कहलाये

    पालता हूँ अपने दिल में

    पालता हूँ अपने दिल में
    हज़ारों गम
    आज के समाज में
    पल रही
    बुराइयों , कुरीतियों के बीच
    पल रहा हूँ मैं
    पालता हूँ हज़ारों गम
    अपने दिल में
    आज के समाज में
    टूटता , बिखरता मानव
    पल – पल गिरता
    उठने की
    नाकान कोशिश करता
    ये मानव
    पालता हूँ हजारों गम
    अपने दिल में
    असंयमित होता
    अतिमहत्वाकांक्षी होता
    अतिविलासी होता
    पथ भृष्ट होता
    छोड़ता
    आदर्शों को पीछे
    संस्कारों से नाता खोता
    संस्कृति की छाँव से
    दूर होता
    पालता हूँ अपने दिल में
    हज़ारों गम
    आज का मानव दिशाहीन होता
    चरित्रहीन होता
    असत्यपथगामी होता
    अप्राकृतिक कुंठाओं का
    शिकार होता
    पालता हूँ अपने दिल में
    हज़ारों गम

    बात बाल्यकाल की

    बात बाल्यकाल की
    चिरपरिचित लाल की

    गली के सब बच्चों में
    अक्ल के सब कच्चों में
    शामिल वह हो गया
    बुद्धिज्ञान खो गया

    शरारती वह हो गया
    मतवाला वह हो गया

    पढ़ाई जिसे रास नहीं
    पैसे जिसके पास नहीं

    मौके वो ढूँढता
    जेबों पर हाथ मारता
    सामान घर के बेच – बेच
    अपनी इच्छायें पूरी करता

    धीरे – धीरे वह उच्छंख्ल हो
    शरारती वो हो गया
    मौके वो न छोडता
    कभी बैग चोरी करता
    कभी किसी की जेब हरता

    इच्छायें अपनी पूरी करता
    इच्छाओं ने उसकी उसको
    अपराधी कर दिया
    मायाजाल बढ़ गया

    समय ने फिर मोड़ लिया
    अचानक एक घटना घटी
    बात उस रात की
    सूनसान राह पर
    रुकी जब एक कार
    लुटेरों ने घेर लिया
    बचाओ – बचाओ के शब्दों ने
    उसके कानों को सचेत किया

    एक अपराधी ने दूसरे अपराधियों को
    किसी बेक़सूर पर
    करते देख वार
    अपनी आत्मा को कचोटा
    और मन ही मन सोचा

    जिंदगी में मिला है
    मौक़ा पहली बार
    भुलाके अपने पुराने कर्म
    भुलाके अपनी सारी इच्छायें
    भुलाके अपने सारे गम
    छोड़ अपनी जिंदगी का मोह
    टूट पड़ा उन अपराधियों पर
    बिजली बन
    बचा लाज मानवता की
    उसने उस परिवार को बचा लिया
    अपने जीवन पर्यंत पापकर्मों को
    सत्कर्मों में परिवर्तित कर दिया
    उसने दूसरों की सेवा का वचन लिया
    सत्कर्म की ओर उसके कदम बढ़े
    वह समाज का प्यारा हो गया

    सबका दुलारा हो गया

    मानव की कैसी ये दुर्दशा हो रही है

    मानव की कैसी ये दुर्दशा हो रही है

    तड़पती ये साँसें बेवफ़ा हो रही हैं

    सिसकती जीवित आत्माएं हजारों आंसू रो रही हैं

    एक वायरस से जिंदगियां फ़ना हो रही हैं

    मूक हैं सत्ता के ठेकेदार, क्या बताएं

    तिल – तिल कर जिंदगियां तबाह हो रही हैं

    सत्ता के गलियारे में , चुनाव की हलचल है

    नेताओं की आँखें , कुर्सियों पर टिकी हुई हैं

    कहीं माँ रो रही है, कहीं भाई रो रहा है

    कही बाप अपने बेटे की अर्थी , काँधे पे ढो रहा है

    मानवता सिसक रही है , इंसानियत रो रही है

    रोजगार फना हो रहे हैं , रसोई तड़प रही है

    जवाँ खून कोरोना की बलि चढ़ रहे है

    ऑक्सीजन और दवाई के अभाव में मर रहे हैं

    कुछ हैं जो अस्पतालों में जगह को तरस रहे हैं

    कुछ हैं जो अपनी लापरवाही से मर रहे हैं

    मानव की कैसी ये दुर्दशा हो रही है

    तड़पती ये साँसें बेवफ़ा हो रही हैं

    सिसकती जीवित आत्माएं हजारों आंसू रो रही हैं

    एक वायरस से जिंदगियां फ़ना हो रही हैं

    हिंदी राजभाषा

    हिंदी है राजभाषा
    इससे नहीं निराशा

    जैसी लिखी ये जाए
    वैसी पढ़ी ये जाए

    कर्णप्रिय ये भाषा
    इससे नहीं निराशा

    शब्दों को है संजोये
    सभी भाषाओं को है पिरोये

    विश्व धरा पर हमारी
    पहचान है ये भाषा

    विश्व प्रचलित ये भाषा
    इससे नहीं निराशा

    हिंदी है राजभाषा
    इससे नहीं निराशा

    इस परे हमें हो गर्व
    चाहे समर्पण सर्व

    इसका करैं हम सम्मान
    हमारी यह पहचान

    अन्य भाषाओं को
    अपनाया है इसने

    विश्व बंधुत्व का सपना
    दिखाया है इसने

    हिंदी है राजभाषा
    इससे नहीं निराशा

    नेपाली हो या उर्दू
    फारसी हो या अंग्रेजी

    आँचल में अपने सबको
    दुलारती ये भाषा

    पुकारती है हमको
    मातृभूमि हमारी

    करो वंदना सब मिलकर
    राजभाषा हिंदी हमारी

    हो जाए जाने सफल
    करैं मातृभाषा का आचमन

    इसे विश्व रंग पहनायें
    विश्व धरा पर खिल ये जाए

    हिंदी है राजभाषा
    इससे नहीं निराशा

    मेरे गुरू

    वह दिन मुझे आज भी
    याद है
    जब मुझे भी ज्ञात नहीं था
    कि जिन पुण्यमूर्ति
    के सानिध्य में जीवन के
    बाल्यकाल को जी रहा हूँ मै

    मेरे जीवन का सत्मार्ग
    बन मुझे
    जिंदगी के चरम पर
    पहुंचा
    मेरे जीवन को सार्थक
    बना देगा
    ये
    शायद
    मेरे अंदर की भावना थी
    या मेरी कर्मपरायणता
    या फिर
    उस परमपूज्य
    परमात्मा
    का
    अप्रत्यक्ष आदेश
    जिसने मुझे उनकी ओर
    सेवा भाव से प्रेरित
    कर
    उनका आशीर्वाद
    प्राप्त करने का
    सुअवसर प्रदान किया
    मुझे
    उनकी वैराग्यपूर्ण छवि
    अपनी ओर आकर्षित
    करती थी
    साथ ही उनका
    लोगों के
    प्रति मानवपूर्ण
    व्यवहार
    बच्चों के प्रति
    दुलार
    धार्मिक अनुष्ठानों में उनकी
    आस्था
    परमात्मा से उनका प्रत्यक्ष मिलन
    समय – समय
    पर उनके द्वारा
    छोटे – छोटे
    उद्धरण के माध्यम से
    दी गई सीख
    आज भी मेरे जीवन को
    उदीयमान
    करती है
    सभी धर्मों में उनकी आस्था
    धार्मिक ग्रंथों में
    समाहित विचारों पर उनका अटूट विश्वास
    मुझ पर
    उनका पड़ता
    अनुकूल प्रभाव
    उनके
    हर क्षण
    हर पल कि
    गतिविधियां
    किसी भी जीव को
    अपना जीवन पूर्ण
    करने
    के लिए काफी था
    मै धन्य हूँ उन पुण्यमूर्ति
    आत्मा का
    जिनके सुविचारों
    संदेशों का प्रसाद पाकर
    अपने आपको आनन्द विभोर
    पा रहा हूँ मैं
    मेरी जीवन की
    प्रत्येक
    उपलब्धि
    उस परमपूज्य
    गुरुदेव
    की आराधना
    व साधना प्रतिफल है
    मै उस पवित्र
    आत्मा की वंदना करता हूँ
    उसे साष्टांग
    प्रणाम करता हूँ
    जय गुरुवे नमः |

    जीवन

    जीवन स्वयं को प्रश्न जाल में
    उलझा पा रहा है
    जीवन स्वयं को एक अनजान
    घुटन में असहाय पा रहा है

    जीवन स्वयं के जीवन को
    जानने में असफल सा है
    जीवन क्या है ?
    इस मकडजाल को
    समझ सको तो समझो

    जीवन क्या है ?
    इससे बाहर
    निकल सको तो निकलो
    जीवन क्या है ?
    एक मजबूरी है
    या है कोई छलावा

    कोई इसको पा जाता है
    कोई पीछे रह जाता
    जीवन मूल्यों की
    बिसात है
    जितने चाहे मूल्य निखारो
    जीवन आनंदित हो जाये

    ऐसे नैतिक मूल्य संवारो
    जीवन एक अमूल्य निधि है
    हर एक क्षण इसका पुण्य बना लो

    मोक्ष, मुक्ति मार्ग जीवन का
    हो सके तो इसे अपना लो
    नाता जोड़ो सुसंकल्पों से
    सुआदर्शों को निधि बना लो

    जीवन विकसित जीवन से हो
    पर जीवन उद्धार करो तुम
    सपना अपना जीवन- जीवन
    पर जीवन भी अपना जीवन

    धरती पर जीवन पुष्पित हो
    जीवन – जीवन खेल करो तुम
    चहुँ ओर आदर्श की पूंजी
    हर – पल जीवन विस्तार करो तुम

    जीवन अन्तपूर्ण विकसित हो
    नए मार्ग निर्मित करो तुम
    नए मार्ग निर्मित करो तुम
    नए मार्ग निर्मित करो तुम

    परीक्षा हॉल

    परिक्षा कक्ष में बैठे बच्चे
    मन ही मन
    कुछ सोच रहे हैं
    कैसा होगा प्रश्नपत्र
    होंगे कैसे उसमे प्रश्न

    क्या – क्या पूछ बैठेंगे
    क्या मैंने जो पढ़ा
    हुआ है
    वही परीक्षा में आयेगा
    या फिर
    मैं
    बाजू वाले से कुछ पूछूँगा
    क्या वो मेरी मदद करेगा
    इस प्रश्नजाल में
    उलझे बच्चे जाने
    क्या – क्या सोच रहे हैं
    परीक्षा हॉल में
    बैठे शिक्षक के मन को
    टटोल रहे हैं
    क्या आज मैं
    खुशी – खुशी लौटूंगा
    या फिर लटके मुह
    ही जाना होगा


    पापा डाटेंगे मम्मी मारेगी
    यह सब मुझको सहना होगा
    बजी घंटी तब भ्रम टूटा
    प्रश्नपत्र जब आया टेबल पर
    प्रथम पृष्ठ जब मैंने देखा
    मन को मेरे राहत आई
    फ़टाफ़ट
    फिर कलम लेकर
    मैंने दौड़ लगाईं
    कर डाले फिर
    प्रथम पृष्ठ के सारे प्रश्न
    आई अब दूसरे पृष्ठ की बारी
    दूसरे पृष्ठ की मत पूछो भैया
    लगती डूबती नैया
    कुछ प्रश्न सर से नीचे
    तो कुछ प्रश्न सर से ऊपर
    खींचतान कर दिमाग लगाकर
    जुगत बनाई
    सोचा गाड़ी चल पड़ेगी
    तभी पृष्ठ तीन
    जो आया
    यह मेरे मन को ना भाया
    प्रश्न सभी थे विकराल
    लगते थे जैसे काल
    लगा फाड़ दूं पेपर को
    फिर मन को कुछ कंट्रोल किया
    कुछ दम मारी कुछ प्रयास किया
    तब जाकर खुद पर विश्वास किया
    किसी तरह जान मैं पाया
    ये है शिक्षक की माया
    पढ़ना तो हमको ही होगा
    परीक्षा में लिखना तो
    हमको ही होगा


    सुननी होगी शिक्षकों की बातें
    मन में उन्हें उतारना होगा
    चलिए अब आई
    रिजल्ट की बारी
    सासें मेरी भारी-भारी
    धड़कन धक् – धक्
    धक् – धक्
    सासें बोले
    झक – झक
    झक – झक
    शिक्षक ने जब रिजल्ट सुनाया
    मेरी समझ में


    सब कुछ आया
    बनना है उत्तम
    तो प्रयास भी उच्च स्तर
    के करने होंगे
    पल –पल का
    सदुपयोग करके ही
    उस स्तर पर पहुचेंगे
    मम्मी-पापा व अच्छे दोस्तों की
    बातें सुननी होंगी
    और माननी होंगी
    समय व्यर्थ न गंवाना होगा
    मंजिल पर पहुँचने के लिए
    शोर्टकट को छोड़
    परिश्रम यानी मेहनत
    को अपनाना होगा
    परिश्रम यानी मेहनत
    को अपनाना होगा

    वीर समाधि पर कविता

    वहाँ दीया जलाओ
    जहां वीरों की समाधि हो

    वहाँ पुष्प चढ़ाओ
    जहां वीरों की समाधि हो

    वहाँ दीया जलाओ
    जहां सरस्वती का निवास हो

    वहाँ पुष्प चढ़ाओ
    जहां सरस्वती का वास हो

    वहाँ दीया जलाओ
    जहां ज्ञान का प्रसार हो

    वहाँ पुष्प चढ़ाओ
    जहां शिक्षा की आस हो

    वहाँ दीया जलाओ
    जहां पीरों का निवास हो

    वहाँ पुष्प चढ़ाओ
    जहां पीरों का वास हो

    वहाँ दीया जलाओ
    जहां देवों का निवास हो

    वहाँ पुष्प चढ़ाओ
    जहां देवताओं का वास हो

    वहाँ दीया जलाओ
    जहां पुण्य आत्माओं का निवास हो

    वहाँ पुष्प चढ़ाओ
    जहां पुण्य आत्माओं का वास हो

    दीया जला पुष्प चढ़ा
    अपने अन्तर्मन को सजा

    सुसंस्कारों की माला बन
    इस पुण्य धरा को वर

    जीवन सुसंस्कृत कर
    सत्य मार्ग को तू वर

    इस धरा पर पुष्प बन
    जीवन संवार ले

    खुशबू बन कुछ इस तरह
    चारों ओर बहार आ जाए

    तुम न छेड़ो कोई बात

    तुम न छेड़ो कोई बात
    न सुनाओ आदर्शों का राग

    मार्ग हुए अब अनैतिक
    हर सांस अब है कांपती

    कि मैं डरूं कि वो डरे
    हर मोड़ अब डरा – डरा

    कांपते बदन सभी
    कांपती हर आत्मा

    रिश्ते सभी हुए विफल
    आँखों में भरा वहशीपन

    हर एक आँख घूरती
    आँखों की शर्म खो रही

    बालपन न बालपन रहा
    जवानी बुढापे में झांकती

    आदर्श अब आदर्श न रहे
    न मानवता मानवता रही

    अब राहों की न मंजिलें रहीं
    डगमगाते सभी पाँव हैं

    रिश्तों की न परवाह है
    संस्कृति का न बहाव है
    संस्कारों की बात व्यर्थ है
    नारी न अब समर्थ है
    नर , पशु सा व्यर्थ जी रहा
    व्यर्थ साँसों को खींच है रहा
    कहीं तो अंत हो भला
    कहीं तो अब विश्राम हो
    कहीं तो अब विश्राम हो
    कहीं तो अब विश्राम हो

    जिन्दगी शम्मा सी

    जिन्दगी शम्मा सी रोशन हो खुदाया मेरे

    जिन्दगी तेरी इबादत की जुस्तजू हो खुदाया मेरे

    शम्मा सी रोशन जिन्दगी सबकी हो खुदाया मेरे

    मुश्किलों से निजात जिन्दगी सबकी हो खुदाया मेरे

    पाक – साफ़ हों दिल से सभी खुदाया मेरे

    चारों पहर जुबां पर नाम हो तेरा खुदाया मेरे

    एक तेरे नाम से रोशन हों ये दोनों जहां खुदाया मेरे

    तेरे एहसास से खुशगंवार हों ये दोनों जहां खुदाया मेरे

    जहां से भी मैं गुजरूँ तेरा एहसास हो खुदाया मेरे

    गुंचा – गुंचा तेरे एहसास से रूबरू हो खुदाया मेरे

    नादानी जो हो जाये माफ़ करना खुदाया मेरे

    मैं साँसें ले रहा हूँ तो एक तेरे दम से खुदाया मेरे

    नसीब मेरा बने तेरे करम से खुदाया मेरे

    आशियाँ मेरा रोशन हो तेरे करम से खुदाया मेरे

    दो फूल मेरी भी झोली में डाल दे खुदाया मेरे

    शम्मा सी रोशन हो जिन्दगी हमारी खुदाया मेरे

    निराली है तेरी शान , तेरा करम हम पर हो खुदाया मेरे

    पाक – साफ़ दामन हो मेरा , मेरा चिराग तुझसे रोशन हो खुदाया मेरे

    जिन्दगी शम्मा सी रोशन हो खुदाया मेरे

    जिन्दगी तेरी इबादत की जुस्तजू हो खुदाया मेरे

    माँ – कविता

    माँ तेरे आँचल का
    आश्रय पाकर
    धन्य हो गया हूँ मै
    माँ तेरी
    कर्मपूर्ण जिंदगी
    के पालने में
    पलकर

