तुम्ही हो माता, पिता तुम्ही हो
तुम्ही हो माता, पिता तुम्ही हो, तुम्ही हो बंधु, सखा तुम्ही हो ।
तुम्ही हो माता, पिता तुम्ही हो, तुम्ही हो बंधु, सखा तुम्ही हो ।
तुम्ही हो साथी, तुम्ही सहारे, कोई न अपना, सिवा तुम्हारे ।
तुम्ही हो साथी, तुम्ही सहारे, कोई न अपना सिवा तुम्हारे ||
तुम्ही हो नैया, तुम्ही खिवैया, तुम्ही हो बंधु, सखा तुम्ही हो।
तुम्ही हो माता, पिता तुम्ही हो, तुम्ही हो बंधु, सखा तुम्ही हो ।
जो खिल सके न, वो फूल हम हैं, तुम्हारे चरणों की, धूल हम हैं।
जो खिल सके न, वो फूल हम हैं, तुम्हारे चरणों की, धूल हम हैं।
दया की दृष्टि सदा ही रखना, तुम्ही हो बंधु, सखा तुम्ही हो ।
तुम्ही हो माता, पिता तुम्ही हो, तुम्ही हो बंधु, सखा तुम्ही हो ॥
वन्दना के इन स्वरों में
0 सोहनलाल द्विवेदी
वंदना के इन स्वरों में.
एक स्वर मेरा मिला लो।
वंदिनी माँ को न भूलो,
राग में जब मत्त झूलो।
अर्चना के रत्न-कण में,
एक कण मेरा मिला लो ।
जब हृदय का तार बोलें,
श्रृंखला के बंध खोलें।
हों बलि जहाँ शीश अगणित,
एक सिर मेला मिला लो।
इतनी शक्ति हमें देना
इतनो शक्ति हमें देना दाता,
मन का विश्वास कमजोर हो ना।
हम चलें नेक रस्ते पे हमसे,
भूलकर भी कोई भूल हो ना ।।
हर तरफ जुल्म है, बेबसी है,
खोया-खोया सा हर आदमी है।
पाप का बोझ बढ़ता ही जाए,
जाने कैसे यह धरती थमी है।
बोझ ममता का तू ये उठा ले,
तेरी रचना का ही अंत हो ना ।। हम चलें…
दूर अज्ञान के हों अँधेरे ।
तू हमें ध्यान का ज्ञान देना ।
हर बुराई से बचते रहें हम,
जितनी भी दें भली जिंदगी दें।
बैर हो ना किसी से किसी का,
भावना मन में बदले की हो ना ॥ हम चलें…
इतनी शक्ति हमें देना दाता,
मन का विश्वास कमजोर हो ना ॥
दया करो हे दयालु
● पं. राधेश्याम कथावाचक
शरण में आए हैं हम तुम्हारी,
दया करो हे दयालु भगवन् !
सम्हालो बिगड़ी दशा हमारी।
दया करो हे दयालु भगवन् ॥
न हममें बल है न हम में शक्ति,
न हममें साधन न हम में भक्ति ।
तुम्हारे दर के हैं हम भिखारी,
दया करो हे दयालु भगवन् ।
शरण में…
जो जो तुम तुम हो स्वामी तो हम हैं सेवक,
पिता हो तो हम हैं बालक ।
जो तुम हो ठाकुर तो हम पुजारी,
दया करो हे दयालु भगवन् ॥
शरण में….
सुना है हम अंश ही हैं तुम्हारे,
तुम्हीं हो सच्चे प्रभू हमारे ।
कहो तो, तुमने क्यों सुधि बिसारी,
दया करो हे दयालु भगवन् ॥
शरण में….
प्रदान कर दो महान् शक्ति,
भरो हमारे में ज्ञान भक्ति ।
तभी कहाओगे तापहारी,
दया करो हे दयालु भगवन् ॥
शरण में…
न होगी जब तक कृपा की दृष्टि,
न होगी जब तक दया की वृष्टि ।
न तुम भी तब तक हो न्यायकारी,
दया करो हे दयालु भगवन् ॥
हे शरण में…
हमें तो बस टेक ना की है,
पुकार बस ‘राधेश्याम’ की है।
तुम्हारी तुम जानो निर्विकारी,
दया करो हे दयालु भगवन् ॥
शरण में…..
स्वामी के शुचि चरण में
स्वामी के शुचि चरण-कमल में सादर शीश झुकाऊँ मैं।
दुखियों के संताप – हरणकी भक्ति विलक्षण पाऊँ मैं ।।
दो ऐसा वरदान दयामय, दीनों को अपनाऊँ मैं ।
सारा दुःख दुखियों का लेकर, उनका सुख बन जाऊँ मैं ।
अंधों की लकड़ी बनकर के, सूधे मार्ग चलाऊँ मैं ।
भटक रहें जो लक्ष्य भुलाकर, उनको पथ दिखलाऊँ मैं ।।
गुण समूह को प्रकट करूँ, अवगुण को सदा दुराऊँ मैं।
धागा बनूँ अंग निज देकर, सबके छिद्र छिपाऊँ मैं ।
प्रभु के निर्मल लीला-रस की सरस रागिनी गाऊँ मैं।
मुरझी हृदय-कुसुम-कलिका को पूर्णतया विकसाऊ मैं।
गत विश्वास संशयी पुरुषों का विश्वास बढ़ाऊ मैं ।
प्रभु की महिमा सुना-सुनाकर चरण शरण दिलवाऊँ मैं॥
प्रभु की प्रेम-अमिय- रसधारा उज्ज्वल अमल बहाऊँ मैं ।
काम स्वार्थ का मल धो, माँ धरती को सफल बनाऊँ मैं |