मन की लालसा किसे कहे
मन की लालसा किसे कहे सच कहुं तो कोई लालसा रखी नहींमन की ललक किसी से कही नहीं क्यों कि जीवन है मुट्ठी में रेत धीरे धीरे फिसल रहा खुशियां, हर्ष, गम प्रेम इसी से मन बहल रहा। बचपन की राहे उबड़ खाबड़,फिर भी आगे बढ़ते रहे,भेद भाव ना बैर मन मेंनिश्छल ही चलते … Read more