    कर्तव्यपूर्ण
    जिंदगी का
    प्रसाद पाकर
    धन्य हो गया
    हूँ मै

    माँ तेरी आँखों में
    स्नेहपूर्ण व्यवहार
    अपने बच्चों के लिए
    उमड़ता प्यार
    देखकर
    धन्य हो गया हूँ मै

    माँ अपने
    बच्चों के भविष्य
    के प्रति
    तेरे चहरे पर
    समय समय पर
    उभरती चिंता की लकीरें
    साथ ही
    तेरा आत्मविश्वास
    देख धन्य हो गया हूँ मै

    माँ
    जीवनदायिनी के
    साथ-साथ
    प्रेरणादायिनी
    प्रेमदायिनी
    समर्पणरुपी
    मूर्ति के साथ- साथ
    आत्म बल से परिपूर्ण
    शक्ति से संपन्न
    ओजस
    सभ्य

    सुसंस्कृत
    भविष्य
    का निर्माण
    करती

    सांस्कृतिक
    धरोहर

    परम्पराओं का
    निर्वहन करती
    पुण्यमूर्ति को पाकर
    धन्य हो गया हूँ मै

    माँ
    बच्चों को
    बड़ों का सम्मान सिखाती
    शिक्षकों के प्रति
    आस्था जगाती
    देवी को पाकर
    धन्य हो गया हूँ मै

    देखे थे मैंने
    समय असमय
    तेरी आँखों में आंसू
    पर तेरा
    विचलित न होना
    प्रेरित करता है

    मुझे शक्ति देता है
    ऊर्जा देता है
    विषम परिस्थितियों
    में भी जीवन
    जीने की कला
    जो तूने सिखाई है
    माँ
    तुझे पाकर
    धन्य हो गया हूँ मै

    माँ
    तुझे पाकर
    धन्य हो गया हूँ मै
    माँ
    तुझे पाकर
    धन्य हो गया हूँ मै

    कुछ मैं लिखूं

    कुछ मैं लिखूं
    कुछ तुम लिखो
    ये दुनिया
    सुन्दर लेखनी का समंदर हो जाए
    कुछ मैं गढ़ूं
    कुछ तुम गढ़ों
    ये दुनिया खूबसूरती से सराबोर हो जाए
    कुछ मैं गाऊँ
    कुछ तुम गाओ
    ये वतन
    देश प्रेम की भावना में डूब जाए
    कुछ मैं सोचूँ
    कुछ तुम सोचो
    ये दुनिया
    मानवता के आँचल में जीवन पाए
    कुछ मैं जियूं
    कुछ तुम जियो
    ये दुनिया
    सुविचारों के बाग़ से रोशन हो जाये
    कुछ मैं बढूँ
    कुछ तुम बढ़ो
    ये दुनिया
    उपलब्धियों के समंदर में डूब जाए
    कुछ मैं कहूं
    कुछ तुम कहो
    ये दुनिया
    विहारों की पृष्ठभूमि का आधार हो जाए
    कुछ मैं उसे याद करूं
    कुछ तुम उसे याद करो
    ये दुनिया
    उस परमतत्व के साए तले जीवन पाए
    कुछ मैं संकल्प लूं
    कुछ तुम संकल्प लो
    यह दुनिया
    सच्चाई मार्ग पर अग्रसर होती जाए
    कुछ मैं आदर्श स्थापित करूं
    कुछ तुम आदर्श स्थापित करो
    ये दुनिया
    आदर्शों के झंडे तले संस्कारित व पल्लवित होती जाए
    कुछ मैं समर्पित हो जाऊं
    कुछ तुम समर्पित हो जाओ
    ये दुनिया
    आपसी सामंजस्य का आइना हो जाए
    कुछ मैं विश्राम लूं
    कुछ तुम विश्राम लो
    ये दुनिया
    इसी तरह रोशन होती जाए

    कुछ ऐसा करो

    कुछ ऐसा करो
    जिन्दगी
    खुशियों का एहसास हो जाए
    कुछ ऐसा करो
    जिन्दगी
    दूसरों की मददगार हो जाए
    कुछ ऐसा करो
    जिन्दगी
    स्वयं से अभिभूत हो जाए
    कुछ ऐसा करो
    जिन्दगी
    किसी बाग की बयार हो जाए
    कुछ ऐसा करो
    जिन्दगी
    गुलाब की तरह महके
    कुछ ऐसा करो
    जिन्दगी
    तारों सी चमक उठे
    कुछ ऐसा करो
    जिन्दगी
    दूसरों को जीवन दे सके
    कुछ ऐसा करो
    जिन्दगी
    दूसरों की जिन्दगी में बहार ले आये
    कुछ ऐसा करो
    जिन्दगी
    परोपकार का साधन हो जाए
    कुछ ऐसा करो
    जिन्दगी
    सितारों की तरह चमके
    कुछ ऐसा करो
    जिन्दगी
    कविताओं की सी रोचक हो जाए
    कुछ ऐसा करो
    जिन्दगी
    राम के आदर्शों तले जीवन पाए
    कुछ ऐसा करो
    जिन्दगी
    कृष्ण भक्ति में डूब जाए
    कुछ ऐसा करो
    जिन्दगी
    किसी और की जिन्दगी का सामान हो जाए
    कुछ ऐसा करो
    जिन्दगी
    पर्वतों सी विशाल हो जाए
    कुछ ऐसा करो
    जिन्दगी
    बीच मझधार पतवार हो जाए
    कुछ ऐसा करो
    जिन्दगी
    बारिश की बूंदों की सी पावन हो जाए
    कुछ ऐसा करो
    जिन्दगी
    प्रकृति के आँचल तले जीवन पाए
    कुछ ऐसा करो
    जिन्दगी
    ज्ञान के पावन जल से पवित्र हो जाए
    कुछ ऐसा करो
    जिन्दगी
    नानक , बुद्ध के विचारों का समंदर हो जाए
    कुछ ऐसा करो
    जिन्दगी
    पावनता की चरम सीमा पाए
    कुछ ऐसा करो
    जिन्दगी
    भावनाओं , संवेदनाओं में बहना सीखे
    कुछ ऐसा करो
    जिन्दगी
    इस मादरे वतन पर कुर्बान हो जाए
    कुछ ऐसा करो
    जिन्दगी
    संस्कृति , संस्कारों के तले जीवन पाए
    कुछ ऐसा करो
    कुछ ऐसा करो
    कुछ ऐसा करो

    प्रश्न

    प्रश्न मन में
    हर -पल हर -क्षण
    उठता है कि इन
    माया के झंझावातों से
    निजात पाऊं कैसे
    कैसे बाहर आऊँ
    इन खेलों से
    जो दिन-प्रतिदिन
    की जिन्दगी का
    एक अहम् हिस्सा
    बन गए हैं
    कैसे और किससे कहूं
    कैसे और किससे बयाँ करूं
    अपनी अंतरात्मा
    की पीर
    किससे बयाँ करूँ
    अपनी आत्मा के राज़
    चाहता क्या मैं
    और कर क्या रहा हूँ मैं
    इन मायाजालों में उलझा
    अपने अस्तित्व की लड़ाई
    लड़ रहा हूँ मैं
    मुझे खोने और पाने का
    गम नहीं है
    न ही मैं
    कर्तव्यविमुख प्राणी हूँ
    इस धरा पर
    कर्तव्य, भावनायें
    मोहपाश, बंधन
    आकर्षण, त्याग
    समर्पण
    इत्यादि इत्यादि से
    ऊपर उठना चाहता हूँ
    मैं भागता नहीं हूँ
    और न ही भागना चाहता हूँ
    मैं जीवन में स्थिरता चाहता हूँ
    स्थिरता
    आप पूछ बैठेंगे
    कि किस तरह की स्थिरता

    स्थिरता जो मन में
    शान्ति स्थापित कर दे
    स्थिरता जो सुख – दुःख के
    भवसागर से पार कर दे

    स्थिरता जो त्याग का
    पर्याय है
    स्थिरता जो आत्मा के
    विकास का आधार है

    स्थिरता जो इस नश्वर
    जीवन से ऊपर उठ
    कुछ और सोचने को
    बाध्य कर दे

    स्थिरता जो जाती , धर्म, वेश और
    राष्ट्रीयता से ऊपर उठ
    मानव से मानव के
    विकास से सुसज्जित हो
    दैनिक कार्यकलापों से ऊपर उठ
    उस ऊँचे सिंहासन की ओर बढ़ने की
    जो मानव को मानव से ऊपर
    उठा सके और
    अग्रसर कर सके
    उस दिशा की ओर
    जहां पहुँच
    मानव मोक्ष के योग्य हो
    देव तुल्य हो
    बंधन मुक्त उन्मुक्त गगन में
    विचरण करता हो

    स्थिरता जो मानव को
    देवतुल्य अनुभूति
    प्रदान करती है

    स्थिरता जो
    प्रकाशमय दीपक द्वारा
    अन्धकार को दूर कर
    उजाले की ओर प्रस्थित करती हो
    स्थिरता जो वाणी का विस्तार हो जाए
    स्थिरता जो त्याग की मूर्ती बन जाए
    मानव जीवन को संवार सके
    स्थिरता जो जीने का
    आधार हो जाए
    स्थिरता जो गुरु के
    पूज्य चरण कमलों
    के स्पर्श से देदीप्यमान हो जाए

    जब एक बच्चा

    जब एक बच्चा
    दुनिया में आता है तो
    चारों तरफ लोग
    चार होते हैं

    जब एक बच्चा रोता है तो
    उसे दुलार, प्यार व चुप कराने वाले
    चार होते हैं

    पकड़ चलता है
    जब अंगुली
    तो लोग आसपास
    चार होते हैं

    उठाकर बस्ता
    वो जब जाता है स्कूल
    तो आसपास घर के चार होते हैं

    स्कूल ने भी
    उसके मित्र
    चार होते है

    बड़ा होता है
    जब वो यौवन कि
    गली में
    किसी से उसके नैन चार होते हैं
    इन नैनों कि
    गलियों सेव जब वह
    गुजरता है तो
    आसपास बच्चे चार होते हैं

    सोता है जिस
    चारपाई
    पर वह
    उसके पाए भी चार होते हैं

    कन्धों पर
    करता है जब वो अपने
    जीवन की अंतिम सवारी
    तो कंधे चार होते हैं

    लिटाकर किया जाता है
    जहां संस्कार
    वहा पर भी कोने चार होते हैं

    चार दिनों कि
    जिंदगी की ये
    कहानी
    आदमी की जुबानी

    हो सके तो
    संभाल
    इस जिंदगी को मतलब दे
    अर्थ दे
    उचित आराम दे
    कर्म कर
    संयम धर
    मानव रह
    मानवतापूर्ण
    व्यवहार कर
    मानव के कल्याण के
    हित
    विचार कर

    जीवन संवार ले
    चार दिन
    जिंदगी के
    अर्थपूर्ण गुजार दे
    चार दिन
    जिंदगी के
    अर्थपूर्ण गुजार दे
    चार दिन
    जिंदगी के
    अर्थपूर्ण गुजार दे

    आओ मिल प्रण करैं हम

    आओ मिल प्रण करें हम
    नव जीवन मस्तक धरें हम
    करें पुष्पित संस्कृति
    करें मुखरित संस्कार
    आओ मिल प्रण करें हम

    कर्म के हम धनी हों
    भाग्य निर्माण करें हम
    नव आदर्श निर्मित करें हम
    आँधियों से न डरें हम
    आई मिल प्रण करें हम

    कलह से परे हों हम
    कर्मशील धर्मशील बने हम
    स्वतन्त्र मौलिक विचार धरें हम
    सदाचारी सत्संग वरें हम
    आओ मिल प्रण करें हम

    सर्वोत्तम कृति बनें हम
    पुण्यशील आत्मा कहें सब
    सत्कीर्ति, सत्यनिष्ठा मार्ग हो
    कार्यसाधक , स्वाभिमानी बनें हम
    आओ मिल प्रण करें हम

    सूरजमुखी सा दमकें हर पल
    सूर्य सा चमकें हर क्षण
    सुव्यवहार , सुशील, सुशिक्षित
    अनमोल जीवन बनें हम
    आओ मिल प्रण करें हम
    नव जीवन मस्तक धरें हम

    वक़्त के आँचल में

    वक़्त के आँचल में , दो पल गुजार दो
    हो सके तो अपना जीवन, संवार लो

    जिन्दगी का कोई भरोसा , नहीं होता
    किसी की जिन्दगी के , गम उधार लो

    वक़्त की अहमियत को तो जानते हो तुम
    खुद को तुम दूसरों के हित वार दो

    लक्ष्य जीवन का , दूसरों का अभिनन्दन हो
    स्वयं को दूसरों की राह के , पुष्प बना दो

    मानव संबंधों की राह को परिपक्व करो तुम
    मर्यादा के अलंकरण से खुद को संवार लो

    सद्चरित्र निर्मित करो, आदर्शपूर्ण व्यवहार करो तुम
    नैतिकता के मार्ग से , किसी का जीवन संवार दो

    अंतर्ज्ञान से अपना जीवन संवार लो
    अपनी आत्मा को इस सागर से पार लगा लो

    अनुपम कृति हो तुम, उस परमात्मा की
    उस प्रभु की इच्छा पर सब कुछ निसार दो

    वक़्त के आँचल में , दो पल गुजार दो
    हो सके तो अपना जीवन, संवार लो

    जिन्दगी का कोई भरोसा , नहीं होता
    किसी की जिन्दगी के , गम उधार लो

    तस्वीरें

    बनाई मैंने कुछ तस्वीरें
    पसंद नहीं आईं किसी को
    कुछ तस्वीरों में
    हाथ नहीं
    कुछ में पैर नहीं
    कहीं एक आँख में दृष्टव्य
    आदमी
    कहीं जलते हाथ को
    ठंडक देने के प्रयास में
    एक औरत
    कहीं दहेज के नाम पर
    रस्सी पर झूलती
    सुंदर नारी
    कुछ चरित्र
    अनमने से
    अपने विचारों
    में खोये
    शायद जीवन को
    समझने की
    कोशिश में
    कुछ बुत बने
    जीवन पाने की
    लालसा में
    वर्षों से बिस्तर पर
    कोमा की सी
    स्थिति में
    कुछ कर्म के मर्म को
    जानने के प्रयास में
    कर्मरत दीखते हुए
    कुछ तस्वीरें ऐसी
    जिसमे मानव
    मानव को समझाने का
    असफल प्रयास करता हुआ
    कहीं दूसरी और
    नारी की
    व्यथा
    समाज पर
    प्रहार करती हुई
    एक तस्वीर
    ऐसी
    जो सदियों से
    हो रहे
    सामाजिक परिवर्तन
    को दर्शाती
    जिसमे पुरुष का वर्चश्व
    नारी की व्यथा
    संस्कृति का पतन
    संस्कारों की घुटन
    सभ्यता के विकास का
    लचर प्रदर्शन
    आधुनिकता की और
    बढ़ने का दंभ
    ये तस्वीरें
    किसी को पसंद नहीं आईं
    आज का आधुनिक समाज
    आधुनिक कला
    समझता है
    जिसका अर्थ
    केवल चित्रकार ही बेहतर समझता है
    केवल चित्रकार ही बेहतर समझता है

    विलक्षण मानव

    विलक्षण योग्यता से परिपूर्ण मानव
    असाधारण उपलब्धियों के साथ
    अवतरित मानव
    धरती पर जन्म लेना ही
    धरती पर जी रहे साधारण
    मानव के जीवन में
    बस रहे अँधेरे को
    उजाले में परिवर्तित
    करने की ओर
    एक शुभ संकेत होता है
    यह शुभ संकेत
    उस साधारण व विलक्षण
    आत्मा के जन्म के समय ही
    कुछ ऐसे शुभ संकेत देता है
    जिससे वह बालक शिशु के
    आते ही चारों ओर ख़ुशी और रोशनी
    या फिर देव अवतार के जन्म
    का आभास होता है
    बाल्यकाल से ही
    ऐसे बालक के भीतर विद्यमान
    चारित्रिक विशेषतायें
    हमें दृष्टिगोचर होने लगती है
    उसके द्वारा
    पल- पल स्थापित
    किये जाने वाले आदर्श
    हमें सुखमय एवं एक सुनियोजित
    व संकल्पित जीवन
    जीने को प्रेरित करते हैं
    इनकी युवावस्था
    हमें राम के आदर्शों ,
    विवेकानंद जैसे समर्पित विचारों
    कृष्ण के से धार्मिक उद्गारों
    रामकृष्ण परमहंस जैसे भक्तिपूर्ण
    संस्कारों का संस्मरण कराते हैं
    ऐसी विलक्षण शक्तियां ,
    ऐसी शक्तिपुंज आत्मायें
    हर- पल हर- क्षण
    हमें किसी न किसी रूप में
    कुछ न कुछ सन्देश अवश्य देती हैं
    उनके विचारों में
    उनके मौन में
    उनकी हर क्षण हो रही क्रियाओं में
    कुछ न कुछ व कोई न कोई
    सन्देश अवश्य होता है
    जीवन का अन्तकाल
    इनके स्वयं के सुकर्मों के
    माध्यम से अर्जित ऊर्जा व शक्तिपुंज
    जिसके सहारे ही
    ये हमारे बीच
    चिरकाल तक जीवित व अमर रहते हैं
    इन्हें हम भगवान् कहते हैं
    इन्हें हम खुदा कहते हैं
    इन्हें हम सच्चे बादशाह कहते हैं
    इन्हें हम जीसस क्राइस्ट कहते हैं
    इन्हें हम पीर फ़कीर कहते हैं
    इन्हें हम आदि शंकराचार्य कहते हैं
    पर सच तो यही है
    कि ये विलक्षण मानव है
    ये वे असाधारण मानव हैं जो
    समाज में व्याप्त
    अँधेरे , कुरीतियों , बुराइयों
    पर सच का मलहम लगा
    उस पर धर्म व भक्ति का
    चोला चढ़ा
    सत्कर्म को प्रेरित करते हैं
    ये साधारणमानव को
    असाधारण मानव व आदर्शपूर्ण
    मानव में बदलने के लिए ही
    अवतरित होते हैं
    ऐसी पुण्यमूर्ति परमात्म विभूतियों को प्रणाम है
    इन परम पूज्य विभूतियों का अभिनन्दन है

