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यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर०उपमेंद्र सक्सेनाके हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .
आज यह कैसी घड़ी
भीड़ अब आगे बढ़ी, स्वार्थ में खूब अड़ी
तंत्र हो गया घायल, आज यह कैसी घड़ी।
कौन चोर कौन चौकीदार, पता नहीं चले यहाँ
अपनों के बीच खड़ी दुनिया, लगती कुटिल है यहाँ
भोले- भाले भूखे- प्यासे, बेघर हो घूमें जहाँ
आँखों में आँसू हैं उनके, हाय अब जाएँ कहाँ
नीति भी सिर पर चढ़ी, हाथ में जादू- छड़ी
कहीं बज रही पायल, कहीं रोए हथकड़ी।
भीड़ अब आगे बढ़ी……..
सत्ता के लिए बेचैन जो, जेब हों भरते जहाँ
भक्षक हैं बने- ठने रक्षक, किसकी कहें हम यहाँ
माफिया भी साथ हों जिसके,जीत हो उसकी वहाँ
अपनों से हार जो गए हैं, आँसू पिएंगे यहाँ
भावना इतनी पढ़ी, आस्था पीछे पड़ी
जो है उसका कायल, उससे ही आँख लड़ी।
भीड़ अब आगे बढ़ी…….
आसाराम बापू की तरह, गुरू मिलते हों जहाँ
अपनी आस्तीन में ही जब, साँप पलते हों जहाँ
कैसे कोई सीधा- सादा, इनसे बचेगा यहाँ
एक बार चँगुल में फँसकर, रोता रहेगा यहाँ
सजी- सँवरी है मढ़ी, जुड़ी सत्ता से कड़ी
संयासी भी रॉयल, छड़ी रत्नों से जड़ी।
भीड़ अब आगे बढ़ी……..
रचनाकार- उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
‘कुमुद -निवास’
बरेली (उत्तर प्रदेश)पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की जयंती पर कविता – उपमेंद्र सक्सेना
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की जयंती पर कविता
दिखा गए जो मार्ग यहाँ वे, उसको सब अपनाएँ
दीनदयाल उपाध्याय जी को हम भुला न पाएँ।
सन् उन्निस सौ सोलह में पच्चीस सितंबर आई
नगला चंद्रभान मथुरा में, खुशियाँ गईं मनाई
पिता भगवती प्रसाद जी माता बनीं राम प्यारी
उठा पिता का साया फिर थी, संघर्षों की बारी
वे मेधावी छात्र रहे थे, किसे नहीं वे भाएँ
दीनदयाल उपाध्याय जी को हम भुला न पाएँ।
संघ- प्रचारक बनकर अपना, जीवन किया समर्पित
उनके कारण ही भारत में, मानवता है गर्वित
जोड़ दिया एकात्म बने वे मानववाद प्रणेता
बाधाओं का किया सामना, बनकर रहे विजेता
उनकी लिखी हुई रचनाएँ, जन-मानस में छाएँ
दीन दयाल उपाध्याय जी को हम भुला न पाएँ।
जनसंघी नेता थे जाने-माने रहे विचारक
बने यहाँ अध्यक्ष पार्टी के सच्चे उद्धारक
पत्रकार थे श्रेष्ठ और अद्भुत चिंतन था उनका
था इतना व्यवहार मधुर वे हर लेते मन सबका
भारत माता के सपूत वे, जो सद्भाव जगाएँ
दीन दयाल उपाध्याय जी को हम भुला न पाएँ।
रचनाकार -उपमेंद्र सक्सेना एड.
‘कुमुद- निवास’
बरेली (उ.प्र.)
मोबा. नं.- 98379 44187हिंदी की है अद्भुत महिमा – उपमेंद्र सक्सेना
हिंदी की है अद्भुत महिमा
हिंदी की है अद्भुत महिमा
गीत-उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
जिसको जीवन में अपनाया, उसपर हम होते बलिहारी
हिंदी की है अद्भुत महिमा, यह हमको प्राणों से प्यारी।
हिंदी का गुणगान करें हम, हिंदी के गीतों को गाएँ
हिंदी की मीठी बोली से, सबके मन को अब हम भाएँ
सदा फले- फूले यह भाषा, लगती है यह हमको न्यारी
हिंदी की है अद्भुत महिमा, यह हमको प्राणों से प्यारी।
हिंदी को जो लोग यहाँ पर, कभी न देखें निम्न दृष्टि से
स्वयं देव करते हैं स्वागत, मानो उनका पुष्प- वृष्टि से
बनी आज जन-जन की भाषा, सदा जन्म से रही हमारी
हिंदी की है अद्भुत महिमा, यह हमको प्राणों से प्यारी।
हिंदी में सब काम करें हम, बच्चों को हिंदी पढ़वाएँ
सोने में तब लगे सुहागा, जब वे खुद आगे बढ़ जाएँ
हीन भावना कभी न आए, इतनी आज करें तैयारी
हिंदी की है अद्भुत महिमा, यह हमको प्राणों से प्यारी।
बाबा-दादी, नाना- नानी, से हम सुनते रहे कहानी
हिंदी ने ऐसा रस घोला, याद हुईं वे हमें जुबानी
करते बातें बहुत प्रेम से, हिंदी में इतने नर- नारी
हिंदी की है अद्भुत महिमा, यह हमको प्राणों से प्यारी।
रचनाकार- उपमेंद्र सक्सेना एड.
