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यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर०अनिल कुमार वर्माके हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • कपटी करोना जीव के काल होगे

    कपटी करोना जीव के काल होगे

    कोरोना वायरस
    corona

    जंजाल होगे मानुस बर
    कपटी करोना जीव के काल होगे।।
    छोटे बड़े नई चिन्हैं अंधरा,
    सबो ल बारे तै बन अंगरा।
    तपे तै तपनी अईसे बैरी ,
    कुबेर घलो कंगाल होगे ।
    जंजाल होगे मानुस बर
    कपटी करोना जीव के काल होगे।।
    जमो जिनिस अउ हाथ म रईथे,
    छूत महामारी तोला कईथे।
    मुँह म तोपना हाथ म साबुन
    घर घर ह अस्पताल होगे ।
    जंजाल होगे मानुस बर,
    कपटी करोना जीव के काल होगे।।
    डाक्टर पुलिस अफसर बाबू ,
    हावै करोना म सबले आघु।
    जगा जगा म लागे हे करफू ,
    करमईता के भुंईया हड़ताल होगे ।
    जंजाल होगे मानुस बर,
    कपटी करोना जीव के काल होगे।।
    देहरी बंद हवय देवता के ,
    प्रथा सिरावत हे नेवता के ।
    घर म रहना कहूँ नई जाना
    भीड़ घलौ जी के काल होगे ।
    जंजाल होगे मानुस बर,
    कपटी करोना जीव के काल होगे।।
    सुन्ना परगे गाँव शहर ह,
    हवा म बगरे एखर जहर ह।
    बम बारुद के भरे खजाना,
    इहा दवई के दुकाल होगे ।
    जंजाल होगे मानुस बर,
    कपटी करोना जीव के काल होगे।।
    पैसा वाला मस्त हावै,
    जमो गरीब त्रस्त हावै।
    रंग रंग केे पकवान कहूं ल,
    पेज पसिया के मुहाल होगे।
    जंजाल होगे मानुस बर,
    कपटी करोना जीव के काल होगे।।
    गुजर बसर के नियम बदलगे,
    चीन देस के जादू ह चलगे।
    हाथ ल धो के पाछू परगे ,
    चारोमुड़ा सुनसान होगे ।
    जंजाल होगे मानुस बर,
    कपटी करोना जीव के काल होगे।।

  • करिया बादर पर कविता

    करिया बादर पर कविता

    छत्तीसगाढ़ी रचना
    छत्तीसगाढ़ी रचना

    करिया करिया बादर,तै हा आना।
    घटा बनके चुंदी ल छरियाना।
    जम्मों जीव रद्दा तोर देखत हे।
    गरमी पियास कुहका झेलत हे।
    बिजली के बिंदी लगाना।
    आँखी म काजर अँजाना।
    करिया करिया बादर,तै हा आना।
    घटा बनके चुंदी ल छरियाना।
    भुँईया के छाती ह फाटगे।
    पानी सुखागे हे घाट के।
    झमझम ले मौसम बनाना।
    सुग्घर नगाड़ा बजाना।
    करिया करिया बादर,तै हा आना।
    घटा बनके चुंदी ल छरियाना।
    नदिया अउ नरवा सुखागे।
    कुआँ अउ नल ह अटागे।
    नवा बहुरिया अस लजाना।
    चंदा कस मुँह ल देखाना।
    करिया करिया बादर,तै हा आना।
    घटा बनके चुंदी ल छरियाना।
    रुख राई कल्पत हे देख ले।
    जीव जंतु तड़फत हे देख ले।
    अमृत के धार ल बोहाना।
    गंगा मैंया हमला तै जियाना।
    करिया करिया बादर,तै हा आना।
    घटा बनके चुंदी ल छरियाना।

  • जय गणेश जी पर कविता

    गणपति को विघ्ननाशक, बुद्धिदाता माना जाता है। कोई भी कार्य ठीक ढंग से सम्पन्न करने के लिए उसके प्रारम्भ में गणपति का पूजन किया जाता है।

    भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का दिन “गणेश चतुर्थी” के नाम से जाना जाता हैं। इसे “विनायक चतुर्थी” भी कहते हैं । महाराष्ट्र में यह उत्सव सर्वाधिक लोक प्रिय हैं। घर-घर में लोग गणपति की मूर्ति लाकर उसकी पूजा करते हैं।