    सत्य पर कविता

    सत्य की बातें करो तुम
    सत्य जीता हर सदी में
    सत्य खोज एक जटिल विषय
    मांगता अनगिनत परीक्षण
    सत्य प्राप्ति के चरण में
    सत्य पढ़ो तुम सत्य गुनो तुम
    सत्य देखो सत्य बुनो तुम
    सत्य नहीं परिकल्पना
    सत्य अवलोकन सत्य राह पर
    सत्य राह निर्मित करो तुम
    आँधियों से मत डरो तुम
    डगमगाना छोडकर
    सत्य का पीछा करो तुम
    सत्य मन का अमिट बिंदु
    गढ़ सको तो गढो तुम
    जियो सत्य में मरो सत्य में
    सत्य चहुँ और व्याप्त
    आत्मा परमात्मा में
    प्राप्त कर
    जीवन बनो तुम
    सत्य जीता हर सदी में
    सत्य की बातें करो तुम

    प्रकृति

    सोचता हूँ
    प्रकृति कितनी महान है
    जहां
    पंखुड़ियों का खिलना
    प्रातः काल मे जीवन के
    पुष्पित होने का
    आभास देता है
    पेड़ों पर पुष्पों का खिलना
    हमारे चारों और
    शुभ का संकेत देता है
    पुष्प का फल मे परिवर्तित होना
    हमारे आसपास किसी नए मेहमान के
    आने का प्रतीक है
    सोचता हूँ हवाओं से
    पेड़ों का बार-बार हिलना
    झुकना और फिर खड़े हो जाना
    किस बात की और
    संकेत देता है
    निष्कर्ष से जाना कि
    ये हवाएं जिंदगी के थपेड़ों का निष्कर्ष है
    मुसीबतें हैं
    घटनाएं हैं
    जो हमें
    समय समय पर आकर
    जीवन को मुश्किलों मे भी डटकर
    कठिनाइयों का सामना कर
    नवीन अनुभव देकर
    जीवन को पुष्पित करती है

    एक बात जो मुझे कचोट जाती है
    टीस देती है वह है
    पेड़ों से फलों का टूटकर गिरना
    जो जिंदगी के अंतिम सत्य
    कि और इशारा करता है
    और कहता है
    जीवन यहीं तक है और इसके बाद
    पुनः नया जीवन
    चूंकि
    जब फल बीज
    बारिश का आश्रय पाकर
    पुनः अंकुरित होंगे
    और पुनः एक नवीन पोधे
    का निर्माण होगा
    यह जीवन चक्र यूँ ही चलता रहेगा
    हर छण हर युग
    आने वाली पीढ़ी
    को पुष्पित करता रहेगा

    मेरी कलम से पूछो

    मेरी कलम से पूछो

    कितने दर्द समाये हुए है

    मेरी कलम से पूछो

    आंसुओं में नहाये हुए है

    जब भी दर्द का समंदर देखती है

    रो पड़ती है

    सिसकती साँसों से होता है जब इसका परिचय

    सिसक उठती है

    ऋषिगंगा की बाढ़ की लहरों में तड़पती जिंदगियां देख

    रुदन से भर उठती है

    मेरी कलम से पूछो

    कितनी अकाल मृत्युओं का दर्द समाये हुए है

    वो कली से फूल में बदल भी न पाई थी

     रौंद दी गयी

    मेरी कलम से पूछो

    उसकी चीखों के समंदर में डूबी हुई है

    मंजिल

    एक संकरी
    गले में
    कठिन रास्ते पर
    आगे बढ़ता हुआ
    अँधेरे में
    उजाले को टटोलता
    मंजिल पाने की चाह में
    बढ़ता जा रहा हूँ मैं
    दृढ़ इच्छा शक्ति
    मुझे
    आगे की ओर
    बढ़ने को
    प्रेरित करती है
    मुझे सफल होना ही है
    ये विचार
    मुझे बल देते हैं
    ऊर्जा देते हैं
    मैं वीर्यवान , शक्तिमान
    के साथ – साथ
    ज्ञानवान बन
    देदीप्यमान बन
    अग्रसर हो
    पथ पर
    बढ़ता जा रहा हूँ
    समय पर
    कुछ न छोड़
    समय को
    स्वर्णिम अवसर में
    परिवर्तित करने को उत्सुक
    बिना विचलित हुए
    इतिहास
    रचने की ओर
    अग्रसर हो रहा हूँ मैं
    ध्रुव नहीं मैं
    किंचित उसकी ही तरह
    उस आसमां पर
    चमकने की चाह में
    सफलता की सीढियां
    चढ़ने की
    कोशिश में
    आगे बढ़ रहा हूँ मैं
    तुम भी
    अपने प्रयास से
    गढ़ सको तो
    गढो इतिहास
    बना दो
    इस धरा को
    प्रकाशवान
    मुक्त कर
    नभाक से
    फैला चांदनी
    इस धरा को
    जीवनदायिनी
    बना दो
    कुछ पुष्प खिला दो
    कुछ रंग भर दो
    चहुँ ओर
    प्रेममय शांति कर दो
    प्रेममय शांति कर दो
    प्रेममय शांति कर दो

    अजब पैसों की खुमारी है सर पर

    अजब पैसों की खुमारी है सर पर

    कहीं बहुमंजिला इमारत की खुमारी है सर पर

    तार – तार हो रहे हैं रिश्ते

    कहीं अहं को खुमारी है सर पर

    क्यूं कर नहीं निभाते नहीं हैं वो रिश्ते

    विदेशों में बसने की खुमारी है सर पर

    भाई ने भाई का सर दिया है फोड़

    जायदाद के लालच की खुमारी है सर पर

    बहनों को पराया कर दिया है उन्होंने

    जायदाद लूट खाने की खुमारी है सर पर

    माँ – बाप वृद्धाश्रमों की ख़ाक छानते हैं

    आजाद जिन्दगी की खुमारी है सर पर

    सिसकती साँसों के दर्द से कुछ लेना नहीं है इनका

    अजब बिंदास जिन्दगी की खुमारी है सर पर

    पैसों की गर्मी सर चढ़ बोलती है

    रिश्तों को तोलने की खुमारी है सर पर

    सत्य पथ अब पथ विहीन क्यों ?

    सत्य पथ अब
    पथ विहीन क्यों ?
    सत्य राह
    चंचल हुई क्यों
    सत्यमार्ग
    सूझता नहीं क्यों
    असत्य सत्य पर
    भारी है क्यों ?
    कर्म धरा अब
    चरित्र विहीन महसूस हो रही
    शोर्टकट लगता
    अब प्यारा क्यों ?

    कर्महीन महसूस होता
    हर एक चरित्र क्यों ?
    नारी अपनी व्यथा पर
    समाज में
    रोती है क्यों ?
    पुरुष समाज में
    अपनी छवि
    खोता सा
    दिखता है क्यों
    धर्म पथ पर
    काम पथ का
    प्रभाव पड़ता सा
    दिखता है क्यों ?

    शर्मिंदगी की घबराहट
    अब अनैतिक
    चरित्रों के चहरे पर
    झलकती नहीं है क्यों ?
    धर्म्कांड व कर्मकांड
    के नाम पर
    परदे के पीछे
    काम काण्ड की
    महिमा गति
    पकड़ रही है क्यों ?
    फूलों में अब
    पहली सी
    खुशबू रही नहीं है क्यों ?
    उलझा – उलझा
    परेशान सा
    हर एक चरित्र
    महसूस
    हो रहा है क्यों ?

    मानवता
    गली – गली
    आज शर्मशार
    हो रही है क्यों ?
    आज नारी
    हर दूसरे चौक पर
    बलात्कार का शिकार
    हो रही है क्यों ?
    युवा पीढ़ी
    आज की
    पथभ्रष्ट
    हो रही है क्यों ?
    समाज में
    आज
    वृद्ध आश्रमों की
    संख्या में
    बढ़ोत्तरी
    हो रही है क्यों ?

    पल –पल होती लूट
    और हत्याओं की
    घटनाओं से
    मानव रूबरू हो
    रहा है क्यों ?
    आज प्रकृति
    अपने विकराल
    रूप में
    हमारे सामने
    आ खड़ी हुई है क्यों ?

    सुनामी – कैटरीना
    भूकंप , ज्वालामुखी
    के शिकार
    मानव हो रहे है क्यों ?
    वर्तमान सभ्यता
    आज
    अपने अंत के
    द्वार पर खड़ी हुई है क्यों ?
    द्वार पर खड़ी हुई है क्यों ?
    द्वार पर खड़ी हुई है क्यों ?

    अपनी कलम को न विश्राम दो

    अपनी कलम को न विश्राम दो

    कुछ और नए पैगाम दो

    सोये हुओं को नींद से जगाओ

    चिंतन को न विश्राम दो

    सपनों को कलम से सींचो

    मंजिलों का पैगाम दो

    भटक गए हैं जो दिशा से

    उन्हें सत्मार्ग का पैगाम दो

    जो चिरनिद्रा में लीन हैं

    उन्हें सुबह के सूरज का पैगाम दो

    दिशाहीन हो गए हैं जो

    उन्हें सही दिशा का ज्ञान दो

    विषयों का कोई अंत नहीं है

    कलम से उसे पहचान दो

    चीरहरण पर खुलकर लिखो

    कुरीतियों पर ध्यान दो

    बिखरी – बिखरी साँसों को

    एक नया पैगाम दो

    जिन्दगी एक नायाब तोहफा

    ऐसा कोई पैगाम दो

    क्यूं कर टूटे रिश्तों की डोर

    सामाजिकता का पैगाम दो

    रिश्तों की मर्यादा हो सलामत

    ऐसा कुछ पैगाम दो

    अपनी कलम को पोषित करो

    उत्तम विचारों की पूँजी दो

    चीखती बुराइयों पर प्रहार कर

    समाज को पैगाम दो

    चिंतन का एक सागर हो रोशन

    अपनी कलम को इसका भान दो

    पीर दिलों की मिटाओ

    मुहब्बत का पैगाम दो

    प्रकृति पर कविता

    सोचता हूँ प्रकृति
    कितनी महान है जहां
    पंखुड़ियों का खिलना
    प्रातः काल में
    जीवन के
    पुष्पित होने का
    आभास होता है

    पेड़ों पर पुष्पों का होना
    हमारे चारों ओर
    शुभ का संकेत होता है

    पुष्प का फल में
    परिवर्तित होना
    हमारे आसपास
    किसी नए मेहमान के
    आने का प्रतीक है

    सोचता हूँ
    हवाओं से
    पेड़ों का बार बार
    हिलना, झुकना
    और फिर खड़े हो जाना
    किस बात की ओर
    इंगित करते हैं

    निष्कर्ष से जाना
    कि ये हवायें
    जिंदगी के थपेड़े हैं
    मुसीबतें हैं, घटनायें हैं
    जो हमें समय – समय पर आकर
    जीवन को मुश्किलों में भी
    डटकर कठिनाइयों
    का सामना कर
    नवीन अनुभव देकर
    जीवन को पुष्पित करती है

    एक बात
    जो मुझे कचोट जाती है
    टीस देती है
    वह है पेड़ों पर से
    फलों का टूटकर गिरना
    जो जिंदगी के
    अंतिम सत्य की ओर
    इशारा करता है

    जीवन यहीं तक है
    और इसके बाद
    पुनः नया जीवन
    चूंकि
    जब फल के बीज
    बारिश की बूंदों
    का आश्रय पाकर
    पुनः अंकुरित होंगे
    और पुनः एक
    नवीन पौध का
    निर्माण होगा

    यह जीवन चक्र
    यूं ही चलता रहेगा
    हर क्षण हर युग
    आने वाली पीढ़ी को
    पुष्पित करता रहेगा

    अंतिम लक्ष्य अकेले पाना

    अंतिम लक्ष्य, अकेले पाना
    अन्धकार से, डर ना जाना।

    अविकार, अशंक बढ़ो तुम
    अविवेक का, त्याग करो तुम।

    अविनाशी, अविराम बढ़ो तुम
    कर अचंभित, राह गढ़ों तुम।

    आमोदित, आयास करो तुम
    निरंतर, प्रयास करो तुम।

    आस्तिक बन, आराधना करो तुम
    शोभनीय कुछ, काम करो तुम।

    अभिलाषा न, ध्यान धरो तुम
    अप्रिय से नाता न जोड़ो।

    बन अनमोल, कुछ नाम करो तुम
    अन्यायी का साथ न देना।

    अनुचित शब्दों का साथ न लेना
    अनमोल, अशोक बनो तुम।

    अर्चना, अशुभ से पल्ला झाड़ो
    शुभ , शांत व्यवहार करो तुम।

    अक्षय बन, अच्छाई करो तुम
    अवसान का, ध्यान धरो तुम।

    अपजय से, दूर रहो तुम
    अंजुली अमृत, पान करो तुम।

    अंतर जगा, आरोह करो तुम
    शुभ संकेत, जीवन धरो तुम।

    जीवन का, आधार बनो तुम
    सत्य राह, निर्मित करो तुम।

    अंतिम लक्ष्य, अकेले पाना
    अन्धकार से, डर ना जाना।

    अविकार, अशंक बढ़ो तुम
    अविवेक का, त्याग करो तुम।

    जाग मुसाफिर

    जाग मुसाफिर सोच रहा क्या
    जीवन एक राही के जैसा
    कहीं शाम तो कभी सवेरा
    कहीं छाँव तो धूप कहीं है

    बिखरा-बिखरा सा सबका जीवन
    चलते रहना चलते रहना
    रुक ना जाना आगे बढ़ना
    जाग मुसाफिर सोच रहा क्या

    राह कठिन हो भी जाए तो
    हौसले का दामन पकड़ना
    चीर कर मौजों की हवाओं को
    तुझे है मंजिल पार जाना

    रुकना तुझे नहीं है
    न ही तुझे है घबराना
    चलना तेरी नियति है
    रुकना है तुझको मंजिल पर

    कभी गर्म हवाओं से लड़कर
    कभी सर्द का कर सामना
    आएगी बाधाएं रोड़ा बनकर
    पीछे मुड़ कभी न देखना

    जाग मुसाफिर सोच रहा क्या
    जीवन एक राही के जैसा
    कभी शाम तो कहीं सवेरा
    राह में पल – पल ठोकर होंगी

    पैरों के छाले बन नासूर सतायेंगे
    चूर- चूर होगा तेरा तन
    मन भी तेरा साथ न देगा
    रात की काली छाया भारी

    करेगी इरादों को पस्त
    फिर भी तुझको रुकना न होगा
    मस्त चाल से बढ़ना होगा
    जाग मुसाफिर सोच रहा क्या

    जीवन एक राही के जैसा
    कहीं शाम तो कहीं सवेरा
    कहीं शाम तो कहीं सवेरा

  • नववर्ष पर हिंदी कविता

    नववर्ष पर हिंदी कविता

    इस वर्ष नववर्ष पर कविता बहार द्वारा निम्न हिंदी कविता संकलित की गयी हैं आपको कौन सा अच्छा लगा कमेंट कर जरुर बताएं

    नववर्ष पर हिंदी कविता

    नववर्ष पर हिंदी कविता : महदीप जँघेल

    निशिदिन सुख शांति की उषा हो,
    न शत्रुता, न ही हो लड़ाई।
    प्रेम दया करुणा का सदभाव रहे,
    सबको नववर्ष की हार्दिक बधाई।

    विश्व बंधुत्व की भावना हो विकसित,
    भाईचारा और प्रेम की हो पढाई।
    प्रेम से जियो और जीने दो सभी को,
    सबको नववर्ष की हार्दिक बधाई।

    सदियों से विश्व गुरु रहा है भारत,
    शांति व शिक्षा की जोत है जगाई।
    संस्कृति सभ्यता की नित रक्षा करें,
    सबको नववर्ष की हार्दिक बधाई।

    निर्धनों व असहायों की मदद कर,
    जीवन में करें पुण्य की कमाई।
    मानव जीवन को सार्थक बनाएँ,
    सबको नववर्ष की हार्दिक बधाई।

    नशा,ईर्ष्या,मद, लोभ, त्याग दे,
    अहंकार प्रतिकार त्यागें हर बुराई।
    नेक कर्म कर कुछ नाम कमाएं,
    सबको नववर्ष की हार्दिक बधाई।

    नारियों का सम्मान करें हम,
    ये सब कसम खा ले हर भाई।
    दया धर्म और मान रखे हम,
    सबको नववर्ष की हार्दिक बधाई।

