CLICK & SUPPORT

वक़्त पर हमने अगर ख़ुद को संभाला होता

वक़्त पर हमने अगर ख़ुद को संभाला होता
ज़ीस्त में मेरी उजाला ही उजाला होता

दरकते रिश्तों में थोड़ी सी तो नमी होती
अपनी जुबान को जो हमने सम्हाला होता

तुमको भी ख़ौफेे – खुदा यार कहीं तो होता
काश ! रिश्तों को मोहब्बत से संभाला होता

दर- ब -दर ढूंढ़ रहा जिसको बशर पत्थर में
काश ! दिल में भी कहीं एक शिवाला होता

प्यार करने की सजा फिर न मिली होती गर
हमने सिक्का कोई क़िस्मत का उछाला होता

काश ! मालूम ये होता कि नहीं उल्फ़त है
कच्ची मिट्टी को संस्कारों में जो ढाला होता

लोग हँसते खुद पर जो निराले वो, अजय
काश ! इतना ही हसीं दिल भी हमारा होता

अजय ‘मुस्कान’

CLICK & SUPPORT

You might also like