    जय गणेश जी पर कविता

    गणेश
    गणपति

    ददा ल जगा दे दाई,
    बिनती सुनाहुं ओ,
    नौ दिन के पीरा ल,
    तहु ल बताहुं ओ।
    लईका के आरो ल सुनके,
    आँखी ल उघारे भोला,
    काए होेगे कइसे होगे,
    कुछु तो बताना मोला।
    कईसे मैं बतावौ ददा,
    धरती के हाल ल,
    आँसू आथे कहे ले,
    भगत मन के चाल ल
    होवथे बिहान तिहा,
    जय गणेश गावथे,
    बेरा थोकन होय म,
    काँटा ल लगावथे।
    गुड़ाखू ल घसरथे,
    गुटका ल खाथे ओ,
    मोर तिर म बईठे,
    इकर मुँह बस्सावथे।
    मोर नाव के चंदा काटे,
    टूरा मन के मजा हे,
    इहे बने रथव ददा,
    ऊँंहा मोर सजा हे।

    रोज रात के सीजर दारू,
    ही ही बक बक चलथे ग,
    धरती के नाव ल सुनके,
    जी ह धक धक करथे ग।
    डारेक्ट लाईन चोरी,
    एहू अबड़ खतरा,
    नान नान टिप्पूरी टूरा,
    उमर सोला सतरा।
    मच्छर भन्नाथे मोर तिर,
    एमन सुत्थे जेट म,
    बडे़ बडे़ बरदान माँगथे,
    छोटे छोटे भेंट म।
    ऋद्वि सिद्वी तुहर बहुरिया,
    दुनो रिसाये बईठे हे,
    कुछू गिफ्ट नई लाये कइके,
    सुघर मुँ ंह ल अईठे हे।
    मोला चढ़ाये फल फूल,
    कभू खाये नई पावौ ग,
    कतका दुःख तोला बतावौ,
    कईसे हाल सुनावौ ग।
    आसो गयेव त गयेव ददा,
    आन साल नई जावौ ग,
    मिझरा बेसन के लाडु,
    धरौ कान नई खावौ ग।

  • छत्तीसगढ़ के बघवा बैरिस्टर छेदीलाल ठाकुर

    छत्तीसगढ़ के बघवा-ठाकुर छेदीलाल बैरिस्टर

    छत्तीसगाढ़ी रचना
    छत्तीसगाढ़ी रचना

    छत्तीसगढ़ के गौरव रत्न ठाकुर छेदीलाल बैरिस्टर का जन्म अकलतरा के समीप ग्राम खटोला में गणेश चतुर्थी के दिन 1891 में हुआ । उनके पिता का नाम पचकोड़ सिंह व माता का नाम सोनकुंवर था। उनका परिवार राज परिवार था। जहां संपूर्ण सुख सुविधाओं के साथ वे पले बढ़े थे। प्राथमिक शिक्षा अलकतरा में प्राप्त किए. ठाकुर छेदीलाल के जन्म से पहले उनके दो पुत्रों का देहांत हो गया था।

    बालपन में बैरिस्टर साहब को बीमारियो से बचाने के लिए उनकी माँ सोनकुवर ने पुत्र के नाक और कान छिदवाया था। वहीं से उनका नाम छेदीलाल पड़ गया। बीमारी से मुक्ति के लिए उनके माता पिता ने देवी के मंदिर में ज्योति जलवाई थी। वे बचपन में बड़े शरारती थे। ठाकुर छेदिलाल बैरिस्टर की पहली पत्नी का नाम हीरादेवी और दूसरी पत्नी का नाम सुशीला था।

    शादी के 27 साल बाद भी उन्हें पहली पत्नी से संतान प्राप्त नहीं हुआ। चाचा दीवान साहब ने बनारस के परिचय सम्मेलन में उनके विवाह का प्रस्ताव रखा। 1857 क्रांति के नायक राणा बेनी माधव के पुत्र ने अपनी बेटी सुशीला देवी का हाथ बैरिस्टर साहब को सौंपा। उनकी पुत्री का नाम रत्नावली सिंह है। रत्नावली की दो पुत्रियां क्रमशः डा. मधुलिका सिंह और डा. स्वाती वंदना है। उनके पुत्र विजय प्रताप सिंह हैं। जिनके पुत्र अमित सिंह और अमर सिंह है।

    शिक्षा –

    प्रयाग के म्योर कालेज में इंटरमीडिएट करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए आक्सफोर्ड चले गए। आक्सफोर्ड में पढ़ाई के लिए जाते वक्त वे आलू खाया करते थे। वहाँ पर इतिहास में एम. ए. , एल. एल. बी. और बार एट ला की उपाधि प्राप्त की। वे हिन्दी,अंग्रेजी,उर्दू और संस्कृत की भाषा में निपुण थे। वे स्कालरशिप के पैसे से पढ़ने लंदन गए।

    आगे – लंदन में इंडिया हाउस नामक क्रांतिकारी संगठन से जुड़े। साथ ही फ्रंास में बम निर्माण सीखा। उन्होंने हालेंड के स्वतंत्रता का इतिहास लिखा.1919 में स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए। जलियांवाला बांग हत्याकांड की जांच समिति के सदस्य रहे.
    1921 में बनारस वि.वि. में संस्कृत और 1922 में गुरुकुल कांगड़ी में इतिहास विषय में अघ्यापन कार्य भी किया। 1926 तक प्रयाग की सेवा समिति में संचालक के रुप में रहे। वे कानून के जानकार थे। वकालत के बाद सक्रिय राजनीति में शामिल हुए। वे महात्मा गाँधी से प्रभावित होकर कांग्रेस में शामिल हुए।