    महदीप जँघेल
    ग्राम- खमतराई
    वि.खँ- खैरागढ़,राजनांदगांव
    छत्तीसगढ़

    नई साल पर कविता

    (दोहा छंद)
    नई ईसवी साल में, बड़े दिनों की आस।
    .
    स्वागत नूतन वर्ष का, करते भाव विभोर।
    गुरु दिन भी होने लगे, मौसम भी चित चोर।।
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    माह दिसंबर में रहे, क्रिसमस का त्यौहार।
    संत शांता क्लाज करे, वितरित वे उपहार।।
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    सकल जगत में मानते, ईसा ईश महान।
    चला ईसवीं साल भी, इसका ठोस प्रमान।।
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    साज सज्ज सर्वत्र हो, खूब मने यह रीत।
    रहना मेल मिलाप से, भली निभाएँ प्रीत।।
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    ईसा के उपदेश का, सब हित है उपयोग।
    जैसे सब के हित रहे, प्राणायाम सुयोग।।
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    देख सुहाना दृश्य कवि, गँवई, मंद,गरीब।
    भाव उठे मन में कई, करते नमन सलीब।।
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    नूतन वर्ष विकास की, संगत क्रिसमस रात।
    गृह लक्ष्मी दीपावली , सजे उजाले पाँत।।
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    उच्च मार्ग देखें निशा , मन में उठे विचार।
    सुन्दर पथ ऐसा लगे, इन्द्र लोक पथ पार।।
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    ऊँचे चढ़ते मार्ग से, लगता हुआ विकास।
    लगातार ऊँचे चढ़े, छू लें चन्द्र प्रकाश।।
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    नीचे सागर पर्व सा, ऊपर लगे अकाश।
    तारक गण सी रोशनी, फैले निशा प्रकाश।।
    .
    नभ को जाते पंथ को, खंभ रखें ज्यों शीश।
    नव विकास सदमार्ग की, राह बने वागीश।।
    .
    आए शांता क्लाज जो, शायद यही सुमार्ग।
    उपहारों से पाट दें, गुरबत और कुमार्ग।।
    .
    शहर सिंधु सरिता खड़े, ऐसे पुलिया पंथ।
    लगते पंख विकास के, त्यागें सभी कुपंथ।।
    .
    नई ईसवीं साल का , नया बने संकल्प।
    तमस गरीबी क्यों रहे, नवपथ नया विकल्प।।
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    अभिनंदन नव साल का, करिए उभय प्रकार।
    युवकों संग किसान के, श्रमी सपन साकार।।
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    बिटिया प्राकृत शक्ति है, बढ़े प्रकाशी पंथ।
    पथ बाधाओं रहित हो, उज्ज्वल भावि सुपंथ।
    .
    सत पथ भावी पीढियाँ, चलें विकासी चाल।
    सबको संगत लें बढ़ें, रखलें वतन खयाल।।
    .
    नये ईसवीं साल में, बड़े दिनों की आस।
    रोजगार अवसर मिले, नूतन पंथ विकास।।
    .
    जीवन में किस मोड़ पर, हों खुशियाँ भरपूर।
    साध चाल चलते चलो, दिल्ली क्यों हो दूर।।
    .
    विकट मोड़ घाटी मिले, अवरोधक भी साथ।
    पार पंथ खुशियाँ मिले, धीरज कदमों हाथ।।
    .
    सड़क पंथ जड़ है भले, करते हैं गतिमान।
    सही चाल चलते चलो, नवविकास प्रतिमान।
    .
    पथ में अवरोधक भले, पथ दर्शक भी होय।
    पथिक,पंथ मंजिल मिले, सागर सरिता तोय।
    .
    उच्च मार्ग अवधारणा, सोच विचारों उच्च।
    जातिवर्ग मजहब नहीं,उन्नति लक्ष्य समुच्च।।
    .
    पाँव धरातल पर रहें, दृष्टि भले आकाश।
    चलिए सतत सुपंथ ही, होंगे नवल विकास।।
    .
    रोशन करो सुपंथ को, सुदृढ स्वच्छ विचार।
    रीत प्रीत विश्वास का, करिए सदा प्रचार।।
    .
    नई साल नव पंथ से , मिले नए सद्भाव।
    दीन गरीब किसान के, अब तो मिटे अभाव।।
    .
    नव पथ नूतन वर्ष के, संकल्पी संदेश।
    नूतन सृजन सँवारिए, नूतन हो परिवेश।।
    .
    क्रिसमस का त्यौहार है, सर्व देश परदेश।
    सबको ये खुशियाँ रहें, मिले न दुखिया वेश।!
    .
    शांता क्रिसमस में बने, जैसे दानी कर्ण।
    दीन हीन दिव्यांग को, लगता अन्न सुवर्ण।।
    .
    बनो शांता क्लाज करो, उपहारी शृंगार।
    मानव बम आतंक सब, करदें शीत अंगार।।
    .
    नव पथ नूतन साल के, लिख दोहे इकतीस।
    शर्मा क्रिसमस पे करे, नमन मसीहा ईस।।


    © बाबू लाल शर्मा “बौहरा”, विज्ञ

    नव वर्ष का अभिनंदन

    १)
    बीते लम्हों की तरह
    अब के पल यूँ  ना बीत जाए
    तो आओ कुछ इरादों को ,कुछ वादों को
    संकल्पों से पूरा करें
    मस्त होकर जन-जन।
    नव वर्ष का अभिनंदन।।


    २)
    दुख के घड़ी  बहुत बितायें
    अब कुछ अच्छा हो जीवन में
    हमें नित प्रगति  करना है
    गांधी मत की संगति करना है
    तोड़ परवश का बंधन।
    नव वर्ष का अभिनंदन।।

    ३)
    गुजरे जमाने को दबाए हुए
    इतिहास के पन्नों पर।
    खुली किताब रहे नया जमाना
    ताकि भीनी खुशबू से उड़े,
    प्रेम ,अहिंसा ,अमन।
    नव वर्ष का अभिनंदन।।


    ४)
    चेहरों पर मुस्कान खिले
    मन के सारे ग़म घुले
    सजाये ऐसी काव्य रंगोली
    बने रात दीवाली और दिवस होली
    हंसे निश्छल,जैसे कोई बचपन।
    नव वर्ष का अभिनंदन।।


    ✒️ मनीभाई’नवरत्न’

    आज लगने लगा मौसम नया

    आज लगने लगा मौसम नया ,
    नई कुछ बात है ।
    सूरज की रज को छेड़ती
    शबनम की बरसात है।
    खिल उठे सबके मन की कली
    हुई कैसी करामात है।
    थिरक रहा गगन पवन
    गा रहा डाल पात है ।
    जुड़ रहे सब के दिल यहां
    बंध रहा एक एक नात है।
    उत्सव मनाता जन-जन
    मानो इस साल की बारात है।
    और सही तो है नव वर्ष आया
    दूल्हे की तरह ।
    और शायद इसी वजह ।
    टूट रहे हैं सबके मन के बंधन।
    मेरी तरफ से आप लोगों को
    “नव वर्ष का अभिनंदन”।

     मनीभाई ‘नवरत्न’, 

    नव वर्ष का अभिनंदन

    सांसे चलना भूल जाये
    दिल धड़कना भूल जाये
    सूरज चमकना भूल जाये
    पानी बहना भूल जाये
    कोई परवाह नही,कोई शिकवा नही
    मगर तू भूल जाये
    एक पल,एक लम्हा के लिए
    मुझे यह गवारा नही
    ना भूलो तुम,ना भूले हम
    ना भूले ये रिश्ता अपनी बंधन
    नव वर्ष की अभिनंदन ।

    मनीभाई नवरत्न

    हैप्पी न्यू ईयर

    लम्हा-लम्हा फिसल चला है ,समय की डोर।
    छोड़ो भी जाने दो ,आ गई उजली भोर ।
    दिल तो खुशियां चाहे ,ज्यादा ज्यादा मोर ।
    आज अभी जो मिला है ,मिलेगा क्या और?
    तो चले आओ मेरे निअर,
    नाचो गाओ मेरे डियर ।
    सेलिब्रेट करेंगे ….बोलके चीअर।
    हैप्पी न्यू ईयर, हैप्पी न्यू ईयर।
    ओ माय डिअर , सेलिब्रेट विथ चीयर ।
    हैप्पी न्यू ईयर, हैप्पी न्यू ईयर।

    मनीभाई नवरत्न

    नव वर्ष आया सखी

    शीतल बयार लिये,
           नूतन श्रृंगार किये,
                  नव वर्ष आया सखी,
                           कलश  सजाइए !
    नव उपहार लिये,
         नवल निखार लिये,
                 खुशियाँ अपार लिये,
                              आनंद मनाइए!
    बागन बहार लिये
            फूलन के हार लिये,
                  भ्रमर गुंजार लिये
                               तोरण बंधाइए!
    सुमन सुगंध लिये,
         नव मकरंद लिये,
                 हृदय उमंग लिये,
                          उत्सव मनाइए!
    विगत बिसार दीजे
         अनुभव सार लीजे
                श्रम अंगीकार कीजे
                            आगे बढ़ जाइए।
    छल छिद्र त्याग कर,
           राग द्वेष राख कर,
                    निर्मल हृदय धर,
                               प्रेम अपनाइए!
    काम ऐसे नेक करें,
         उन्नति की सीढ़ी चढ़ें,
                  देश व समाज बढ़े,
                          सोचिए विचारिए!
    स्वार्थ भाव फेंक कर,
           विनय विवेक  भर ,
                    राष्ट्र के विकास का जी
                                 संकल्प बनाइये!

                 ——— सुश्री गीता उपाध्याय

    स्वागत नव वर्ष

    स्वागत नव वर्ष , नूतन रहे हर्ष
    स्वागत तुम्हारा , सहर्ष नव वर्ष
    नूतन वर्ष का फैला रहे उजास ,
    नव वर्ष में हो अब , नया उत्कर्ष ।
    दे दो तुम ऐसा अब , सुधा अमृत
    पुराना सभी हो जाए , विस्मृत
    नसीब बदल जाए , सबका अब तो ,
    काम होने लगें सभी के , उत्तम ।
    नयी सोच विचार , नया हो अंदाज़
    कर दें पुराने को , नजरअंदाज
    ईर्ष्या , छल – कपट , निकालें मन से ,
    रह न पाये अब , कोई धोखेबाज़ ।
    भर लो नव चेतना , हर्षोल्लास
    नज़दीकियाँ सभी को , आएँ रास
    मुस्काते चेहरे खिलें , फूल सम ,
    खुशियाँ लाएँ , पूरी हो हर आस ।
    सुख – समृद्धि हो , कायम शांति हो
    सुख सपनों में , नयी क्रांति हो
    मानवता का दीप , जले हर ओर ,
    नव वर्ष में , कोई भी न भ्रांति हो ।
    हरित हरियाली लिए , हो संसार
    छाये जीवन में , चहुँ ओर बहार
    नूतन वर्ष का करने , अभिनंदन ,
    शुभकामना देते , हम बार – बार ।

    रवि रश्मि ‘ अनुभूति ‘

    नये साल की शुभकामना

    विधान :—    सुगीतिका छंद ( 25 मात्रा )
           आदि लघु (1)पदांत दीर्घ लघु (21)
                         यति (15,10 )

    गुजरते पुराने साल का,
                            हृदय से आभार।
    नये साल की शुभकामना,
                            कीजिए स्वीकार।

    अबतक जो अनुभव मिले हैं
                              रखेंगे वह याद।
          कुछ नया फिरसे करने का,
                              करके शंखनाद।
          शुभ भावों से हृदय भरकर,
                                 करें मंगलचार।
    नये साल की शुभकामना,
                              कीजिये स्वीकार!

    हम विगत पलों से सीख ले,
                            कर नवल अनुमान।
    नव पथ पर चल पड़े हैं अब,
                             नव सृजन की ठान।
    नयी सोच लेकर बढ़ चले,
                                   भर प्रेम उद्गार।
    नये साल की शुभकामना,
                                कीजिये स्वीकार।

    शुभमय हो आपका हर पल,
                             मिले सुख उपहार।
    खुशियों से हो दामन भरा,
                             मिले न कभी हार।
    सदाचार जीवन में भरे,
                              करें सब उपकार।
    नये साल की शुभकामना,
                              कीजिये स्वीकार!

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                     ✍सुश्री गीता उपाध्याय

    स्वागत! जीवन के नवल वर्ष

    स्वागत! जीवन के नवल वर्ष
    आओ, नूतन-निर्माण लिये
    इस महा जागरण के युग में,
    जागृत जीवन अभिमान लिये।

    दीनों-दुखियों का मान लिये,
    मानवता का कल्याण लिये।
    स्वागत! नवयुग के नवल वर्ष
    तुम आओ स्वर्ण-विहान लिये।

    संसार क्षितिज पर महाक्रान्ति
    की चालाओं के गान लिये,
    मेरे भारत के लिए नई
    प्रेरणा, नया उत्साह लिये;

    मुर्दा शरीर में नये प्राण
    प्राणों में नव अरमान लिये,
    स्वागत! स्वागत! मेरे आगत!
    तुम आओ स्वर्ण-विहान लिये।

    युग-युग तक नित पिसते आये,
    कृषकों को जीवन-दान लिये,
    कंकाल मान रह गये शेष,
    मज़दूरों का नव माण लिये।

    श्रमिकों का नव संगठन लिये,
    पददलितों का उत्थान लिये,
    स्वागत ! स्वागत! मेरे आगत
    आओ तुम स्वर्ण विहान लिये।


    जीवन की नूतन क्रान्ति लिये
    क्रान्ति में नये-नये बलिदान लिये
    स्वागत ! जीवन के नवल वर्ष
    आओ, तुम स्वर्ण-विहाल लिये।

    नव वर्ष का सवेरा

    नये साल का आया पावन सवेरा
    पावन पवित्र कर दे मन तेरा मेरा |

    फूलों सा कलियों सा मन मुस्करायें
    भौंरों के गीतों सा हम गुनगुनायें
    धरती गगन गूंजें चिड़ियों का कलरव
    आओ मन की माला में हम गूथ जायें

    मोहक मनोहर लगे दुनिया प्यारा |
    नये साल का आया पावन सवेरा ||

    अम्बर के रंगों से धरती सजायें
    पतंगों के तारों से नभ जगमगाये
    नदियों के निर्मल धारा सा जीवन
    झरनों के जल सा प्रेम झरझरायें,

    नूतन हवा नव बहे जीवन धारा |
    नये साल का आया पावन सवेरा ||

    अरुण लालिमा का तिलक हम लगायें
    सफलता के पथ पर कदम हम बढ़ायें
    सुखमय सुनहरा नवल प्रवाह पल में
    कठिन जिंदगी को सरल हम बनायें,

    सुख समृद्धि का हो दिल में बसेरा |
    नये साल का आया पावन सवेरा ||

    हरियाली फसलों सा तन झूम जाए
    धन धान्य से पूर्ण आंगन मन भाये
    सफलता कदम चूमती जाये हर पल
    नव वर्ष की ढेरों शुभकामनाएं |

    मिटेगा गमों का कुहासा अंधेरा |
    नये साल का आया पावन सवेरा ||

    रचनाकार-रामबृक्ष बहादुरपुरी,अम्बेडकरनगर

    नए साल की सबको शुभ मंगल बधाई

    सुबह सवेरे कूकी कोयल चिड़िया चहचहाई
    आँखें खुलते ही नई नवेली पहली किरण मुस्काई
    मेरे दिल की गहराइयों से सबसे पहले
    नए साल की सबको शुभ मंगल बधाई

    धरती पर ओस की चादर लिपट लिपट आई
    बाग में खिली कली खुलकर खिलखिलाई
    देखो नाच-नाच कर तितलियाँ भी दे रही
    नए साल की सबको शुभ मंगल बधाई

    ठंडी हवा ने चारों तरफ अपनी हुकूमत जमाई
    पर बच्चे-बूढ़े सबने छोड़ी अपनी-अपनी रजाई
    दीवानों सा जोश लेकर देने निकले हैं सभी
    नए साल की सबको शुभ मंगल बधाई

    नए साल के स्वागत में सबने पलकें हैं बिछाई
    सभी बालाओं ने द्वार पर रंगोली है बनाई
    झूम झूम कर मस्ती में दे रहे हैं सारे
    नए साल की सबको शुभ मंगल बधाई

    फोड़े पटाखे बच्चों ने फुलझड़ियाँ जलाई
    ठूँस-ठूँस कर खिला रहे एक दूजे को मिठाई
    सबकी जुबान पर चढ़ा है बस एक ही राग
    नए साल की सबको शुभ मंगल बधाई

    मंदिर में मूरत के आगे सब ने कतार लगाई
    श्रद्धा सुमन अर्पित कर ईश्वर की वंदना गाई
    शुभ मंगल प्रीतिमय आशीष की कामना संग
    नए साल की सबको शुभ मंगल बधाई

    आशीष कुमार
    मोहनिया, कैमूर, बिहार

    नव वर्ष पर कुण्डलिया छन्द

    आया  नूतन  वर्ष यह ,चहुँ दिश भरा उमंग l
    हुआ  प्रफुल्लित  देख  मन ,सदा रहे ये रंग ll
    सदा  रहे  ये  रंग , मिलें  खुशियाँ  मनचाहीं I
    रहे समय अनुकूल , मिटें घड़ियाँ अनचाहीं ll
    कह ‘माधव’कविराय ,पड़े न दुःख की छाया I
    उन्नति  करो  हज़ार , साल सुन्दर जो आया Il

    प्यारा लगता है बहुत , देख  गज़ब उल्लास I
    दिन – दूना निशि चौगुना , होता रहे विकास ll
    होता   रहे  विकास , मिले  सम्मान  प्रतिष्ठा l
    धन  वैभव  भरपूर , सदा  उत्तम  हो  निष्ठा Il
    कह ‘माधव’कविराय ,तुम्हें फल दे यह न्यारा l
    नशा व्यसन  कर त्याग , वर्ष नूतन ये प्यारा ll

    #स्वरचित
    #सन्तोष कुमार प्रजापति “माधव”
    #कस्बा,पो. – कबरई जिला – महोबा(उ. प्र.) 
         

