चेहरे के लिए आईने क़ुर्बान किए हैं- राहत इंदौरी

राहत इंदौरी की अनसुनी ग़ज़ल : चेहरे के लिए आईने क़ुर्बान किए हैं

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राहत इंदौरी : चेहरे के लिए आईने क़ुर्बान किए हैं

चेहरों के लिए आईने क़ुर्बान किए हैं,
इस शौक़ में अपने कई नुक़्सान किए हैं

महफ़िल में मुझे गालियाँ देकर है बहुत ख़ुश,
जिस शख़्स प’ मैंने कई एहसान किए हैं

ख़्वाबों से निपटना है मुझे रतजगे करके,
कमबख़्त कई दिन से परीशान किए हैं

रिश्तों के, मरासिम के, मुहब्बत के, वफ़ा के,
कुछ शहर तो ख़ुद हम ने ही वीरान किए हैं

तू ख़ुद भी अगर आए तो ख़ुश्बू में नहा जाए,
हम घर को तिरे ज़िक्र से लोबान किए हैं

ऐ धड़कनो अब और ठिकाना कोई ढूँढो
हम दिल मे तो उस शख़्स को मेहमान किए हैं

  • राहत इंदौरी

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