यह समय है सोच का-मधुसिंघी

यह समय है सोच का

भाग रहा मानव से मानव , डर समाया मौत का।
कोरोना वायरस ले आया , एक साया खौफ का।।
मनु पड़ गया उलझन में , कैसे बचूँ इस विपदा से।
भीड़ में हुआ अकेला , विश्वास नहीं है और का।।

प्रकृति पर हो गया हावी , सोचा यह तो मुट्ठी में।
चाँद पर घूम आयेंगें , हम तो अगली छुट्टी में।।
कर ली तमन्नाएं अब बहुत , चाँद-तारे छूने की।
यू टर्न घूम जाओ अब , रास्ता आया है मोड़ का।।

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जता ही दिया प्रकृति ने , तुम अभी भी कच्चे हो।
मत भूलो इस बात को , तुम धरती माँ के बच्चे हो।।
अपनी माँ के संग रहो , हवा में ज्यादा नहीं उड़ो ।
देखो आज इस प्रकृति ने , दिया है झटका जोर का।।

नित नये प्रयोग कर तुम , करते रहे हो तहस नहस।
ऋषि मुनियों के ज्ञान पर , भी करते हो सदा बहस।
लालसाओं पर रोक लगे , सीमित साधनों में रहो।
बैठकर करो घर में चिंतन , यह समय है सोच का।।

मधुसिंघी
नागपुर (महाराष्ट्र)

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