मकर से ऋतुराज बसंत (दोहा छंद)-बाबू लाल शर्मा

मकर से ऋतुराज बसंत (दोहा छंद)-बाबू लाल शर्मा


सूरज जाए मकर में, तिल तिल बढ़ती धूप।
फसले सधवा नारि का, बढ़ता रूप स्वरूप।।
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पशुधन कीट पतंग भी, नवजीवन मम देश।
वन्य जीव पौधे सभी, कली खिले परिवेश।।
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तितली भँवरे मोर पिक, करते हैं मनुहार।
ऋतु बसंत के आगमन, स्वागत करते द्वार।।
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मानस बदले वसन ज्यों, द्रुम दल बदले पात।
ऋतु राजा जल्दी करो, बिगड़ी सुधरे बात।।
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शीत उतर राहत मिले ,होवें शुभ सब काज।
उम्मीदें ऋतुराज से, करते हैं सब आज।।
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ऋतु राजा भी आ रहे, अब तो आओ कंत।
विरहा के मनराज हो, मेरे मनज बसंत।।
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रथी उत्तरायण चला, अब तो प्रिय रविराज।
प्रिये मिलन को बावरी, पाती लिखती आज।।
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प्रियतम आओ तो प्रिये, ऋतु बसंत के साथ।
सत फेरों की याद कर, वैसे पकड़ें हाथ।।
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कंचन निपजे देश में, कनक विहग सम्मान।
चाँदी सी धरती तजी, परदेशी मिथ शान।।
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आजा प्रियतम देश में, खूब मने संक्रांति।
माटी अपने देश हित, मिटा पिया मन भ्रांति।।
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प्रीतम तिल तिल जोड़ती, लड्डू बनते आज!
बाँट निहारूँ साँवरे, तकूँ पंथ आवाज।।

© बाबू लाल शर्मा “बौहरा” , विज्ञ

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