‘कुमुद- निवास’
बरेली( उ०प्र०)
मोबा.- 98379 44187
( आकाशवाणी, बरेली से प्रसारित रचना- सर्वाधिकार सुरक्षित)हिंदी छा जाए दुनिया में – उपमेंद्र सक्सेना
हिंदी छा जाए दुनिया में
गीत-उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
जिससे हैं हम जुड़े जन्म से, वही हमारी प्यारी भाषा,
हिंदी छा जाए दुनिया में, पूरी हो अपनी अभिलाषा।
अपनी भाषा के हित में हम, अपना जीवन करें समर्पित
जितनी उन्नति होगी इसकी, उतने ही हम होंगे गर्वित
बच्चे हिंदी पढ़ें-लिखें जब, बदले जीवन की परिभाषा
हिंदी छा जाए दुनिया में, पूरी हो अपनी अभिलाषा।
अब अभियान चले कुछ ऐसा, लोग यहाँ पर कभी न भटकें
किसी दूसरी भाषा में क्यों, फँसकर उच्चारण में अटकें
करें विचार प्रकट हम जो भी, उसमें आए नहीं कुहासा
हिंदी छा जाए दुनिया में, पूरी हो अपनी अभिलाषा।
होता सही माध्यम है वह, जिससे अपनेपन का नाता
जब संपर्क नहीं हो इससे, जीवन फिर बोझिल हो जाता
जो स्वाभाविक लगे न उससे, मिलती केवल यहाँ दिलासा
हिंदी छा जाए दुनिया में, पूरी हो अपनी अभिलाषा।
नहीं विरोध किसी भाषा से, अपनी बात हमें है कहना
सुनते और समझते उसको, जहाँ हमें पड़ता है रहना
लिखा गया साहित्य यहाँ जो, पैदा करता है जिज्ञासा
हिंदी छा जाए दुनिया में, पूरी हो अपनी अभिलाषा।
रचनाकार -उपमेंद्र सक्सेना एड.
‘कुमुद- निवास’
बरेली (उ.प्र.)चिकित्सक/ डाक्टर दिवस पर हिंदी कविता
चिकित्सक/ डाक्टर दिवस पर हिंदी कविता
चिकित्सक
हिय में सेवा भावना, नहीं किसी से बैर।
स्वास्थ्य सभी का ठीक हो, त्याग दिए सुख सैर।।
नित्य चिकित्सक कर्म रत, करे नहीं आराम।
लड़ते अंतिम श्वांस तक,चाहे सबकी खैर।।कठिन परीक्षा पास कर, बने चिकित्सक देख।
धरती के भगवान है, बदले किस्मत रेख।।
आओ हम सम्मान दे, उनको मिलकर आज।
उठा शुभम कर लेखनी, लिख दो सुन्दर लेख।।नित्य किताबों में गडे़ , करते हैं नव खोज।
ढूँढे रोग निदान वह, त्यागे छप्पन भोज।।
पल भर की फुरसत नहीं, तज के घर परिवार।
नस-नस में ऊर्जा भरे, ऐसा उनका ओज।।नीरामणी श्रीवास नियति
कसडोल छत्तीसगढ़काम डॉक्टर साहब आएँ
जीवन में आखिर कब तक हम, बोलो स्वस्थ यहाँ रह पाएँ
बीमारी से पीड़ित हों तो, काम डॉक्टर साहब आएँ।मानव तन इतना कोमल है, देता है सबको लाचारी
तरह -तरह के रोगों से अब, घिरे हुए कितने नर- नारी
बेचैनी जब बढ़ जाती है, रात कटे तब जगकर सारी
बोझ लगे जीवन जब हमको, बने समस्या यह फिर भारीमौत खड़ी जब लगे सामने, तब दिन में तारे दिख जाएँ
बीमारी से पीड़ित हों तो, काम डॉक्टर साहब आएँ।अपनी भूख- प्यास को भूले, सेवा में दिन- रात लगे हैं
धन्य डॉक्टर साहब ऐसे, जन-जन के वे हुए सगे हैं
सचमुच देवदूत हैं वे अब, उन्हें देख यमदूत भगे हैं
मौत निकट जो समझ रहे, उनमें जीवन के भाव जगे हैंजिनके पास नहीं हो पैसा, उनका भी वे साथ निभाएँ
बीमारी से पीड़ित हों तो, काम डॉक्टर साहब आएँ।जीव-जंतुओं के इलाज में, लगे हुए उनको क्यों भूलें
पशु- पक्षी की सेवा करके, आज यहाँ वे मन को छू लें
जो भी हमसे जुड़े हुए हैं, उन्हें देखकर अब हम फूलें
आओ उनके साथ आज हम, सद्भावों का झूला झूलेंजिनके आगे लगे डॉक्टर, उनकी महिमा को हम गाएँ
बीमारी से पीड़ित हों तो, काम डॉक्टर साहब आएँ।रचनाकार- उपमेंद्र सक्सेना एड०
‘कुमुद- निवास’
बरेली (उ० प्र०)बिन चिकित्सक सब बेहाल
मानव कंपित, दुखी बहुत
आज हुआ वो खस्ताहाल,
मंदिर मस्जिद बंद हो गए
काम आ रहे हैं अस्पताल।हां मैं भी एक उपासक हूं
मानता हूं प्रभु का कमाल,
डॉक्टर उसकी श्रेष्ठ रचना,
काम कर रहे हैं बेमिसाल।मंदिर का ईश्वर संबल देता
डॉक्टर पहना रहे जयमाल,
स्वस्थ होकर घर आते बच्चे
मांए चूम रही है उनके गाल।मर्ज़ी तुम्हारी मानो ना मानो
बिन चिकित्सक सब बेहाल,
हर विपदा के सम्मुख खड़े हैंदेवकरण गंडास अरविन्द