    खुशहाल हो नववर्ष – महदीप जंघेल

    भूले बिसरे ,बीते कल को,
    भूले दुःख संताप के गम।
    पुलकित होगा रोम-रोम,
    मन हर्षित होगा अनुपम ।।

    रवि स्वरूप उज्ज्वलित हो जीवन,
    चाँद -सा दमकता रहे ।
    धन संपदा की हो बरसात,
    भाग्य का हीरा चमकता रहे।।

    नव वर्ष लाए जीवन में उजाले,
    खुले आपके भाग्य के ताले।
    सदैव आशीर्वाद मिले उस ईश्वर का,
    जो सम्पूर्ण जगत को पाले।।

    जिंदगी में, न कोई गम हो,
    आँखे,न कभी नम हो।
    मनोकामनाएँ हो पूर्ण सभी,
    कि खुशियाँ, न कभी कम हो।।

    सब जीवों से प्रेम करो और,
    खुशियाँ बाँटो अपार।
    बुराइयाँ दूर करो,नववर्ष में
    अपनाओ सदैव सदाचार।।

    माँ वसुधा का सम्मान करें,
    वृक्ष लगाकर करें श्रृंगार।
    जल का हम सदुपयोग करें,
    करें सदैव परोपकार।।

    सेवा और सत्कार करे हम,
    मानवता का कार्य करे हम।
    औरों को सुख पहुंचाने को,
    परमार्थ का ध्यान धरे हम।।

    नूतन वर्ष में ऐसा कुछ कर जाएँ,
    कि,जिंदगी खुशियों से भर जाये।
    सत्कर्मो की करें कमाई,
    नववर्ष की आप सबको,
    बहुत बहुत बधाई।।


    महदीप जंघेल
    निवास-खमतराई
    तहसील-खैरागढ़
    जिला -राजनांदगांव(छ.ग)

    नव वर्ष का स्वागत करें

    भुलाकर शिकवा गिले
    नव वर्ष का स्वागत करें

    आया नववर्ष हमारे द्वार
    दस्तक दे रहा बारम्बार
    बीते बरस की बातों को
    हम दें अब तो बिसार
    नये विचारों का नवागत करें ।।1
    नववर्ष का स्वागत करें •••

    बाँटे खुशियाँ आपस में
    हो बस प्यार ही प्यार
    नव संकल्प लेकर हम
    भेदभाव मिटा दें यार
    विचारों में अपने आगत करें ।।2
    नववर्ष का स्वागत करें •••

    सबसे भाव प्रेम नेह का
    दोस्ती का दें उपहार
    अभिनंदन के साथ है
    सपना का नमस्कार
    गलत बातों को अनागत करें ।। 3
    नववर्ष का स्वागत करें •••

    अनिता मंदिलवार सपना
    अंबिकापुर सरगुजा छतीसगढ़

    नववर्ष की शुभकामनाएँ

    नववर्ष की शुभकामनाएँ ,
    आओ हम खुशी मनाएँ ।

    विनाश का रास्ता छोड़कर,
    प्रगति पथ पर बढ़ते जाएँ ।

    संदेश यही है नववर्ष पर,
    दीप सा हम जलते जाएँ ।

    साहस रखना कभी न डरना,
    यही लक्ष्य हम धरते जाएँ ।

    जैसे दीप बाती संगी साथी,
    हम भी साथ निभाते जाएँ ।

    निराश कभी न होना सपना,
    उजास दिलों में भरते जाएँ ।

    अनिता मंदिलवार सपना
    अंबिकापुर सरगुजा छतीसगढ़

    नव वर्ष में हो नवसृजन

    नव वर्ष में हो नवसृजन
    सदभावना से करे अभिनंदन
    उज्जवल मय जीवन में हो हषॆ
    ऐसा हो सबका नववर्ष

    आपकी आँखों में सजे है जो भी सपने,
    और दिल में छुपी है जो भी आशायें!
    यह नया साल उन्हें सच कर जाए;
    आप के लिए यही है हमारी शुभकामनायें

    अनिता मंदिलवार “सपना”
    अंबिकापुर सरगुजा छतीसगढ़

    शुभ आगमन हे नव वर्ष

    शुभ आगमन हे नव वर्ष
    शुभ आगमन हे नव वर्ष
    वंदन अर्चन हे नूतन वर्ष
    अभिनंदन हे नवागत वर्ष
    नतमस्तक नमन हे नव्य वर्ष।

    खुशियों की सौगात लाना,
    रोशनी की बरसात लाना,
    चंद्रिका की शीतलता बरसाना
    नव सृजन मधुमास लाना।


    क्लेष, विषाद,कष्ट मिटाना
    जो बीत चुका अतीत बुरा
    उसको न तुम पुन: दोहराना
    कातर मन का क्रंदन धो जाना।


    नफ़रत मिटाना उल्फत जगाना
    दर्द का तुम मर्ज़ लाना
    सावन प्यासा है मेरे मन का
    मधुरिम झड़ी फुहार लाना।


    मधुर हास परिहास बनकर
    पीड़ा का संसार हरकर,
    आहट अपनी मुझको दे जाना
    तप्त निदाघ में भी कुसुम खिलाना।


    दहलीज़ पर रंगोली बनकर
    मेरे मन का बुझा दीप जलाना
    बचपन की वो हंसी ठिठोली लाना
    कैद है जिसमें खुशियों का खज़ाना।

    नव प्रीत लिए नव भाव लिए
    आशाओं का अंबार लिए
    धीरे से हँसकर आना
    नव प्राण जीवन में जगाना।


    कितने ही नववर्ष आए
    मर्म मन का मेरा समझ न पाए
    आतप में भी स्निग्धता लाना
    शूलों में व्यथित कुसुम खिलाना।


    हे नूतन वर्ष आशा है तुझसे
    राग द्वेष रहें दूर मुझसे
    रूठे हुए को सद्भाव देना
    माँ वीणापाणि का आशीष देना।


    हर हाल में हर रूप में
    शुभ मंगलमय विहान लाना
    सुबरन कलम का धनी बनाना
    सर्वे भवन्तु सुखिन:का भाव लाना।

    कुसुम लता पुंडोरा

    साल जो बदला है

    साल जो बदला है तो थाली को बदल दो,
    कानों में लटकती हुई बाली को बदल दो।
    नए साल में कुछ ऐसा कमाल तो कर लो
    साले को बदल दो औ साली को बदल दो।।1


    काम बदलना है तो सीवी को बदल दो,
    गाड़ी को बदल दो औ टीवी को बदल दो।
    नए साल में कुछ ऐसा धमाल तो कर लो,
    हो गयी पुरानी तो……बीवी को बदल दो।।2


    खाना जो पकाना है तो चूल्हे को बदल दो,
    दर्द अगर होता है तो कूल्हे को बदल दो।
    नए साल में कुछ ऐसा निहाल तो कर लो
    हो गया पुराना तो…..दूल्हे को बदल दो।।3


    हाल जो बेहाल है तो फिर हाल बदल दो,
    धीमी पड़ी रफ्तार तो फिर चाल बदल दो।
    नए साल में कुछ ऐसा बवाल तो कर दो,
    मिल गया ठिकाना तो ससुराल बदल दो।।4

    पैकेट वही रक्खो मगर सामान बदल दो,
    पड़ोसन जो तड़पाये तो मकान बदल दो।
    राहुल का मरियम से तो निकाह करा दो,
    दहेज में फिर पूरा पाकिस्तान बदल दो।।5


    शाह को मिलता है जो सत्कार बदल दो।
    काम कराने का वो…संस्कार बदल दो
    सरकार का जो काम है वो काम तो करे,
    सो गयी सरकार तो… सरकार बदल दो।6

    दुश्मनी की सारी वो.. तकरार बदल दो,
    अपनों के लहू से सने तलवार बदल दो।
    पत्थर जो चलाये उसे उसपार तो भेजो,
    जो डूब रही नौका तो पतवार बदल दो।।7


    अब पाक परस्ती के समाचार बदल दो,
    नापाक इरादों का वो व्यवहार बदल दो।
    कश्मीर जो मांगे तो तुम लाहौर को घेरो,
    भारत का पुराना वही आकार बदल दो।।8


    ©पंकज प्रियम

    ऐ नववर्ष !

    आज सारा विश्व उल्लसित है
    नव वर्ष में नव-उमंगों के साथ,
    विगत की खट्टी-मीठी यादों को,
    इतिहास के पन्नों में बाँट,
    स्वागत है तेरा.. नया साल !
    प्रतिक्षित नयन तुम्हें निहार रहे हैं
    लेकर कई सवाल।

    शायद!तुम कुछ नया छोड़ सको
    और भारत के इतिहास में
    स्वर्णिम-पन्ने जोड़ सको

    क्या सत्य ही तुम
    कुछ कर पाओगे?
    देश के गहरे जख़्म भर पाओगे ?

    अरे!!
    देश का एक वर्ग तो
    तुम्हें जानता ही नहीं ।
    क्या है नववर्ष?क्या उमंगें?क्या हर्ष?

    जिनकी सुबह भूख से होती हो ,
    तब रात खाने को सूखी रोटी हो।
    और किसी-किसी को वो भी नसीब नहीं,
    बदन पर कपड़े
    और सिर पर छत भी नहीं,
    वो क्या जाने क्या है नया साल ?
    जो जीवन जीते हैं खस्ता हाल।

    इन झूठे स्वप्न और आडंबरों से,
    दिन और महीनों के व्यर्थ कैलेंडरों से
    उनका क्या वास्ता?
    जिनका जीवन है काँटों भरा रास्ता ।

    जिस दिन उनके घर चुल्हा जलता है
    आँखों में नववर्ष का सपना पलता है।

    झाँककर देखो उनके दिलों में,
    उनको साल का कुछ पता नहीं
    जो जीते हैं फूटपाथ पर
    और मरते भी वहीं हैं।
    न हो नसीब जिनके लाशों को क़फन
    उनके जीवन में कभी नववर्ष होता नहीं है ।

    ऐ नववर्ष!
    क्या सच में तुम.. कुछ कर पाओगे ?
    भूखों को रोटी, गरीबों को घर दे पाओगे?
    हिंसाग्रस्त देश को, कोई राह दोगे?
    नफरत भरे दिलों में, चाह दोगे?

    गर ऐसा है तुम्हारे दामन में कुछ
    तो स्वागत है तुम्हारा हर्षित मन से
    वरना तुम भी यूँ ही बीत जाओगे
    बीते वर्ष की तरह रीत जाओगे।।

    सुधा शर्मा
    राजिम छत्तीसगढ़

    ऐ नववर्ष !

    आज सारा विश्व उल्लसित है
    नव वर्ष में नव-उमंगों के साथ,
    विगत की खट्टी-मीठी यादों को,
    इतिहास के पन्नों में बाँट,
    स्वागत है तेरा.. नया साल !
    प्रतिक्षित नयन तुम्हें निहार रहे हैं
    लेकर कई सवाल।

    शायद!तुम कुछ नया छोड़ सको
    और भारत के इतिहास में
    स्वर्णिम-पन्ने जोड़ सको

    क्या सत्य ही तुम
    कुछ कर पाओगे?
    देश के गहरे जख़्म भर पाओगे ?

    अरे!!
    देश का एक वर्ग तो
    तुम्हें जानता ही नहीं ।
    क्या है नववर्ष?क्या उमंगें?क्या हर्ष?

    जिनकी सुबह भूख से होती हो ,
    तब रात खाने को सूखी रोटी हो।
    और किसी-किसी को वो भी नसीब नहीं,
    बदन पर कपड़े
    और सिर पर छत भी नहीं,
    वो क्या जाने क्या है नया साल ?
    जो जीवन जीते हैं खस्ता हाल।

    इन झूठे स्वप्न और आडंबरों से,
    दिन और महीनों के व्यर्थ कैलेंडरों से
    उनका क्या वास्ता?
    जिनका जीवन है काँटों भरा रास्ता ।

    जिस दिन उनके घर चुल्हा जलता है
    आँखों में नववर्ष का सपना पलता है।

    झाँककर देखो उनके दिलों में,
    उनको साल का कुछ पता नहीं
    जो जीते हैं फूटपाथ पर
    और मरते भी वहीं हैं।
    न हो नसीब जिनके लाशों को क़फन
    उनके जीवन में कभी नववर्ष होता नहीं है ।

    ऐ नववर्ष!
    क्या सच में तुम.. कुछ कर पाओगे ?
    भूखों को रोटी, गरीबों को घर दे पाओगे?
    हिंसाग्रस्त देश को, कोई राह दोगे?
    नफरत भरे दिलों में, चाह दोगे?

    गर ऐसा है तुम्हारे दामन में कुछ
    तो स्वागत है तुम्हारा हर्षित मन से
    वरना तुम भी यूँ ही बीत जाओगे
    बीते वर्ष की तरह रीत जाओगे।।

    नव वर्षारंभ

    नव वर्षारंभ पर
    मिट जाए सारे कलंक,
    हो जायें जुदाई-जुदाई
    नव वर्ष की बधाई-बधाई
    बज उठी उमंग बिगुल,
    अंतरपट की है वफाई।
    जिन्दगी जन्नत सी हो,
    न हों कोई हरजाई…
    नव वर्ष की बधाई-बधाई
    दसों दिशाओं से मिले,
    सफल प्रखर मधुराई।
    मधुर-मधुर जीवन पथ,
    बनी रहे सुखदाई…
    नव वर्ष की बधाई-बधाई
    अनुपम आप जगत के,
    न हो कभी तन्हाई ।
    सुखद के पीहूर और
    विजयी के बजे शहनाई…
    नव वर्ष की बधाई-बधाई
    नव वर्षारंभ पर
    मिट जाए सारे कलंक,
    हो जायें जुदाई-जुदाई
    नव वर्ष की बधाई-बधाई

    जगत नरेश

    नए -वर्ष का नया सवेरा आने वाला है :-

    कुछ बीत गया है और कुछ आने वाला है ।
    एक वर्ष जीवन से और घट-जाने वाला है ।

    खट्टे – मीठे कुछ यादें मन मे छुपे हुए है ।
    जो कभी हँसाने तो कभी रुलाने वाला है ।

    लड़खड़ाना मत नए मोड़ देख कर सफऱ में ,
    क्योंकि गिरे तो यहां नही कोई उठाने वाला है ।

    अपने मन की बस सुनना आगे इस सफर में ।
    क्योंकिं हरेक व्यक्ति राह से भटकाने वाला है।

    वक्त के साथ चलोगे ग़र वक्त के हिसाब से ।
    तो वो तुम्हें मंजिल के क़रीब लेजाने वाला है ।

    सारे गीले-शिकवे मिटा दो हर गम मन से हटा दो ।
    आने वाला पल अनन्त खुशियां लाने वाला है ।

    जो बीत गई सो बात गई भूला दो बीतें लम्हों को ।
    क्योंकिं नए -वर्ष का नया सवेरा आने वाला है ।

    -आरव शुक्ला रायपुर , (छ .ग)

    है भास्कर तेरी प्रथम किरण

    है भास्कर तेरी प्रथम किरण,
    जब वर्ष नया प्रारम्भ करे।
    जन जन की पीड़ा तिरोहित कर,
    नव खुशियो को प्रारम्भ करे।
    इस धरती,धरा, भू,धरणी पर,
    मानवता का श्रृंगार झरे।
    अब विनयशील हो प्राणी यहाँ,
    बस भस्म तू सबका दम्भ करे।
    है भास्कर तेरी……..

    तेरा-मेरा,मेरा-तेरा सब,
    त्याग के नव निर्माण करे।
    आपस में ऐसा समन्वय हो,
    मिल सृष्टि का कल्याण करे।
    उत्पात,उपद्रव,झगड़ो का,
    क्या मोल है ये आभास रहे।
    भाईचारे का कर विकास,
    हर धर्म का हम परित्राण करे।
    है भास्कर तेरी…..

    अब देख मनुज की पीड़ा को,
    आँखों में नीर निरन्तर हो।
    दुःख दर्द सभी का साझा रहे,
    मानवता अंत अनन्तर हो।
    उत्तुंग शिखर पर संस्कृतियां,
    गाएं केवल भारत माँ को।
    निज देश हित बलि प्राणों की,
    प्रणनम्य, जन्म जन्मान्तर हो।

    जब जब भी धर्म ध्वजा फहरे,
    तिरंगा वहाँ अनिवार्य रहे।
    उद्घोषित कोम का नारा जहाँ,
    जय हिन्द सदा स्वीकार्य रहें।
    गीता,कुरान,गुरु ग्रंथ साहब,
    बाइबिल के रस की धार बहे।
    सब माने अपने धर्म यहाँ,
    पर भारत माँ शिरोधार्य रहें।

    हर पल हर क्षण जननी का हो,
    हर भोंर रम्य,अभिराम रहे।
    सुरलोक स्वर्ग धरा पर हो,
    मनभावन नित्य जहाँन रहे।
    माँ भारती जग में हो विख्यात,
    ब्रम्हांड ही हिंदुस्तान बने।
    मन में सबके वन्दे मातरम् ,
    और मुख से जन गण गान रहे।

       विपिन वत्सल शर्मा
           सागवाडा(राज.)

