कैमरे पर कविता

कैमरे पर कविता

वे रहते हैं ब्लैकआउट कमरों में
वे हमें देखकर चलते है दांव
बंद होते हैं उनके दरवाज़े और किवाड़
हर बार हमारे साथ होता है खिलवाड़

हम देख नहीं पाते
कोई भी उनकी कारगुजारियां
कोई भी चालाकियां….

अब गए वो ज़माने
जब दीवारों के भी कान होते थे।

— नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
9755852479

Leave a Comment