जात-पात पर दोहे

जात-पात पर दोहे

जात-पात के रोग से, ग्रस्त है सारा देश|
भेद-भाव ने है दला, यहाँ पर वर्ग विशेष||

जात-पात के जहर से, करके बंटा-धार|
मरघट-पनघट अलग हैं, करते नहीं विचार||

जात-पात के भेद में, नित के नए प्रपंच|
जात मुताबिक संगठन, जात मुताबिक मंच||

जात-पात है भयावह, जात भयानक रोग|
करें नहीं उपचार क्यों, झेल रहे हैं लोग||

जात-पात को झेल कर, पीया कड़वा घूंट|
चैन छीन लिया तन का, लिया मान है लूट||

जात-पात के कीच में, सने सभी नर-नार|
प्रदूषित हुए कीच से, सभी बू रहे मार||

जात-पात के भेद से, स्वयं को ले उबार|
कहे सिल्ला विनोद तब, होगी मौज-बहार||

-विनोद सिल्ला©

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