बिछोह पर कविता – मनीभाई”
रात भर मैं
सावन की झड़ी में
सुनता रहा
टपटप की आवाज
पानी की बूंदें।
बस खयाल रहा
अंतिम विदा
पिया के बिछोह में
गिरते अश्रु
गीले नैनों को मूंदे
पवन झोकें
सरसराहट सी
लगती मुझे
जैसे हो सिसकियां।
झरोखे तले
सारी घड़ियां चलें।
जल फुहारें
कंपकपी बिखेरे
भय दिखाती
अशुभ की कामना
मैं व मेरी कल्पना ।।
✍मनीभाई”नवरत्न”
७/८/२०१८ मंगल