आज यह कैसी घड़ी
भीड़ अब आगे बढ़ी, स्वार्थ में खूब अड़ीतंत्र हो गया घायल, आज यह कैसी घड़ी। कौन चोर कौन चौकीदार, पता नहीं चले यहाँअपनों के बीच खड़ी दुनिया, लगती कुटिल है यहाँभोले- भाले भूखे- प्यासे, बेघर हो घूमें जहाँआँखों में आँसू हैं उनके, हाय अब जाएँ कहाँ नीति भी सिर पर चढ़ी, हाथ में जादू- छड़ीकहीं … Read more