महिला दिवस पर दोहा छंद / डॉ. मनोरमा चन्द्रा ‘रमा’
सृष्टि सृजन में है सदा, नारी का अनुदान।
पुरुष बराबर कर्म कर, बनी देश की शान।।
नारी देवी तुल्य है, ममता की भंडार।
सदा संघर्ष कर रही, माने कभी न हार।।
निज के पोषण के लिए, करती बाहर काज।
अपने फर्ज निभा रही, गृहणी बनकर आज।।
हर घर नारी रूप है, सदा करें सत्कार।
अधर सजे मुस्कान से, सुखी रहे परिवार।।
नारी मन को झाँकिये, सहज भाव का खान।
प्रेम समर्पण से भरी, उसका गुण पहचान।।
बच्चों का जीवन गढ़े, देती स्नेह दुलार।
उसकी आँचल छाँव में, करुणा मिले अपार।।
अपने गौरव के लिए, उतरे वो मैदान।
जीवन में हारे नहीं, नारी शक्ति सुजान।।
नर नारी के भेद में, भटक रहा संसार।
दोनों को सम जानिए, एक ईष्ट के नार।।
प्रीत रीत से है बँधा, उसका धैर्य स्वभाव।
सबको अपना मानकर, रखती नेह लगाव।।
जहाँ मान नारी मिले, वो घर सभ्य महान।
कहे रमा ये सर्वदा, हो नारी सम्मान।।
*~ डॉ. मनोरमा चन्द्रा ‘रमा’*
*रायपुर (छ.ग.)*

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