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यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर० सुशीला जोशी के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • पानी के रूप

     पानी के रूप

    sagar
    sagar

    धरती का जब मन टूटा तो 
    झरना बन कर फूटा पानी 
    हृदय हिमालय का पिघला जब 
    नदिया बन कर बहता पानी ।।

    पेट की आग बुझावन हेतु 
    टप टप मेहनत टपका पानी 
    उर में दर्द  समाया जब जब 
    आँसू बन कर बहता पानी ।।

    सूरज की गर्मी से उड़ कर 
    भाप बना बन रहता पानी 
    एक जगह यदि बन्ध जाए तो 
    गगन मेघ रचता है पानी ।।

    धूल कणों से घर्षण करके 
    वर्षा बन कर गिरता पानी 
    धरती पर कलकल सा बह कर 
    सबकी प्यास बुझाता पानी ।।

    धरती के भीतर से आ कर 
    चारों ओर फैलता  पानी 
    कहीं झील कहीं बना समंदर 
    सुंदर धरा बनाता पानी ।।

    अपनी उदार वृत्ति से देखो 
    सबको जीवित रखता पानी 
    कहीं बखेरी हरियाली तो 
    अन्न अरु फूल उगाता पानी ।।

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    सुशीला जोशी 

    मुजफ्फरनगर

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  • अंतरतम पीड़ा जागी

    अंतरतम पीड़ा जागी

    खोया स्वत्व दिवा ने अपना
    अंतरतम पीड़ा जागी
    घूँघट हैं छुपाये तब तब ही
    धडकन में व्रीडा जागी ।


    अधर कपोल अबीर भरे से
    सस्मित हास् लुटाती सी
    सतरंगी सी चुनर ओढ़े
    द्वन्द विरोध मिटाती सी
    थाम हाथ  साजन के कर में
    सकुचाती अलबेली सी
    सिहर ठिठक जब पॉव बढ़ा
    तो ठाड़ी रही नवेली सी


    आई मन मे छायी तन में
    सकुच ठिठक सब बंध गए
    हुआ गगन स्वर्णिम आरक्तिक
    खग कलरव निर्द्वन्द गए
    चपल चमक चपला सी मन मे
    मेरे मन को रोक लिया
    कैसे करूँ अभिसार सखी मैं
    उसने मुझको टोक दिया ।


    सुशीला जोशी
    मुजफ्फरनगर