Tag: Hindi poem on Magh

माघ शुक्ल की पंचमी : माघ शुक्ल पंचमी भारतीय पंचांग के अनुसार ग्यारहवें माह की पाँचवी तिथि है, वर्षान्त में अभी ५५ तिथियाँ अवशिष्ट हैं।

  • शारदे आयी हो मेरे अंगना

    शारदे आयी हो मेरे अंगना

    हे माँ शारदे, महाश्वेता आयी हो मेरे अंगना ।
    पूजूँगा तुम्हें हे शतरूपा, वीणापाणि माँ चंद्रवदना ।।


    बसंत ऋतु के पाँचवे दिवस पर हंस पे चढ़ कर आती हो।
    हे मालिनी इसलिए तुम हंसवाहिनी कहलाती हो।।
    माता तुम हो पुस्तक-धारिणी पुस्तक चढ़े तेरे चरणों में।
    ज्ञान का वर दो हे महामाया आया हूँ तेरी शरणों में ।।


    ज्ञान का गागर भरकर माता अपने साथ जो लाती हो ।
    अज्ञानता को दूर भगा माँ ज्ञान का अमृत पिलाती हो ।।
    हे चित्रगंधा माँ सरस्वती अबीर गुलाल तुम्हें भाता है ।
    तेरे आगमन से महाभद्रा फाग संगीत शुरू हो जाता है ।।


    आम की मंजरी, गेहूँ की बाली तेरी चरणों में आने को तरस रही।
    गेंदा,गुलाब,जूही और केतकी तेरी चरणों में बरस रही ।।
    गाजर,बेर,शकरकंद और अमरूद का बनता है महाप्रसाद ।
    महाप्रसाद खाने से सुवासिनी मिलता हमें ज्ञान का स्वाद ।।


    हे वागीश्वरी ज्ञानदायिनी आते रहना तुम  हर साल ।।
    खुशी- खुशी पूजूँगा माता और उड़ाऊ खूब गुलाल ।।

    बाँके बिहारी बरबीगहीया

  • बसंत पंचमी पर गीत – सुशी सक्सेना

    मेरे मन का बसंत

    बसंत ऋतु का, यहां हर कोई दिवाना है।
    क्या करें कि ये मौसम ही बड़ा सुहाना है।
    हर जुबां पर होती है, बसंत ऋतु की कहानी।
    सुबह भी खिली खिली, शाम भी लगती दिवानी।

    चिड़ियों ने चहक कर, सबको बता दिया।
    बसंत ऋतु के आगमन का पता सुना दिया।
    पतझड़ बीत गया, बन गया बसंती बादल।
    पीली चुनरिया ओढ़ कर, झूम उठा ये दिल।

    बसंत एक दूत है, देता प्रेम का संदेश।
    मेरे मन में बसंत का जब से हुआ प्रवेश।
    मन का उपवन खिल उठा, छा गई बहार।
    बसंत ऋतु में नया सा लगने लगा संसार।

    नये फूल खिले, नई ख्वाहिशें मचली।
    मन के उपवन में मंडराने लगी तितली।
    प्रीत का अब तो मुझको, हो गया अहसास।
    सुंगधित हवा कहती है, कोई है मन के पास।

    सुशी सक्सेना

  • माघ शुक्ल बसंत पंचमी पर कविता

    माघ शुक्ल बसंत पंचमी पर कविता

    माघ शुक्ल की पंचमी,
    भी है पर्व पुनीत।
    सरस्वती आराधना,
    की है जग में रीति।।


    यह बसंत की पंचमी,
    दिखलाती है राह।
    विद्या, गुण कुछ भी नया,
    सीखें यदि हो चाह।।


    रचना, इस संसार की,
    ब्रह्मा जी बिन राग।
    किये और माँ शक्ति ने,
    हुई स्वयं पचभाग।।


    राधा, पद्मा, सरसुती,
    दुर्गा बनकर मात।
    सरस्वती वागेश्वरी,
    हुईं जगत विख्यात।।


