रिश्ते नाते (कुण्डलिया )- माधुरी डडसेना
नाते गढ़ने के लिए , रचने पड़ते स्वांग ।
बार बार हैं जाँचते , कहता क्या पंचांग ।।
कहता क्या पंचाग , बनी उत्सुकता भारी ।
करते तिकड़म सर्व , कठिन करते तैयारी ।।
मुदिता भर मुस्कान , शून्य फल लेकर आते ।
कभी कहीं बन मीत , निभाते अपने नाते ।।
नाते देखे हैं बहुत , भरा कूट कर स्वार्थ ।
हुआ महाभारत यहाँ , कृष्ण कहे सुन पार्थ ।।
कृष्ण कहे सुन पार्थ , स्वार्थ ही करता अंधा ।
इसी सिद्धि के हेतु , मनुज मन रचता धंधा ।।
मुदिता भर मुस्कान , रिक्त ही सब हैं जाते ।
फिर कैसा संबंध , दिखावे के सब नाते ।।
नाते ऐसे बाँधिए , जैसे फूल सुगन्ध ।
महके दिल का आँगना , झरे प्रेम रस रन्ध ।।
झरे प्रेम रस रन्ध , स्वार्थ तज प्रीत बढ़ायें ।
अपनापन आभास , सदा यह रीत निभायें ।
मुदिता भर मुस्कान , चले फिर हँसते गाते ।
मधुर सुखद सम्बंध , यही हैं रिश्ते नाते ।।
माधुरी डड़सेना ” मुदिता ”
भखारा