    स्वागत नूतन वर्ष

    नूतन वर्ष लेकर आये,
               नव आशाओं का संचार।
    नई सोच व नई उमंग से,
                मानवता की हो जयकार।।
    कठिन राहों का साहस से,
                डटकर करें सदा सामना।
    खुशियाँ लेकर आये उन्नीस।
                 नव वर्ष की शुभकामना।।
    प्रेम भाव का दीप जले,
                 हो हर मन में उजियारा।
    सारे जग में अब बन जाये,
                 अपना ही यह भारत प्यारा।।
    जले ज्ञान का दीपक सदा,
                  मिटे जगत से अंधकार।….
    नूतन वर्ष लेकर आये,
               नव आशाओं का संचार।
    नई सोच व नई उमंग से,
                मानवता की हो जयकार।। …..
    बँधे एकता सूत्र में हम सब,
                नव वर्ष में मिले यही वरदान।
    भारत भू की एकता जग में,
                 बन जाये सबकी पहचान।।
    मिट जाये हर मन से अब,
                 राग द्वेष का मैल सारा।
    किरणें फैले पावनता की,
                 हर आँगन खुशियों की धारा।।
    अन्तः मन की जगे चेतना,
                बहे मानवता की अब धार।।….
    नूतन वर्ष लेकर आये,
               नव आशाओं का संचार।
    नई सोच व नई उमंग से,
                मानवता की हो जयकार।। ……
                       ……….भुवन बिष्ट
                       रानीखेत (उत्तराखंड )

    नावां बछर आगे

    हित पिरित जोरियाइ के एदे आगे रे संगी।
    नावां नावां सीखे के करव ,
    नावां बछर आगे रे संगी।

    जून्ना पीरा बिसरा के , निकता बुता करव ग।
    चारी चुगली भूला के , मया के सुरता करव ग।
    सत ईमान ल हिरदे म भर ले,
    जिन्गी म तोर कदर आगे रे संगी।
    नावां बछर आगे रे संगी
    नशा ल बैरी बना के, तन ल बने सिरजावव।
    नोनी बाबू ल पढ़ा लिखा के, परिवार ल अंजोर करावव।
    जम्मो के हांसी मुख म लाके, जिन्गी म तोर सुधार आही रे संगी।
    नावां बछर आगे रे संगी। पान झरे ड़ोंगरी अप

    न के, हरियाय के परन करले।
    सुग्घर होही फूल फुलवारी, जियरा म गुनन करले।
    मेहनत कर ले चेत लगाके,
    जिन्गी के नावां पीका उलहा जाही रे संगी।
    नावां बतर आगे रे संगी।

    नावां बछर आगे रे संगी, नावां बछर आगे जी।
    नाम बगर जाही रे संगी, नावां बछर आगे जी।

    तेरस कैवर्त्य (आँसू)
    सोनाडुला, (बिलाईगढ़)
    जि. – बलौदाबाजार (छ. ग.)

    लेकर आया नूतन वर्ष

    नव आशाओं की किरणें,
    लेकर आया नूतन वर्ष।
           अब धरा में फैले हरियाली,
           शीश में हो खुशहाल कलश।
    हिंसा बैर भाव अज्ञानता,
    मिटे जग से यह कटुता।
            ज्ञान के चक्षु खुल जायें,
            मानव मानवता दिखलायें।
    बिते वर्ष दशक युगान्तर,
    मिटा न पाये कालान्तर।
            व्याप्त जग में है भयंकर,
            राजा रंक का ही अंतर।
    एक बगिया के हैं फूल,
    रंग भिन्न एक हैं धूल।
            एक है सबका बनवारी,
            सिंचे मानवता की क्यारी।
    राग द्वेष की बहे न धारा,
    हिंसा मुक्त हो जगत हमारा।
             सद्गगुणों को हम अपनाकर,
             झलक एकता की दिखलाकर।
    नमन करें सदा भारत माता को,
    चहुँ दिशा में खुशहाली फैलाकर ।
               सोच नई व नई उमंग से,
               भर दें ज्ञान का अब तरकश।
    नव आशाओं की किरणें,
    लेकर आया नूतन वर्ष।।
             

          …….भुवन बिष्ट
                रानीखेत (उत्तराखंड )

    नव वर्ष ये लाया है बहार

    नव वर्ष ये लाया है बहार,
      फैले खुशियाँ जीवन अपार।
        मंगल छाये घर घर बसंत,
           दुख दर्द मिटे पीड़ा तुरन्त।।
             
    पावन फूलों की बेला हो,
        जीवन बस प्रीति मेला हो।
          हर आँगन गूंजे किलकारी,
             मनभावन फूलों की क्यारी।।
                         
    झनके वीणा के सुगम तार,
      सुर की सरिता की सरल धार।
         उन्नति पाओ उतंग शिखर,
           आखर नवल बन हो प्रखर।।

    कर दो प्रकृति सुंदर श्रृंगार,
      हर युवा के कांधे पे हो भार।
        जीवन मधुमास सा प्यारा हो,
           ये देश हमारा न्यारा हो।।

    सुख जंगल मंगल छा जाये,
       धन की वर्षा मिलकर पाये।
           चहूँ दिश में फैले प्रेम प्यार,
              नव वर्ष का लो मीठा उपहार।।

    सरिता सिंघई कोहिनूर

    नववर्ष पर कविता

    पलकें बिछाए खड़े हम सभी
    दिलों में है हमारे अपार हर्ष
    शुभ मंगल की कामना संग
    स्वागत है तुम्हारा हे नववर्ष!

    रसधार बहे सर्वदा प्रेम की
    सुख समृद्धि में हो उत्कर्ष
    सर्वत्र शांति की कामना संग
    स्वागत है तुम्हारा हे नववर्ष!

    सत्य अहिंसा परम धर्म बने
    नैतिक मूल्य हो हमारे आदर्श
    सर्व कल्याण की कामना संग
    स्वागत है तुम्हारा हे नववर्ष!

    चढ़ें सीढ़ियाँ सफलता की
    ज्ञान विज्ञान से छू लें अर्श
    जग प्रसिद्धि की कामना संग
    स्वागत है तुम्हारा हे नववर्ष!

    प्रगति रथ की तीव्र गति से
    आनंदित हो हमारा भारतवर्ष
    आशीष वर्षा की कामना संग
    स्वागत है तुम्हारा हे नववर्ष!

    आशीष कुमार
    मोहनिया, कैमूर, बिहार

    पद्मा के दोहे – मंगल हो नववर्ष

    दास चरण नित राखिए, हे सतगुरु भगवान ।
    विघ्न हरो मंगल करो, शुभता दो वरदान।।1

    मंगल हो नव वर्ष में , ऐसा दो वरदान।
    त्रास हरो संसार का, हे कृपालु भगवान।।2

    कोरोना के त्रास में, सत्र बिताएँ बीस।
    स्वास्थ्य खुशी सौभाग्य दें, मंगल हो इक्कीस।।3

    लेकर नूतन वर्ष को, मन में भरे उमंग।
    मंगल सबका काज हो, बाजे खुशी मृदंग।।4

    बुरे कर्म करना नहीं, करना है सत्कर्म ।
    मंगलकारी काज हो, करो परमार्थ धर्म।।5

    नए वर्ष में प्रण करें , वसुधा करें श्रृंगार ।
    जंगल में मंगल सदा, वृक्ष बने उपहार।।6

    नया वर्ष खुशियों भरा , गाओ मंगल गीत ।
    छोड़ो कटुता बढ़ चलो, मन में रखकर प्रीत।।7

    करें सभी जन प्रार्थना, नया वर्ष हो खास।
    हर्षित वसुधा हो सदा, करें पाप का नाश।।8

    है कराह रही वसुधा, देख विश्व का ताप ।
    शुद्ध वातावरण नहीं, करें घृणित सब पाप।।9

    करें ईश से प्रार्थना, नवल सृजन नववर्ष।
    सिर पर प्रभु का हाथ हो, करने को उत्कर्ष।।10

    नव प्रसंग नव वर्ष में, लेकर चलना साथ ।
    धर्म कर्म धारण करो, नवल भोर के हाथ।।11

    पद्मा करती कामना, रहें सभी खुशहाल।
    मान खुशी ऐश्वर्य से, जीवन सदा निहाल।।12

    पद्मा साहू “पर्वणी”
    खैरागढ़ राजनांदगांव छत्तीसगढ़

    नववर्ष की कामनाएं – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    हर दिन को नए वर्ष की
    मंगल कामना से पुष्पित करो
    कुछ संकल्प लो तुम
    कुछ आदर्श स्थापित करो

    हर दिन यूं ही कल में
    परिवर्तित हो जाएगा
    तूने जो कुछ न पाया तो
    सब व्यर्थ हो जाएगा

    उद्योग हम नित नए करें
    हम नित नए पुष्प विकसित करें
    कर्म धरा को अपना लो तुम
    हर- क्षण हर -पल को पा लो तुम

    समय व्यर्थ जो हो जायेगा
    हाथ न तेरे कुछ आएगा
    मात – पिता आशीष तले
    जीवन को अनुशासित कर
    पुण्य संस्कार अपनाकर
    अपना कुछ उद्धार करो तुम

    इस पुण्य धरा के पावन पुतले
    राष्ट्र प्रेम संस्कार धरो तुम
    मानवता की सीढ़ी चढ़कर
    संस्कृति का चोला लेकर

    पुण्य लेखनी बन धरती पर
    मानव बन उपकार करो तुम
    संकल्पों का बाना बुनकर
    नित- नए आदर्श गढो तुम

    अपनाकर जीवन में उजाला
    नित – नए आयाम बनो तुम
    दया पात्र बनकर ना जीना
    अन्धकार को दूर करो तुम

    हर दिन को नए वर्ष की
    मंगल कामना से पुष्पित करो
    कुछ संकल्प लो तुम
    कुछ आदर्श स्थापित करो

    परमेश्वर साहू अंचल: मनहरण घनाक्षरी – नव वर्ष,नव हर्ष

    शुरू कर शुभ काज,
    मिलेंगे सर पे ताज,
    मान भी मिलेंगे ढेरों,
    सबको यकीन है।

    नव साल मालामाल,
    नव काज कर लाल,
    नव साल बेमिसाल,
    मौसम रंगीन है।।

    त्याग आदत बुराई,
    कर चल चतुराई,
    दूसरों की निंदा करे,
    कारज मलिन है।।

    वही जन आगे बढ़े,
    नित पथ नव गढ़े,
    कंटक मेटते चले,,
    मनुज शालीन है।।

    नव दिन नव वर्ष,
    जन-जन नव हर्ष,
    स्वागत करने सभी,
    मानव तल्लीन है।

    पुलकित पोर-पोर,
    उमंग है चहुँओर,
    इसको मनाने सब,
    बिछाए कालीन हैं।

    😃🙏🙏🙏😃

    ✒️पीपी अंचल “गुणखान”

    उपमेंद्र सक्सेना: नये वर्ष में मिटे अमंगल

    गीत-उपमेंद्र सक्सेना एड.

    बीता वर्ष, जुड़ गयीं यादें, वे हमको इतना
    दहलाएँ
    नये वर्ष में मिटे अमंगल, परम पिता ऐसा कुछ लाएँ।

    संघर्षों से जूझ रहे जो, सब दिन उनके लिए बराबर
    कोई माथा थामे बैठा, कोई बन जाता यायावर
    समय बदल लेता जब करवट, सुख होते उस पर न्योछावर
    कोई अब गुमनाम हो गया, कोई दिखता है कद्दावर

    दर्द मिला जीवन में इतना, उसको हम कब तक सहलाएँ
    नये वर्ष में मिटे अमंगल, परम पिता ऐसा कुछ लाएँ।

    आगत का स्वागत हम करते, उस पर हम कितना भी मरते
    लेकिन उसको भी जाना है, इस सच्चाई से क्यों डरते
    नया नवेला जो भी होता, दु:ख उसको भी यहाँ भिगोता
    बीच भँवर में फँसा यहाँ जो, फसल प्रेम की कैसे बोता

    वातावरण घिनौना इतना, अब दबंग सबको बहलाएँ
    नये वर्ष में मिटे अमंगल, परम पिता ऐसा कुछ लाएँ।

    भेदभाव अब फैला इतना, सीधा- सच्चा रोते देखा
    कूटनीति पर आधारित क्यों, हुआ योजनाओं का लेखा
    कोई धन-दौलत से खेले, कोई भूखा ही सो जाता
    कोई चमक रहा तिकड़म से, कोई सपनों में खो जाता

    लोग हुए जो अवसरवादी, कैसे वे अपने कहलाएँ
    नये वर्ष में मिटे अमंगल, परम पिता ऐसा कुछ लाएँ।

    रचनाकार -उपमेंद्र सक्सेना एड०
    ‘कुमुद- निवास’
    बरेली (उ० प्र०)
    मोबा० नं०- 98379 44187

    फिर वर्ष बदल रहा है : शिवाजी

    कहीं पे पानी तो कहीं ओस गिर रही है
    कि लगता है यह दिसंबर जाने वाला है
    अब इस नव वर्ष की करो तैयारी सभी
    अब एक नव वर्ष फिर से आने वाला है

    कुछ लोगों की यादें अब, धूमिल होती जा रही हैं
    लगता है नए रिश्तों का दामन कोई पकड़ा रहा है
    आओ यहां हम सभी मिलजुल कर यूं खुशियां बांटें
    हम भुला दें सभी गमों को,नव उत्कर्ष आने वाला है

    पुराने साल का गम छोड़ कर हर्षोल्लास भरें हम
    अब खुशियां मनाएं हम,नया प्रहर्ष आने वाला है
    कि जानें क्या-क्या नया सिखाएगा अब यह साल,
    नए तरीके से निखरें,कि पुराना कर्ष जाने वाला है

    अब भगाएं हम इस वर्ष यह कोरोना बीमारी को
    एक बार फिर से एक और नया वर्ष आने वाला है

    शिवाजी के अल्फाज़

    राजकुमार मसखरे: नव वर्ष

    नववर्ष,नव उत्कर्ष हो
    चहुँदिशि हर्ष हो ,
    प्रगति के नये सोपान
    यथार्थ व आदर्श हो !

    कट जाये जीवन में
    टीस की झंझावात
    बनें सभी क़ाबिल,
    अपना ये प्रादर्श हो !

    हो माता का आशीष
    प्रकृति की हो रक्षा
    खुशी से छलके जीवन
    हर दिन,हर पल अर्श हो !

    राजकुमार मसखरे

    इंदुरानी: नव वर्ष दोहे

    धीरे धीरे उंगलियाँ, छुड़ा रहा यह वर्ष।
    अंग्रेजी नव वर्ष का, मना रहे हम हर्ष।।

    उखड़ रही है सांस अब ,बृद्ध दिसम्बर रोय।
    जवां जनवरी क्या पता, साथ किस तरह होय।।

    पनप रहीं बीमारियां,कैसे मिले निजात।
    नव वर्ष,वैक्सीन नई,तभी बनेगी बात।।

    बीते वर्ष को अलविदा, ले कर यह विश्वास।
    साल नया यह शुभ रहे, हो पूरी हर आस।।

    इन्दु,अमरोहा, उत्तर प्रदेश

    अकिल खान: नया साल

    जीवन में सभी मुश्किल हो जाएं दूर,
    चारों दिशाओं में हो हर्ष-उमंग का सूर।
    निराश-मन पुनः उठ जाओ,
    आलस्य-अहं को दूर भगाओ।
    जीवन में हो सफलता का भूचाल,
    मुबारक हो सभी को, नया साल।

    दूर करो जीवन में अपनी गलती और कमी,
    फिर से हमको पुकारा है ये वीरों का ज़मीं।
    अपनी कुंठा-द्वेष को है नित हराना,
    मुश्किल समय में कभी न घबराना।
    मेहनत से करो जीवन में कमाल,
    मुबारक हो सभी को, नया साल।

    गिरकर उठना जीवन में जिसने सीखा है,
    इस जमाने में उसी ने इतिहास लिखा है।
    मुड़ कर देखने वालों को कुछ नहीं मिलेगा,
    आगे बढ़ने से ही सफलता का चमन खिलेगा।
    मेहनत के ताल से मिलाओ ताल,
    मुबारक हो सभी को, नया साल।

    2021में कोरोना से जीवन हो गया था मुश्किल,
    2022में जिन्दगी में खुशियाँ हो जाए शामिल।
    जो हो गया भूल जाओ यह जीवन की रीत है,
    जो किया मेहनत नित उसी को मिला जीत है।
    नव वर्ष में जीवन हो खुशहाल,
    मुबारक हो सभी को,नया साल।

    घर-परिवार है रिश्तों की क्यारी,
    दोस्तों की यारी है सबसे प्यारी।
    जिसने खाया है मेहनत का धूल,
    उसे मिला है कामयाबी का फूल।
    कर्म से पहचानो समय का चाल,
    मुबारक हो सभी को,नया साल।

    –अकिल खान रायगढ़ जिला- रायगढ़ (छ.ग). पिन – 496440.

