रिश्ते पर कविता

रिश्ते पर कविता दर्द कागज़ पर बिखरता चला गयारिश्तों की तपिश से झुलसता चला गयाअपनों और बेगानों में उलझता चला गयादर्द कागज़ पर बिखरता चला गया कुछ अपने भी ऐसे थे जो बेगाने हो गए थेसामने फूल और पीछे खंजर लिए खड़े थेमै उनमें खुद को ढूंढता चला गयादर्द कागज़ पर बिखरता चला गया बहुत … Read more

विधवा पर कविता

विधवा पर कविता सफेद साड़ी में लिपटी विधवाआँसुओं के चादर में सिमटी विधवामनहूस कैसे हो सकती है भला अपने बच्चों को वह विधवारोज सबेरे जगाती हैउज्जवल भविष्य कीf करे कामनाप्रतिपल मेहनत करती हैसर्वप्रथम मुख देखे बच्चेसफलता की सीढ़ी चढ़ते हैंसमझ नहीं आता फिर भीमनहूस उसे क्यूँ कहते हैं बेटी के लिए ढूँढें वर वहशादी का … Read more

हमसफर पर कविता

हमसफर पर कविता सात फेरों से बंधे रिश्ते ही*हम सफर*नहीं होतेकई बार *हम* होते हुए भी*सफर* तय नहीं होते कई बार दूर रहकर भीदिल से दिल की डोर जुड़ जाती हैहर पल अपने पन काअहसास दे जाती हैकोई रूह के करीबरहकर भी दूर होता हैकोई दूर रहकर भीधड़कनों में धड़कता हैएक संरक्षण एक अहसासहोता है … Read more

दर्द कागज़ पर बिखरता चला गया

दर्द कागज़ पर बिखरता चला गया दर्द कागज़ पर बिखरता चला गयारिश्तों की तपिश से झुलसता चला गयाअपनों और बेगानों में उलझता चला गयादर्द कागज़ पर बिखरता चला गया कुछ अपने भी ऐसे थे जो बेगाने हो गए थेसामने फूल और पीछे खंजर लिए खड़े थेमै उनमें खुद को ढूंढता चला गयादर्द कागज़ पर बिखरता … Read more

वर्षा जैन “प्रखर- एक नया ख्वाब सजायें

एक नया ख्वाब सजायें सपने कभी सुनहले कभी धुंधले सेआँखों के रुपहले पर्दे पर चमकते सेबुन कर उम्मीदों के ताने बानेहम सजाते जाते हैं सपने सुहाने कनकनी होती है तासीर इनकीमुक्कमल नहीं होती हर तस्वीर जिनकीसपनों को नही मिल पाता आकारमन के गर्त में रहते हैं वो निराकार टूटते सपनों की तो बात ही छोड़िये … Read more