अभिलाषा पर दोहे – बाबूराम सिंह
अभिलाषा पर दोहे मेरा मुझमें कुछ नहीं ,सब कुछ तेरा प्यार। तू तेरा ही जान कर ,सब होते भव पार।। क्षमादया तेरी कृपा,कण-कण में चहुँ ओर।अर्पण है तेरा तुझे ,क्या लागत है मोर।। सांस-सांस में रम रहा ,तू है जीवन डोर।माया मय पामर पतित ,मै हूँ पापी घोर।। तार करूणा कर मुझे ,हे दीनों के … Read more