
मच्छर पर कविता /पद्म मुख पंडा
मच्छर पर कविता/ पद्म मुख पंडा ये मच्छर भी? न दिन देखते, न रात,ये आवारा मच्छर,करते हैं, आघात मुंह से,जहरीले तरल पदार्थ,मानव शरीर के अंदर,डालकर, चंपत हो जाते हैं!होती है खुजली,होकर परेशान , आदमी लेता है संज्ञान,मॉस्किटो क्वाइल जलाकर,आश्वस्त हो…