    स्वागत है नववर्ष तुम्हारा


    भूले बिसरे खुशी और ग़म की यादें,
    बनती है अतित की इतिहास पुराना।

    आने वाले पल में खुशहाली भरा हो,
    हार्दिक स्वागत है नववर्ष हो सुहाना।

    उगते सूरज की स्वर्णीम मधुर किरणें,
    नववर्ष में नव सृजन की सहभागी बनें।

    दुःख ग़म से भी दूर रहे दो हजार बाईस,
    कोई अनहोनी घटना की दीवार न तने ।

    स्वागत है नववर्ष तुम्हारा २०२२ में,
    विदा २०२१ के अनेक कष्ट अपार ।

    घोर संकट में परिवार की तबाही और,
    अनेकों परिवार ने महामारी को झेला है।

    अचानक आये अनहोनी की भूचाल को,
    प्रकृति ने भी हमारे साथ खूब खेला है।।

    बदलते वर्ष की अविस्मरणीय यादें,
    कई रहस्यों से भरा दुख भी हजार।

    आने वाले वर्ष की शुभ मंगलकामनाएं,
    आप सभी के लिए अति लाभदायक हो।

    हार्दिक बधाई एवं अनन्त शुभकामनाएं,
    तहेदिल से शुक्रिया विदाई में कहने लायक हो।

    ✍️ सन्त राम सलाम,,,,,✒️
    बालोद, छत्तीसगढ़

    अर्जुन श्रीवास्तव: (नए वर्ष की हार्दिक बधाई)

    आया है नया वर्ष!
    मिलकर मनाओ हर्ष!
    करो संघर्ष सब प्रेम तरुणाई हो

    बिछड़े हुए मीत से!
    मिलो जाकर प्रीत से!
    दोनों मिल गाओ गीत प्रेम शहनाई हो

    ओढ़ करके दुशाला!
    आई जब भोर बाला!
    पुष्पों की ले माला खुशियां छाई हो

    सुनहरे यह पल!
    मिलेंगे ना कल!
    खुश रहो प्रतिपल नए साल की बधाई हो

    स्वरचित अर्जुन श्रीवास्तव सीतापुर (उत्तर प्रदेश)

    महदीप जंघेल सर: दोस्ती

    दोस्त तुम नववर्ष में,
    जीवन में बदलाव जरूर लाओगे।
    एक संदेश तेरे नाम,
    भरोसा है जरूर निभाओगे।
    हर बुराई छोड़ देना,
    मेरा साथ मत छोड़ना।
    हर वादे तोड़ देना,
    मेरा विश्वास मत तोड़ना।
    हर धारा मोड़ देना,
    मुझसे मुंह मत मोड़ना।
    सबसे रिश्ता रखना,
    बुराई से मत जोड़ना।
    हर वस्तु तोल देना,
    मेरी दोस्ती मत तोलना।
    वादा कर जीवन भर,
    मुझसे संबंध मत तोड़ना।

    ✍️महदीप जंघेल खमतराई, खैरागढ़ जिला – राजनादगांव(छ.ग)

    नववर्ष का अभिनंदन

    हर्षोल्लास से सराबोर हुआ
    भारतवर्ष का कण कण
    शुभ मंगलमय नव वर्ष का
    अभिनंदन ! अभिनंदन !

    गीत संगीत से गूंज उठा
    सुरम्य मधुर वातावरण
    रंग बिरंगी फुलझड़ियां जलाकर
    अभिनंदन ! अभिनंदन !

    नगरी नगरी द्वारे द्वारे
    खिल उठा घर आंगन
    रंग रंगीली रंगोली बना कर
    अभिनंदन ! अभिनंदन !

    सुख समृद्धि हो भारतवर्ष में
    यश कीर्ति में हो वर्धन
    पलक पांवड़े बिछा नूतन वर्ष का
    अभिनंदन ! अभिनंदन !

    विकास देश का हो अनवरत
    खुशहाल हो जनता जनार्दन
    मंगल कामना संग नूतन वर्ष का
    अभिनंदन ! अभिनंदन !

    विनती स्वीकार करो प्रभु
    प्रीति पूर्वक है वंदन
    सदा बरसे आशीष आपका
    अभिनंदन ! अभिनंदन !

    – आशीष कुमार, मोहनिया बिहार

    राजेश पान्डेय वत्स: सौम्य सवेरा! ( मनहरण घनाक्षरी)

    आज रश्मि रसभरी,पौष संग जनवरी,
    मकर संक्रान्ति आदि,
    पड़े इसी माह में!

    नूतन अंग्रेजी वर्ष, सारा जग छाया हर्ष,
    सनातन चैत्र मास
    दुगुने उत्साह में!

    दूसरा जो रविवार,जयन्ती है जयकार,
    गुरु श्री गोविंद सिंह,
    दिन भी गवाह में!

    बारह सवेरा जब, विवेकानंद जन्में तब,
    झूमे मास और झूमी
    गंगा भी प्रवाह में!
    (2)
    तेइस दिवस आगे,सुभाष जयन्ती ताके,
    जय हिन्द गूँजे नारा,
    देश प्रेम चाह में!

    गणतंत्र पर्व गिन,शेष है छब्बीस दिन,
    तिरंगा भी लहराये,
    गली गली राह में!

    अट्ठाइस षटतिला,एकादशी पर्व मिला
    देव हरि पूजे जायें,
    रहना सलाह में!

    सवेरा है झिलमिल,नाचे गायें खिल खिल,
    वत्स सुख-शांति पाये,
    राम की पनाह में!

    –राजेश पान्डेय वत्स!

    रामनाथ साहू”ननकी”: प्रीत पदावली (वर्तमान)

    नववर्ष नवल विधान हो ।
    संस्कृति का मधुर गान हो ।।
    नवप्रभात नया भान हो
    स्थापित अधर मुस्कान हो ।।

    चारु चिरंतन चित चंचल ।
    मदिर मरुत घुलता संदल ।।
    घट घट पर घटे सुमंगल ।
    पुलकित प्रस्तर का अंचल ।।

    बंधु भावना हो स्थापित ।
    प्रेमालय में हों वासित ।।
    प्रीत प्रांत प्रिय सुखकर हों ।
    हर हिय जगा हृदेश्वर हो ।।

    वर्तमान निःश्रृत धारा ।
    समय सुदिन हो अति प्यारा ।।
    आज श्रेष्ठ कर प्रण जीवन ।
    आनंदित गुण उद्दीपन ।।

    संभव हो महत जितेन्द्रिय ।
    जिजीविषा आनंद सुप्रिय ।।
    भाल तिलक सज्जित हर्षित ।
    जग में हों गर्वित चर्चित ।।

    रामनाथ साहू ” ननकी “मुरलीडीह ( छ. ग. )

    ज्ञान भंडारी: नूतन वर्षाभिनंदन

    नव वर्ष, नवचेतना, नव उमंगे
    नव हर्षित तरंगे लेकर आये,
    हर दिन स्वर्णिम दिन हो,
    राते हो चांदी जैसी चमकती सितारों भरी ,
    भावना सबकी पावन हो ,नदियों के धारा सी,खरी।

    भूले हम वेदनामय पीड़ा को , करे हम सबको आत्मसात
    सुखी रहे हर मानव जात ,सुख शांति का हो आवास,
    खिले हर कली कली, गूंजे हर गली गली झूलो से जैसे झूलते ,
    हर शाख शाख ओ अलि अलि।

    फले फूले, हर मौसम, तिरंगे की शान बढ़े,
    धरा दुल्हन सी लगे,ओढ़नी टेसुओ की ओढ़े,
    अमलतास , पलाश श्रृंगार करे,हर फूल झूमे,
    हर डाल डाल नूतन परिधान पहनें,
    हर टूटे दिल जुड़े, गाए सब मंगल गीत,
    सबका स्वास्थ स्वस्थ रहे, सर पे यश का ताज हो ,
    आशीर्वाद बना रहे जगत जननी का ,
    आशीर्वाद बना रहे, सब स्व जनो का,
    ऐसा मंगल नूतन वर्ष होवे।

    रचयिता _ज्ञान भण्डारी।

    एस के नीरज : नववर्ष का धमाल

    नए साल की सुबह सुबह
    पड़ोसी ने जोर से शोर मचाया
    और मुहल्ले में भोंपू बजाया
    सबको नया साल मुबारक हो!

    मैंने कहा भाई सुबह सुबह ये
    तुम गला क्यों फाड़ रहे हो
    खुद तो रात भर सोते नहीं
    दूसरों को भी सोने नहीं देते !

    रात भर क्यों इसी चिंता में
    घुले जा रहे थे क्या आप …
    कि सुबह होते ही सबको
    मुबारक पर मुबारक दूंगा
    भले ही बदले में लोगों से
    सत्रह सौ साठ गाली खाऊंगा!

    पड़ोसी ने कहा – भाई आप
    समझते नहीं मेरी बात बुझते नहीं
    आज तो बस नया साल है
    चारों तरफ धमाल ही धमाल है
    फिर भी कमाल ही कमाल है
    आपको नए साल का पता नहीं है

    आज मजे करोगे तो भाया
    पूरा साल मजे में बीतेगा
    आज रोओगे तो पूरे साल
    रोते ही रह जाओगे…..!

    मैंने कहा – ना तो मुझे रोना है
    ना किसी के लिए कांटे बोना है
    मेरा बस चले तो साल भर मुझे
    घोड़ा बेचकर सोना है …..!

    मगर पड़ोसी हों अगर मेहरबान
    तो गधे भी बन जाएं पहलवान
    पूरी रात भर डी जे बजाया
    फिर भी आपको रास ना आया
    सुबह सुबह ये भोंपू बजा रहे हो
    और सारी दुनिया को दिखा रहे हो
    कि नया साल सिर्फ तुम्हे ही
    मनाना और एंजॉय करना आता है
    हमें कुछ भी नहीं आता जाता है !

    लेकिन यदि हम मनाना शुरू कर दें
    तो तुम मुहल्ले मुहल्ला क्या
    शहर छोड़कर भाग जाओगे…
    इसलिए मि.नया साल मनाना है
    पड़ोसियों को अपना बनाना है
    तो ये राग अलापना बंद कर दो
    और नववर्ष का स्वागत करना है
    तो कोई एक बुराई दफन कर दो ।

    *@ एस के नीरज*

    अनिल कुमार वर्मा: मंगला मंगलम 2022

    जीवन पथ के सारे सपने,
    सच हो सच्ची राह मिले.
    उम्मीदों से अधिक स्नेह हो,
    जितनी भी हो चाह मिले.
    मन हो निर्मल धार सरीखा,
    गहराई में थाह मिले.
    कृत्य करें आओ ऐसे कि,
    दसो दिशाएँ वाह मिले.
    नूतन मन में नूतन चिंतन,
    नये सृजन साकार करें.
    सुखद सुनहरी सुंदर छाया,
    जनहित में तैयार करें.
    कर्मरती हों सबसे आगे,
    श्रम का ही सम्मान हो.
    नये वर्ष क्या जीवन भर,
    आपका श्री मान हो.

    शुभेच्छु
    अनिल कुमार वर्मा
    सेमरताल

    परमेश्वर साहू अंचल: नूतन वर्ष पर दोहा (नए साल,बेमिसाल)

    हृदय सुमन सम जानिए,प्रेम मिले खिल जाय।
    घृणा नीर मत सिंचिए, फौरन ही मुरझाय।।

    जीवन में पतझड़ नहीं , हो जी सदा बहार।
    खुशियों की बारिश रहे,हो न कभी तकरार।।

    करे खुशी नित चाकरी, चँवर डुलाए हर्ष।
    हरपल उन्नति की कली, सुरभित हो नव वर्ष।।

    शीतलता बन धूप में, रहे साथ नित छाँव।
    घर आँगन हो स्वर्ग से, मधुबन जैसे गांव।

    मानवता हो मनुज में, और दिलों में प्यार।
    रहें मनुज नित एकता,अखिलविश्व गुलजार।।

    सकल जीव सम प्रेम हो, जन-जन में संस्कार।
    हिलमिल जीवन मन्त्र से,पुलकित हो संसार।।

    शिक्षा की दीपक जले, घर-घर हो उजियार।
    गांव-गली उपवन लगे, रिश्तों में मनुहार।।

    प्रेम सुमन आँगन खिले, और शुभ्र नव भोर।
    खुशियों की बरसात हो, उन्नति हो चहुँओर।।

    ✒️पीपी अंचल “गुणखान”

    हरिश्चंद्र त्रिपाठी”हरिश” : मन उसको नव वर्ष कहेगा

    फिर-फिर याद करेगा कोई,
    फिर-फिर याद सतायेगी।
    मंगलमय हो जीवन अनुपल,
    सुखद घड़ी फिर आयेगी।1।

    सुख-समृद्धि का ताना-बाना,
    तार-तार उर -बीन बजे।
    खुशहाली की मलय सुरभि से,
    कलम और कोपीन सजे ।2।

    समरसता की प्रखर धार में,
    भेदभाव बह जायें सब।
    सबसे पहले राष्ट्र हमारा,
    नव विकास अपनायें सब।3।

    नहीं किसी का मन दुख जाये,
    सबको स्नेह लुटायें हम ।
    अमर संस्कृति के रक्षक बन,
    मॉ का कर्ज चुकायें हम।4।

    साथ प्रकृति का यदि हम देंगे,
    धन-धान्य पूर्ण नव हर्ष रहेगा।
    दिशा बहॅकती फसल मचलती,
    मन उसको नव वर्ष कहेगा।5।

    चलो एक क्षण मान रहा मैं,
    नव वर्ष तुम्हारा आया है।
    आप मुदित हैं यही सोच कर,
    मन मेरा भी हरषाया है।6।

    नश्वर जीवन,कर्म हमारे,
    सुख-दुःख के निर्णायक हैं।
    सबके हित की सुखद कामना,
    मातृभूमि गुण गायक हैं।7।

    सबका साथ विकास सभी का,
    ना शोषण की गुंजाइश हो।
    मिले प्रकृति का संरक्षण यदि,
    सुखकर दो हजार बाइस हो।8।

    हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’,
    रायबरेली -229010 (उ प्र)

    आर आर साहू :नव वर्ष पर कविता

    वर्ष की माला बनी है, पुष्प क्षण से,
    नव्यता शिव,सत्य के सुंदर वरण से।
    चित्रपट की भाँति ही,समझो समय को,
    दृश्य बनते या बिगड़ते आचरण से।
    नव सृजन के गीत गूँथे जा सकेंगें,
    लोकहित सद्भावना के व्याकरण से।
    हर्ष देशी या विदेशी से परे है,
    मुक्त है यह क्षुद्रता के संस्करण से।
    विश्व है परिवार,का उद्घोष जिसका,
    है अटल वह वह देश इस पर प्राण-प्रण से।
    एक नन्हा दीप, तम का नभ उठाकर,
    ज्योति का अध्याय लिखता है किरण से।
    व्यर्थ कोई भी कभी खाली न लौटा,
    हाथ हो या माथ लग प्रभु के चरण से।

    रेखराम साहू(बिटकुला/बिलासपुर)

    शची श्रीवास्तव : इन सालों में हमने देखा

    नया साल फिर से आया
    साल पुराना जाते देखा,
    आते जाते इन सालों में
    उम्र को हमने ढलते देखा,
    ऐसे कितने साल बदलते
    इन सालों में हमने देखा।

    माँ पापा का वरदहस्त
    दादीमाँ का स्नेहिल स्पर्श,
    भाई बहन का प्यार अनूठा
    नहीं बदलते हमने देखा,
    सालों साल बदलते रिश्ते
    इन सालों में हमने देखा।

    मन उपवन के संगी साथी
    नववर्ष पे बेहद याद आएं,
    मन की परतों में दबी छुपी
    यादें कभी न मिटते देखा,
    स्मृतिपट से हर बात बिसरते
    इन सालों में हमने देखा।

    ढलती सांझ की बेला में
    ढल रहा पुराना वर्ष सतत्,
    लम्हा लम्हा ढल रही उम्र
    उत्साह उमंग न घटते देखा,
    काश कसक कुछ रह जाते
    इन सालों में हमने देखा।

    नववर्ष का वंदन अभिनंदन
    जाते हुए साल, प्रनाम तुम्हें,
    ये काल चक्र चलता यूं ही
    कभी न इसको रुकते देखा,
    सुख दुख नित आते जाते
    इन सालों में हमने देखा।।

    शची श्रीवास्तव , लखनऊ

    नववर्ष विद्या-मनहरण घनाक्षरी

    नव वर्ष की बेला में,मिल जुल यार सँग,
    खुशियां मनाओ सब,मस्ती करो भोर से।
    कोई चाहे कुछ कहे,जीवन के चार रंग,सुनो नहीं किसी की,जाने सब शोर से।।
    बधाई नये साल की,बोले जब अंग अंग,गूँजे बस यही बात,मीत चारो ओर से।
    अनमोल पल मिला,होना नहीं आज दंग,प्रेम को बढाओ तुम,नाचो वन मोर से।।

    राजकिशोर धिरही
    तिलई,जाँजगीर छत्तीसगढ़

    नव वर्ष में सपने सूरज के: माला पहल

    शुभ प्रभात,शुभ सबेरा कहकर शुभचिंतन करते,
    नई सुबह ,नया सवेरा कह सबका तुम अभिनन्दन करते,
    पर कभी क्या तुमने मुझको परखा?
    नित सुबह चलाता हूँ अविरत चरखा।

    मुस्कराकर कर दो मेरा भी स्वागत,
    मुझको भी कह दो
    तुम सुप्रभात,
    हर दिन भूमंडल मे स्वर्ण बिखेरता,
    सृष्टि की हर रचना मे आभा भर देता,

