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यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर0 महदीप जंघेल के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • नारा भर हांकत हन (व्यंग्य रचना)

    नारा भर हांकत हन (व्यंग्य रचना)

    नारा भर हांकत हन (व्यंग्य रचना)

    नारा भर हांकत हन (व्यंग्य रचना)
    हसदेव जंगल


    पेड़ लगाओ,पेड़ बचाओ ,
    खाली नारा भर ला हांकत हन।
    अऊ खेत जंगल के रुख राई ला,
    चकाचक टांगिया मां काटत हन।

    थोकिन रुपिया पईसा के लालच मा,
    सउघा रुख राई ला काट डरेन।
    दाई ददा बरोबर जियइया रुख ला,
    जीते जी मार डरेन।

    पर्यावरण बचाना हे,कहीके
    नारा ला कांख कांख के हांकत हन।
    नरवा, कुआं,नदिया,तरिया,ला,
    बिकास के धुन मा पाटत हन।

    विकास के चक्कर मा, मनखे मन,
    पहाड़ अऊ जंगल ला काटत हन।
    प्रकृति ला बेच के जम्मों,
    धन दौलत ला बांटत हन।

    प्रकृति से झन खिलवाड़ करव,
    ये हमर महतारी आय।
    जम्मो जीव जंतु मनखे के,
    सुग्घर पालनहारी आय।

    प्रकृति महतारी खिसियाही जब
    भयंकर परलय लाही।
    मनखे जीव सकल परानी,
    धरती घलो नई बच पाही।

    जम्मो मनखे मन मिलके,
    पर्यावरण ला बचाबो।
    अवईया पीढ़ी बर हमन ,
    ये धरती ला सुग्घर बनाबो।

    ✍️रचना –महदीप जंघेल

  • वृक्ष की पुकार कविता -महदीप जंघेल

    विश्व पर्यावरण दिवस पर वृक्ष की पुकार कविता -महदीप जंघेल

    poem on trees
    poem on trees

    मत काटो हमें,
    संरक्षण दो।
    सिर्फ पेड़ नही हम,
    हैं हम जीवन का आधार
    हमें भी जीने दो,
    सुन लो, हमारी पुकार।।

    बिन हमारे धरती सूनी,
    सूना है संसार।
    बिन हमारे धरती मां का,
    कौन करे श्रृंगार?
    हमें भी जीने दो,
    सुन लो, हमारी पुकार।।

    हमसे ही पाया है सब कुछ ,
    बदले में किया तिरस्कार।
    चंद रुपयों में तौल दिया,
    न मिला प्रेम दुलार।
    हमे भी जीने दो,
    सुन लो ,हमारी पुकार।

    बहे ,हमी से जीवन धारा,
    सजे हमी से धरा श्रृंगार।
    वृक्ष लगाकर, वृक्ष बचाकर,
    विश्व पर करो उपकार।
    हमे भी जीने दो,
    सुन लो, हमारी पुकार।।

    जब वृक्षहीन हो जाएगी धरणी,
    तब तपेगा सारा संसार।
    त्राहि माम ,त्राहि माम होगा विश्व में,
    चहुँ ओर गूंजेगा चित्कार।
    हमे भी जीने दो ,
    सुन लो,हमारी पुकार।

    विश्व बचाना हो अगर,
    तो हो जाओ अब तैयार।
    वृक्षारोपण करो धरा पर,
    करो आदर और सत्कार।
    हमे भी जीने दो।,
    सुन लो, हमारी पुकार।।

    सब कुछ किया अर्पण तुम पर,
    जिंदगी का कराया दीदार।
    मत काटो हमें,
    संरक्षण दो ।
    हैं हम जीवन का आधार,
    हमे भी जीने दो,
    सुन लो, हमारी पुकार।।

    ✍️रचनाकार- महदीप जंघेल
    निवास- खमतराई
    वि.खं – खैरागढ़
    जिला -राजनांदगांव(छ. ग)

  • कोरोना टीका जरूर लगवाएं – महदीप जंघेल

    कोरोना टीका जरूर लगवाएं – महदीप जंघेल

    कोरोना वायरस
    corona

    (कोरोना महामारी विशेष)

    न डरे ,न किसी को डराएं,
    न ही भ्रांतियां फैलाएं।
    विश्वसनीय और जीवनरक्षक,
    कोरोना का टीका जरूर लगवाएं।

    जानलेवा ये कोरोना महामारी है,
    जीवन पर बहुत भारी है।
    बहुतों के प्राण हर चुका,
    लगवाएं , टीका बहुत जरूरी है।

    सबको जान प्यारी है,
    दुष्ट निर्दयी ये महामारी है।
    नहीं बख्शा किसी को अब तक,
    लगवाएं, टीका बहुत जरूरी है।

