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  • अभिमान पर दोहे

    अभिमान पर दोहे

    प्रस्तुत हिंदी कविता ” अभिमान ” कवयित्री मनोरमा चंद्रा'रमा‘ के द्वारा दोहा — छंद में रची गई है। इस कविता में कवयित्री ने माया , धन वैभव की निस्सारता, जाति धर्म भेदभाव पर भी बात रखी है।

    अभिमान पर दोहे

    मन में निश्छलता रहे, छोड़ चलें अभिमान।
    श्रेष्ठ जीत के भ्रम पड़े, खोना मत पहचान।।

    माया है अति व्यापनी, क्षणभंगुर संसार।
    रहें दूर अभिमान से, हो जीवन उजियार।।

    दंभ करे इंसान तो, कहे घमंडी लोग।
    ऐसे तुम बनना नहीं, एक बड़ा यह रोग।।

    जग में कुछ लाया नहीं, जता नहीं अधिकार।
    गर्व भावना से परे, सभ्य बनो तुम नार।।

    घर खाली अभिमान से, कुपित करे इंसान।
    द्वेष रखें मन में नहीं, घातक बड़े गुमान।।

    नित्य बचें अभिमान से, धैर्य धरें अति नेक।
    अहंकार में जो पड़े, खोता सदा विवेक।।

    अभिमानी को देखकर, मुँह लेना नित मोड़।
    संगत में पड़ना नहीं, उससे नाता तोड़।।

    धन-वैभव में पड़ सदा, करना नहीं घमंड।
    समय साथ नित जाग लें, मिलती खुशी प्रचंड।।

    सब तन इष्ट प्रकाश सम, फिर कैसा अभिमान?
    जाति-धर्म सब भेद तज, जन-जन एक सुजान।।

    बनकर प्रबुद्ध चल सदा, रहें सदा संज्ञान।
    कहे रमा ये सर्वदा, त्याग व्यर्थ अभिमान।।

    *~ डॉ. मनोरमा चन्द्रा 'रमा'* *रायपुर (छ.ग.)*