    हर वर्ष देखता मैं कई सपने,
    पर इस वर्ष देखे स्वप्न सुनहरे,
    नित बहे शान्ति समानता का स्रोत,
    जिससे हो जाए जग ओतप्रोत,
    भूमंडल मे बिखरे छटा सुनहरी,

    न हो प्रदूषण, न हो कोई महामारी ,
    नव वर्ष में हर बाला,
    दुर्गा का रूप धरे विशाला,
    हर बालक छू ले ऊचाईयां,
    जिसकी कीर्ति से महकेगी ये दुनिया,
    हर मानव के मन का महके कोना कोना,
    जिसमें उत्साह, आशा नवचेतना का सजा हो पलना,
    धूमिल होगा तम,तिमिर ,अवसाद सारा,
    जगपटल हो जायेगा उज्जवल सारा।
    (माला पहल मुंबई से)

    नव वर्ष एक उत्सव की तरह पूरे विश्व में अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग तिथियों तथा विधियों से मनाया जाता है। विभिन्न सम्प्रदायों के नव वर्ष समारोह भिन्न-भिन्न होते हैं और इसके महत्त्व की भी विभिन्न संस्कृतियों में परस्पर भिन्नता है।नववर्ष पर कविता बहार की कुछ हाइकु –

    नववर्ष पर हाइकु – क्रान्ति

    01)
    रात गुजरी
    नववर्ष आते ही
    महका फूल ।

    02)
    महक उठी
    फूलों की फुलवारी
    झूमते भौंरे।।

    03)
    नया तराना
    आया है नया साल
    झूमे जमाना ।

    04)
    नदी किनारे
    उमड़ती लहरें
    मुझे पुकारे ।

    05)
    रखो उम्मीद
    ईश की कृपा से ही
    खुले नसीब ।

    06)
    नया सबेरा
    नूतन वर्ष आते
    छंटे अंधेरा ।

    07)
    सुलगे तन
    पिया मिलन को
    तरसे मन।।

    08)
    उषा किरण
    संग अपने लाया
    वर्ष नूतन।

    09)
    पुराने ख्याल
    नव वर्ष के जैसे
    बदल डाल ।

    10)
    मिलते नहीं
    नदियों के किनारे
    अटल सत्य।।

    11)
    बहती नदी
    चट्टानों को चीरती
    पानी की धार ।

    क्रान्ति, सीतापुर सरगुजा छग

  • कोरोनावायरस पर कविता ( Corona kavita )

    कोरोनावायरस कविता : कोरोनावायरस कई प्रकार के विषाणुओं (वायरस) का एक समूह है जो स्तनधारियों और पक्षियों में रोग उत्पन्न करता है। यह आरएनए वायरस होते हैं। इनके कारण मानवों में श्वास तंत्र संक्रमण पैदा हो सकता है जिसकी गहनता हल्की (जैसे सर्दी-जुकाम) से लेकर अति गम्भीर (जैसे, मृत्यु) तक हो सकती है।

    कोरोनावायरस पर कविता ( Corona kavita )

    यहाँ पर आपको कोरोना कविता ( Corona kavita ) कुछ दिए जा रहे हैं जिससे आपको कोरोना से सम्बंधित जानकारी मिलेगी .

    कोरोना और ज़िंदगी-चंदेल साहिब

    कोरोना से ऐ इंसान तू अब मत घबरा,
    श्रद्धा व सबूरी का एक दीप तो जला।

    मौत तो निश्चित है चंदेल आनी एक दिन,
    हर पल ख़ौफ से अब ख़ुद को न सता।

    रब की बनाई सृष्टि से न कर भेदभाव,
    सावधानी से ख़ुद व समाज का कर बचाव।

    बहुत शक्तिशाली है ह्यूमन इम्यून सिस्टम,
    स्वयं भी जाग एवं दुनिया को भी जगा।

    कोरोना से ऐ इंसान तू अब मत घबरा,
    श्रद्धा व विश्वास का एक दीप तो जला।

    कोरोना से युद्ध -डिजेन्द्र कुर्रे

    उनकी खातिर प्रार्थना,
    मिलकर करना आज।
    जो जनसेवा कर रहे,
    भूल सभी निज काज।
    भूल सभी निज काज,
    प्राण जोखिम में डाले।
    कोरोना से युद्ध ,
    चले करने दिलवाले।
    कह डिजेन्द्र करजोरि,
    सुनो उनके भी मन की।
    बस सेवा का भाव,
    हृदय में बसती उनकी।।

    डिजेन्द्र कुर्रे

    कोरोना विषय पर कविता – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    इंसानियत की आजमाईश है कोरोना
    कहता है कोरोना कहता है कोरोना

    अपने बड़ों का सम्मान कर न
    एक दूसरे को नमस्ते और राम – राम करो न

    उड़ा ले जाऊंगा मैं तुमको सूखे पत्तो न की तरह
    स्वयं पर अभिमान करो न

    संस्कृति , संस्कारों पर विश्वास धरो न
    एक दूसरे पर अविश्वास करो न

    रिश्तों की डोर की पकड़ को बनाए रखो
    इंसानियत का ज़ज्बा बनाये रखो न

    मुसीबत के इस दौरे – कोरोना में
    उस खुदा पर एतबार करो न

    कहता है कोरोना कहता है कोरोना

    धर्म कर्म की राह चलो न
    वर्णशंकर प्रजाति से
    इस धरा को प्रदूषित करो न
    अपने धर्म पर विश्वास करो न

    मंदिर, चर्च, गुरूद्वारे और मस्जिद तेरे लिए हैं
    उस खुदा से अपना दर्द एक बार कहो न

    चंद पुष्प उसके चरणों में अर्पित कर दो
    और उस खुदा से गुजारिश करो
    इस कोरोना से हमें मुक्त करो न

    इस कोरोना से हमें मुक्त करो न
    इस कोरोना से हमें मुक्त करो न

    सिरमौर कोरोना -राजाभइया गुप्ता ‘राजाभ’


    वायरस दल का बना सिरमौर कोरोना।
    साथ लाया त्रासदी का दौर कोरोना।।

    चीन से आकर जगत में पैर फैलाये,
    बन महामारी डराये और कोरोना।

    आक्रमण छुपकर करे फिर कष्ट दे भारी,
    आज जीवन लीलता ज्यों कौर कोरोना।

    भेद बिन पीड़ित सभी को कर रहा अब तो,
    हो गया है क्रूर कितना पौर कोरोना।

    सावधानी से नियम जो पाल लेता है,
    हार उससे छोड़ दे निज ठौर कोरोना।

    दूर जब ‘राजाभ’ करता संक्रमण अपना,
    पास आने को न करता गौर कोरोना।


    रचयिता-राजाभइया गुप्ता ‘राजाभ’
    लखनऊ.

    कोरोना अब तुम कब जाओगे –रमेश लक्षकार लक्ष्यभेदी


    इतना तो सता लिया हमें
    और कितना सताओगे
    कोरोना, सच-सच बतलाना
    अब तुम कब जाओगे ?



    जिस किसी को पाश में जकड़ा
    तो पहले उसका गला पकड़ा
    किसी को न तुम छोड़ रहे हो
    पतला-दुबला हो या मोटा-तगडा़



    इतना तो रूला दिया
    और कितना रुलाओगे
    कोरोना, सच-सच बतलाना
    अब तुम कब जाओगे ?



    बाजार खाया, रोजगार खाया
    धन्धा खाया, व्यवसाय खाया
    नौकरीयाँ खाई, मजदूरी खाई
    अब शेष क्या रह गया भाई ?जाओगे



    पहले ही बहुत छीन लिया तुमने
    क्या सब कुछ छीनकर जाओगे
    कोरोना, सच-सच बतलाना
    अब तुम कब जाओगे ?



    नवीन रिश्तों-नातों को खाया
    बैंड-बाजों-बारातों को खाया
    हसीन सपनों को भी निगला
    फिर भी तेरा मन न पिघला ।



    तुम कब? कैसे? पिघलोगे
    हमें भी कुछ तो बताओगे
    कोरोना सच-सच बतलाना
    अब तुम कब जाओगें ?



    जन-जीवन कितना गया बदल
    कोई आज गया, कोई गया कल
    आकाश को भी यही रहा खल
    रवि असमय ही क्यों गया ढल ?



    निराशा का तिमिर तो फैल गया
    अब और कितना फैलाओगे
    कोरोना, सच-सच बतलाना
    अब तुम कब जाओगे?

    कवि रमेश लक्षकार लक्ष्यभेदी बिनोता

    कोरोना काल- मधु सिंघी

    जो भी सोचें समझें पहले , जीवन की उपयोगी शाम।।
    काल मिला हमको चिंतन का , सोच समझकर करना काम।

    मानव जाति पड़ी संकट में , हाहाकार करे हर ग्राम।।
    कोरोना सबको सिखलाता , एक रहो मिल कर हो काम।

    पहले सब हिलमिल रहते थे , आज अकेले बीते शाम।
    जान पड़ी है अब सांसत में , क्या सूझे अब कोई काम।।

    बदला काल यही अब देखो , रोजाना करना व्यायाम।
    बदलो अब तो जीवन शैली, आवश्यक है अब ये काम।।

    साफ सफाई ज्यादा रखना , सासों पर करना है ध्यान ।
    ऐसी है ये अलग बिमारी , जिंदा रखना अपनी जान ।।

    साँसों का सौदा होता है , देखें होती जीवन शाम।
    दूर रहो पर मिलकर रहना , आना हमको सबके काम।।

    जीवन जीना एक कला है , सीखें इसको लेना काम।
    रह जायेगी कोरी यादें , लेंगे सब अपना फिर नाम।।


    मधुसिंघी (नागपुर)

    रोग बड़ा कोरोना आया – बाबा कल्पनेश

    रोग बड़ा कोरोना आया,लाया भारी हाहाकार।
    रुदन-रुदन बस रुदन चतुर्दिक्,छाया प्रातः ही अँधियार।।
    बंद सभी दरवाजे देखे,मिलने जुलने पर भी रोक।
    पत्थर दिल मानव का देखा,शीश पटकता जिस पर शोक।।

    लहर गगन तक उठती-गिरती,देखा लहर-लहर उद्दाम।
    दूरभाष पर कल बतियाया,गया मृत्यु के अब वह धाम।।
    अपने जन का काँध न पाया,विवश खड़े सब अपने दूर।
    अपने-अपने करतल मींजे,स्वजन हुए इतने मजबूर।।

    घर के भीतर कैद हुए सब,वैद न कर पाए उपचार।
    अधर-अधर सब मास्क लगाए,दिखे अधिक मानव हुशियार।।
    प्रथम लहर आयी थी हल्की,धक्का रही दूसरी मार।
    हट्टे-कट्टे स्वस्थ दिखे जो,गिरते वे भी चित्त पिछार।।

    इतनी आफत कभी न आई,मानव हुए सभी लाचार।
    शिष्टाचार सभी जन भूले,सामाजिकता खाये मार।।
    गए-गए सो दूर गये जो,जो हैं उन्हें मिले धिक्कार।
    सब जन निज लघुता में सिमटे,विवश कर रही है सरकार।।

    नये सिरे से छुआ-छूत का,खुलता देख रहा हूँ द्वार।।
    भले मुबाइल व्हाट्स एप पर,दीखे सुंदर शिष्टाचार।
    पर अपने जीवन में मानव,लगा भूलने निज व्यवहार।।
    सरक रहा है मानवता का,बना बनाया दृढ़ आधार।।

    जितना डरा हुआ है मानव,कलम बोलती केवल हाय।
    देह रक्त के संबंधों पर,रही भयानकता मड़राय।।
    कोरोना की काली छाया,करती बहुत दूर तक मार।
    कौन यहाँ इसका अगुवा है,देने वाला इतना खार।।

    बाबा कल्पनेश
    सारंगापुर-प्रयागराज

    डरे कोरोना भागे – दुर्गेश मेघवाल

    सौ करोड़ , हां, सौ करोड़ हम,
    दुनियां में हुए आगे ।
    एक सुरक्षा कवच बना ,
    जहां ,डरे कोरोना भागे ।
    ताली , थाली, लॉकडाउन सब ,
    जनता के बने हथियार ।
    दुनियां केवल ताकती रह गई,
    वैक्सीन हमारी हुई तैयार ।
    शासन भी मुस्तैद खड़ा रहा,
    सजग प्रशासन जागे ।
    सौ करोड़ , हां, सौ करोड़ हम,
    दुनियां में हुए आगे ।
    एक सुरक्षा कवच बना ,
    जहां ,डरे कोरोना भागे ।

    कुछ सख्ती,कुछ प्यार मोहब्बत,
    साथ सभी का बना रहा ।
    एक-एक का मिला सहयोग ,
    हाथ सभी का लगा रहा ।
    सब मिल एक प्रयासों से ही ,
    हम असीम ऊंचाइयां लांघे।
    सौ करोड़ , हां, सौ करोड़ हम,
    दुनियां में हुए आगे ।
    एक सुरक्षा कवच बना ,
    जहां ,डरे कोरोना भागे ।

    साठ ,पैतालीस, अठारह का ,
    समय निर्धारण मिसाल बना ।
    मात्र उम्र नहीं समता का भी ,
    जनता-मन विश्वास जमा ।
    वयस्क सभी ही बने सुरक्षित,
    जब टीका-कोरोना लागे ।
    सौ करोड़ , हां सौ करोड़ हम,
    दुनियां में हुए आगे ।
    एक सुरक्षा कवच बना ,
    जहां ,डरे कोरोना भागे ।

    बचपन भी हो निकट भविष्य ,
    सुरक्षा चक्र के घेरे में ।
    सभी भारतीय तब ही सुरक्षित ,
    कोरोना के पग-फेरे से ।
    स्वस्थ हो भारत ,सदा सुरक्षित,
    ‘अजस्र ‘ दुआ यही मांगे ।
    सौ करोड़ , हां, सौ करोड़ हम,
    दुनियां में हुए आगे ।
    एक सुरक्षा कवच बना ,
    जहां ,डरे कोरोना भागे ।

    ✍️डी कुमार–अजस्र(दुर्गेश मेघवाल,बून्दी/राज.)


  • पुस्तकों का आश्रय

    पुस्तकों का आश्रय पाकर

    पुस्तकों का आश्रय

    पुस्तकों का आश्रय पाकर

    तुम जो चाहे बन सकते हो |

    चीर कर अज्ञान के तम को

    ज्ञान मार्ग पर बढ़ सकते हो |

    संस्कारों की पूँजी पाकर

    तुम जो चाहे बन सकते हो |

    चीरकर आधुनिकता की बेड़ियाँ

    आदर्श राह पर बढ़ सकते हो |

    आदर्शों की पूँजी लेकर

    तुम जो चाहे बन सकते हो |

    चीर कुविचारों की बेड़ियाँ

    सच की राह पर बढ़ सकते हो |

    आध्यात्म का आश्रय लेकर

    तुम जो चाहे कर सकते हो |

    चीर भौतिक सागर की लहरों को

    मोक्ष मार्ग पर बढ़ सकते हो |

    पुस्तकों का आश्रय पाकर

    तुम जो चाहे बन सकते हो |

    चीर कर अज्ञान के तम को

    ज्ञान मार्ग पर बढ़ सकते हो ||

    रचयिता – अनिल कुमार गुप्ता ” अंजुम “

  • तारों सितारों में तुझे ढूंढता हूँ

    तारों सितारों में तुझे ढूंढता हूँ

    तारों सितारों में तुझे ढूंढता हूँ

    तारों , सितारों में तुझे ढूंढता हूँ

    पवन की बयारों में तुझे ढूंढता हूँ |

    सूना है तू बसता है, हर एक के दिल में

    गली, मोहल्ले, चौराहों पर तुझे ढूंढता हूँ |

    सुना है संवेदनाओं के समंदर में है , तेरा ठिकाना

    चीरहरण की कथाओं में , तुझे ढूंढता हूँ |

    कहीं दिल के कोने में, है तेरी कुटिया |

    मंदिर, मस्ज़िद, चर्च में तुझे ढूंढता हूँ |

    नन्ही परी कूड़े के ढेर का हिस्सा हो गयी

    माँ के मातृत्व में तुझे ढूंढता हूँ |

    सुना है सलिला के कल – कल में बसता है तू

    प्रकृति के कण – कण में तुझे ढूंढता हूँ |

    लाखों घर हुए सूने, हज़ारों गोद हो गयीं सूनी

    कोरोना की इस भीषण त्रासदी में तुझे ढूंढता हूँ |

    उसने पुकारा तुझे बार – बार , फिर भी नोच ली गयीं उसकी आंतें

    उस निर्भय की चीखों, उन दरिंदों की भयावह आँखों में तुझे ढूंढता हूँ |

    लहरों में समा गयी थी , वो मुस्कराते – मुस्कराते

    सामाजिकता में, रिश्तों की भयावहता में तुझे ढूंढता हूँ |

    सह नहीं पाया वो आघात, अपनी बेटी के दुःख का

    दहेज़ के लालची चरित्रों की निकृष्ट सोच में तुझे ढूंढता हूँ |

    तारों , सितारों में तुझे ढूंढता हूँ

    पवन की बयारों में तुझे ढूंढता हूँ |

    सूना है तू बसता है, हर एक के दिल में

    गली, मोहल्ले, चौराहों पर तुझे ढूंढता हूँ ||

    रचयिता – अनिल कुमार गुप्ता ” अंजुम “