    तरह तरह की भ्रांतियां फैली,
    भयवश, जीवन अधूरी है।
    न डरे ,न घबराएं कोई,
    लगवाएं, टीका बहुत जरूरी है।

    प्राणदायिनी टीका सबको,
    कोरोना से बचाएगी।
    प्राण रक्षा करके,जीवन में,
    खुशियों की सौगात लाएगी।

    अतः न डरे ,न डराएं,
    न घबराएं,न भ्रांतियां फैलाएं।
    विश्वसनीय और प्राणरक्षक,
    कोरोना का टीका जरूर लगवाएं।

    महदीप जंघेल
    ग्राम – खमतराई , वि.खं – खैरागढ़
    जिला – राजनांदगांव (छ.ग)

  • नर्स दिवस पर कविता: सेवाभावी परिचारिका – महदीप जंघेल

    इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ नर्सेस (नर्स लोगन के अंतर्राष्ट्रीय समीति) एह दिवस के 1965 से हर साल मनावेले। जनवरी 1974, से एकरा के मनावे के दिन 12 मई के चुनल गइल जवन की फ्लोरेंस नाइटेंगल के जन्म दिवस हवे। फ्लोरेंस नाइटेंगल के आधुनिक नर्सिंग के संस्थापक मानल जाला।

    नर्स दिवस पर कविता: सेवाभावी परिचारिका - महदीप जंघेल

    नर्स दिवस पर कविता: सेवाभावी परिचारिका


    हर वक्त खड़ी रहती,
    हर वक्त डटी रहती।
    हौसलों की उड़ान भरी रहती,
    उम्मीदों को पंख देती।
    अच्छी व सच्ची जिसकी होती भूमिका,
    वो है सेवाभावी परिचारिका।

    दुःख व संताप हरती,
    मरीजों की देखभाल करती।
    बुरे वक्त में साथ रहती,
    रुग्णो को नवजीवन देती।
    सेवा की है जो संचालिका,
    नित सेवारत रहती परिचारिका।

    रुग्णों की नित सेवा कर,
    अपना फर्ज निभाती ।
    मां,और पत्नी का भी,
    अपना धर्म निभाती।
    कर्तव्य पथ पर अडिग ,
    साहस,धैर्य,दया की मणिकर्णिका।
    नित सेवाधर्म निभाती,
    साहसी बहादुर परिचारिका।

    हर पल जो साहस जगाती,
    उम्मीदों की सुमन खिलाती।
    नवजीवन का संचार कराती,
    दया और करुणा लुटाती।
    मां का प्रेम दिखाती परिचारिका।

    सेवा धर्म हर फर्ज निभाती,
    खिलता नित नव चमन।
    मुरझाए जो फूल खिलाती ,
    उनको मेरा शत शत नमन।


    📝महदीप जंघेल
    खमतराई, खैरागढ़

  • कभी सोचा न था- कविता – महदीप जंघेल

    कभी सोचा न था (कविता)

    kavita

    जिंदगी कभी ऐसी होगी,
    कभी सोचा न था।
    ऐसी वीरान,उदासी और
    जद्दोजहत होगी जिंदगी,
    कभी सोचा न था।

    अपनो को अपने आंखों
    के समक्ष खोते देखा,
    और कुछ कर भी न पाया,
    ऐसी लानत भरी होगी जिंदगी,
    कभी सोचा न था।

    दोस्त, पड़ोसी,रिश्तेदार,
    परिवार को तड़पते देखा,
    यूं ही बिस्तर पर मरते देखा,
    कितनो के सांस उखड़ते देखा,
    कभी पड़ोसी की एक छींक से ,
    कभी चैन से सोता न था,
    ऐसी भयानक होगी जिंदगी,
    कभी सोचा न था।

    घुटन भरी हो गई है ये जिंदगी,
    तपन भरी हो गई है ये जिंदगी।
    कभी हंसते मुस्कुराते,
    अपनो से मिला करते थे,
    सुख-दुःख की मीठी बातें
    मजे से किया करते थे।
    जिंदगी में मोड़ भी कभी ऐसे आयेंगे,
    अपने , अपनो से दूर हो जाएंगे।
    कभी सोचा न था।
    बड़ी से बड़ी मुसीबत में भी,
    कभी रोता न था।
    जिंदगी ऐसी वीरान और
    जद्दोजहत भरी होगी,
    कभी सोचा न था।

    कैद सा होगा जीवन
    कभी सोचा न था।
    किसी की तबाह होगी जिंदगी ,
    कभी सोचा न था।
    अपनो को अभी खोना पड़ेगा,
    कभी सोचा न था।
    हंसी खुशी जिंदगी में,
    अभी रोना पड़ेगा ,
    कभी सोचा न था।

    📝महदीप जंघेल,
    खमतराई, खैरागढ़