लौट आओ बसंत

लौट आओ बसंत न खिले फूल न मंडराई तितलियाँन बौराए आम न मंडराए भौंरेन दिखे सरसों पर पीले फूलआख़िर बसंत आया कब..? पूछने पर कहते हैं–आकर चला गया बसंत !मेरे मन में रह जाते हैं कुछ सवालकब आया और कब चला गया बसंत ?कितने दिन तक रहा बसंत ?दिखने में कैसा था वह बसंत ? … Read more

तोड़े हुए रंग-बिरंगे फूल :नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

तोड़े हुए रंग-बिरंगे फूल टीप-टीप बरसता पानीछतरी ओढ़ेसुबह-सुबह चहलकदमी करतेघर से दूर सड़कों तक जा निकलादेखा–सड़क के किनारेलगे हैं फूलदार पौधे कईपौधों पर निकली हैं कलियाँ कईमग़र कहीं भीदूर-दूर तक पौधों परखिले हुए फूल एक भी नहींसहसा नजरें गईनहाए न धोएफूल चुन रहे पौधों सेमहिला-पुरुष कई-कईवही जो कहलाते आस्तिक जनरखे हुए हैं झिल्ली मेंतोड़े हुए … Read more

अरे लकीर के फकीरों

अरे लकीर के फकीरों अपने-अपने मुहावरों परवे और तुमजिते आ रहे हो सदियों सेमुहावरा कभी बदला ही नहींन उनका न तुम्हारा शासक हैं वेबागडोर है उनके हाथों मेंवे अपने मुहावरों पररहते हैं सदा कायम तुम्हारे लिएवे जो भी कहते हैंकभी नहीं बदलतेचाहे जो हश्र हो तुम्हारावे अपने मुहावरों के पक्के हैं एक बार कह देने … Read more

हिन्दी कविता: वक्ता पर कविता– नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

वक्ता पर कविता- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र हे मेरे प्यारे वक्तावाक कला में प्रवीणबड़बोला महाराजबातूनी सरदारकृपा करके हमें भी बताओकि तुम इतना धारा प्रवाहकैसे बोल लेते हो..?बिना देखे,बिना रुकेघंटों बोलने की कलाआख़िर तुमने कैसे सीखी है..?दर्शकों कोगुदगुदाने वाली कविताएँजोश भरने वाली शायरियांऔर नैतिक उपदेश वालेसंस्कृत के इतने सारे श्लोकतुमने भला कैसे याद किए हैं..?मुझे नहीं लगताकि … Read more

हिन्दी कविता: रायपुर सेंट्रल जेल में-नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

रायपुर सेंट्रल जेल में-नरेन्द्र कुमार कुलमित्र रायपुर में पढ़ता था मैंपंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालयथा दर्शनशास्त्र का विद्यार्थीजन्मभूमि सा प्यारा था आज़ाद छात्रावास गाँव वालों की नज़रों मेंथा बड़ा पढन्तामेरे बारे में कहते थे वे–“रइपुर में पढ़ता है पटाइल का नाती।” मेरे गाँव के पास का एक गाँवजहाँ रहती थी मेरी फुफेरी दीदीफुफेरा जीजा था जो … Read more