    वे जगह जगह राष्ट्रीय विघालयो की स्थापना का प्रयास करते रहे. श्रमिकों में चेतना फैलाने के लिए 1927 से 1932 तक श्री वी. वी. गिरी के साथ बंगाल भनपुर रेलवे श्रमिक संघ के उच्च पदों को सुशोभित किया। बिलासपुर में जागृति जगाने के लिए उन्होंने रामायण मंच से राष्ट्रीय रामायण का अभिनव प्रयोग किया। शुरुआत में उनका झुकाव स्वराज दल में था, लेकिन बाद में गांधी जी से प्रभावित होकर कांग्रेस के सदस्य बन गए. 1932 में असहयोग आंदोलन में भाग लेने के लिए उन्हें 2500/ अर्थदंड देना पड़ा।

    1932 में आखिल भारतीय कांग्रस कमेटी के सदस्य तथा बाद में कांग्रस समिति के अध्यक्ष भी बने। मुंगेली के सतनामियों को राजनीति में लाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 25 नवंबर 1933 में गांधीजी के बिलासपुर आगमन पर , वे स्वागत समिति के अध्यक्ष रहे. 1937 में अकलतरा से कांग्रेस का विधायक बने। 1939 में मंत्री पद से स्तीफा दे दिया. 1942 में असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण गिरफ्तार कर तीन वर्ष के लिए कारावास की सजा हुई. 1946 में संविधान सभा के सदस्य भी रहे।1950 से 1952 तक के लिए उन्हें अस्थायी सांसद के रूप में मनोनीत किया गया.


    महात्मा गांधी ने उन्हे मध्यप्रांत के मुख्यमंत्री बनने के लिए कहा था। जिसे ठाकुर जी ने विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दिया। ऐसे ही उन्हे जबलपुर उच्चन्यायालय के पहले मुख्यन्यायधीश के पद को भी लेने से इंकार कर दिया। बैरिस्टर छेदीलाल को छत्तीसगढ़ का बघवा कहा जाता था। वे छत्तीसगढ़ के प्रथम बैरिस्टर माने जाते है। 1956 में हृदय घात से उनकी मृत्यु हुई.
    साहित्य- ठाकुर छेदीलाल ने विकास पत्रिका हिन्दी प्रेमी के नाम से केई लेख लिखे. वे माखनलाल चतुर्वेदी के कर्मवीर के संपादक रहे.


    रुचि –

    बैरिस्टर छेदीलाल बहुत शौकिन थे। उन्हें सूट बूट पसंद था। नई गाड़ियों को खरीदकर रखते थे। उनक शेवरलेट कार आज भी बिलासपुर के घर में रखी है। हिदायतउल्ला खान उनके ड्रायवर थे। उन्हें नागरा जूता, छड़ी, हुकका प्रिय था। वे संगीत में भी रुचि रखते थे, साथ ही तबला वादन करते थे. वे गुलाब का शौक रखते थे। उन्होंने गुलाब की कई प्रजातियां लंदन से मंगाई थी। उन्हें ठहाके मारकर हँसना पसंद था। उन्हें लिखना, पढ़ना और दूसरों की सहायता करना अच्छा लगता था। कुत्ता पालने का शौक भी रखते थे। वे शिक्षक, लेखक और इतिहासकार के रुप में जाने जाते हैं।

    छत्तीसगढ़ के बघवा बैरिस्टर छेदीलाल ठाकुर

    संकलन
    अनिल कुमार वर्मा, व्याख्याता

  • फील गुड हिंदी कविता

    फील गुड हिंदी कविता

    kavita

    भूख में मनुज देखो,
    पेट बाँध सोता है।
    जीने के लिये वह,
    बेटा बेटी खोता है।
    भारत महान है,
    अस्सी बेईमान है।
    कहुँ अब कैसे कि,
    फील गुड होता है।
    रोज रोज दंगे यहाँ,
    रेप मर्डर होता है।
    बंदुक चलाने वाले,
    बन गये नेता हैै।
    मंदिर दुकान है,
    भटके नौजवान है।
    कहुँ अब कैसे कि,
    फील गुड होता है।
    शेर सब शिकार होकर,
    पिंजरे में रोता है।
    वर्दी पहनकर,
    सियार बांस होता है।
    शोषित किसान है,
    कुंठित बुद्विमान है।
    कहुँं अब कैसे,
    फील गुड होता है।

    अनिल कुमार वर्मा, सेमरताल