तरी हरी नाना मोर नरी हरी नाना रे सुवाना

तरी हरी नाना मोर नरी हरी नाना

तरी हरी नाना मोर नरी हरी नाना रे सुवाना।
पिया ला सुना देबे मोर गाना तरी हरी नाना।

बेर उथे फेर , बेरा जुड़ाथे,
रातके मोरे नीदियां उड़ाथे,
अतक मया, मय काबर करें
जतक करें ओतक तरसाथे।
डाहर बैरी के देखत सुवाना
जान डारिस सारा जमाना।
तरी हरी नाना मोर नरी हरी नाना रे सुवाना।

भेंट होय रटीघटी, मुच ले हासें।
धीरे धीरे आपन जाल मा फासें।
कोन जानी काय ,मंतर मारे
आवत कि भर जाए सांसें।
निरमोही के जोग बता सुवाना
कैसे डालिस मया के बाना।
तरी हरी नाना मोर नरी हरी नाना रे सुवाना।

मनीभाई नवरत्न

मनीभाई नवरत्न

यह काव्य रचना छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के बसना ब्लाक क्षेत्र के मनीभाई नवरत्न द्वारा रचित है। अभी आप कई ब्लॉग पर लेखन कर रहे हैं। आप कविता बहार के संस्थापक और संचालक भी है । अभी आप कविता बहार पब्लिकेशन में संपादन और पृष्ठीय साजसज्जा का दायित्व भी निभा रहे हैं । हाइकु मञ्जूषा, हाइकु की सुगंध ,छत्तीसगढ़ सम्पूर्ण दर्शन , चारू चिन्मय चोका आदि पुस्तकों में रचना प्रकाशित हो चुकी हैं।

This Post Has One Comment

  1. Chhavikant

    Bahut sundar Sir..

Leave a Reply