    सभी शक्ति निज अंग से,
    प्रकट किये यदुनाथ।
    सरस्वती जी कंठ से,
    पार्टी वीणा साथ।।


    सत्व गुणी माँ धीश्वरी,
    वाग्देवि के नाम ।
    वाणी, गिरा, शारदा,
    भाषा, बाच ललाम।।


    विद्या की देवी बनी,
    दें विद्या उपहार।
    भक्तों को हैं बाँटती,
    निज कर स्वयं सँवार।।


    लक्ष्मी जी भी साथ ही,
    पूजें, कर निज शुद्धि।
    धन को सत्गति ही मिले,

    विमल रहेगी बुद्धि।।

    एन्०पी०विश्वकर्मा, रायपुर


  • ऋतुओं का राजा होता ऋतुराज बसंत

    ऋतुओं का राजा होता ऋतुराज बसंत

    ऋतुओं का राजा

    इस दुनिया में तीन मौसम है सर्दी गर्मी और बरसात।
    इनमें आते ऋतुएं छह ,चलो करते हैं हम इनकी बात।
    सभी ऋतुओं का राजा होता , ऋतुराज बसंत।
    चारों ओर हरियाली फैलाता, चित्त को देता आनंद।।
    फरवरी कभी मार्च से होता है तुम्हारा आगमन।
    खेतों में सरसों के फूल , झूमते हैं होकर मस्त मगन।
    पूरे साल में केवल बसंत में खिलते हैं फूल कमल ।
    पशु-पक्षी भी करती इस ऋतु में , अति चहल पहल।
    प्रकृति की सुंदरता बढ़ाती, पेड़ों की हर डाली लहराता।
    ना ज्यादा गर्मी लगती है , ना ज्यादा सर्दी सताता।
    चारों ओर छाती प्रसन्नता, मधुर तान सुनाती अपनी कोयल।
    पीलापन छा जाता सब ओर, पैरों में छनकती खुशियों की पायल।
    ऋतु वसंत के नाम पर , लोग मानते त्यौहार वसंत पंचमी।
    मात सरस्वती की पूजा करते , मन से अपने पूरे सभी।
    होली जैसा रंग बिरंगा, त्यौहार देन है ऋतु वसंत की।
    मेला लगाते कई जगहों पर , व्यक्त करते अपने आनंद की।
    इसीलिए तो ऋतु वसंत , ऋतुओं का राजा कहलाता है।
    वातारण में लाता नवीनता , मन को प्रफुल्लित कराता है।।

    रीता प्रधान,रायगढ

  • आता देख बसंत

    आता देख बसंत
    आता देख बसंत, कोंपलें तरु पर छाए।
    दिनकर होकर तेज,शीत अब दूर भगाए।।
    ग्रीष्म शीत का मेल,सभी के मन को भाए।
    कलियाँ खिलती देख, भ्रमर भी गीत सुनाए।
    मौसम हुआ सुहावना,स्वागत है ऋतुराज जी।
    हर्षित कानन बाग हैं,आओ ले सब साज जी।।

    यमुना तट ब्रजराज, पधारो मोहन प्यारे।
    सुंदर सुखद बसंत ,सजे नभ चाँद सितारे।।
    छेड़ मुरलिया तान, पुकारो अब श्रीराधे।
    महाभाव में लीन, हुई हैं प्रेम अगाधे।।
    देखो गोपीनाथजी, आकुल तन मन प्राण हैं।
    रास करें आरंभ शुभ,दृश्य हुआ निर्माण है।।

    धरा करे श्रृंगार,पुष्प मकरंद सँवारे।
    कर मघुकर गुंजार,मधुर सुर साज सुधारे।।
    बिखरा सुमन सुगंध, पलासी संत सजारे।
    आया नवल बसंत,मिलन हरि कंत पधारे।।
    आनंदित ब्रजचंद हैं,सुध बिसरी ब्रजगोपिका।
    ब्रज में ब्रम्हानंद है,श्रीराधे आल्हादिका।।

    -गीता उपाध्याय'मंजरी' रायगढ़ छत्तीसगढ़