रायपुर सेंट्रल जेल में-नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
रायपुर में पढ़ता था मैं
पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय
था दर्शनशास्त्र का विद्यार्थी
जन्मभूमि सा प्यारा था आज़ाद छात्रावास
गाँव वालों की नज़रों में
था बड़ा पढन्ता
मेरे बारे में कहते थे वे–
“रइपुर में पढ़ता है पटाइल का नाती।”
मेरे गाँव के पास का एक गाँव
जहाँ रहती थी मेरी फुफेरी दीदी
फुफेरा जीजा था जो हत्यारा
खेती के झगड़े में कर दिया था
किसी का ख़ून
उम्र क़ैद की सज़ा भोग रहा था
रायपुर सेंट्रल जेल में
दीदी के गुजारिश पर
एक बार गया था उससे मिलने
साथ ले गया था
उसकी फरमाइश की सामानें
मेघना बीड़ी का आधा पुड़ा
पांच डिब्बा गुड़ाखू तोता छाप
और साथ में माचिस,मिक्चर भी
बड़ा अजीब लग रहा था मुझे
सोच रहा था कोई दोस्त न मिले रस्ते में
गर किसी को बताना पड़े
कि मैं जा रहा हूँ कहाँ..?
तो वे क्या सोचेंगे मेरे बारे में
यही कि मैं हूँ अपराधी का संबंधी
शून्य से नीचे था मेरा आत्मविश्वास
मुँह पर रूमाल बाँधकर
दोस्तों से नजरे चुराता
निकला था विश्विद्यालय कैंपस से
सेंट्रल जेल रायपुर के लिए
जेल परिसर में
कैदियों से मिलने वालों की लगी थी भींड़
एक आरक्षक नोट कर रहा था
आगन्तुकों का नाम,पता और क़ैदी से उसका रिश्ता
मुझे नाम पता के साथ
बताना पड़ा था साला होने का संबंध
कैदी से अपना संबंध ऊफ !
भर गया था मैं गहरे अपराध बोध से
मन ही मन उस अपराधी जीजा को दिया था गाली
साssलाss जीजा
मैं इन्तिजार करता रहा
दो घंटे बाद भी नहीं पुकारा गया मेरा नाम
चुपचाप देख रहा था पूरा माज़रा
मुझसे बाद आए कितने
और मिलकर चले भी गए
पहले मिलने के लिए
पुलिस को देना पड़ता था सौ-पचास के नोट
अपराध को रोकने वाले
ख़ुद खेल रहे थे अपराध का खेल
गुस्से में सहसा मैं फूट पड़ा था
चिल्लाया था ज़ोरदार
ये सब क्या हो रहा है..?
मुझे मिलने क्यों नहीं दे रहे हो..?
बाद में आए वो कैसे मिल लिए..?
पुलिसवाले ने गुर्राया था मुझ पर
” ऐ चिल्लाओ मत नहीं तो डाल दूँगा तुम्हें भी जेल में।”
देखते ही देखते
मेरी तरह के पीड़ित दो-चार लोग
शामिल हो गए थे मेरे साथ
जेल प्रशासन के ख़िलाफ़
हम लोग मिलकर करने लगे थे शोरगुल
मेरे शाब्दिक हमले से
सकपका गया था पुलिसवाला
फिर तो जल्दी ही पुकारा गया था मेरा नाम
एक लंबे इन्तिजार के बाद आई थी मेरी बारी
मैं देख पा रहा था
उसका जालीदार चेहरा
लगभग अस्पष्ट-सा जाली के उस पार
जो था अपराधी,हत्यारा और जीजा
जो भोग रहा था उम्र कैद की सज़ा
रायपुर सेंट्रल जेल में
आज दिनभर की यही कमाई थी मेरी
आखिरकार अनचाहे ही सहीं
खुद को एक अच्छा भाई साबित कर दिया था।
— नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
9755852479