एक खनकता गीत मेरा
पास बैठो और सुनो बस
एक खनकता गीत मेरा।।
जीवन समर बहुत है मुश्किल,
बाधाओं की हाट लगी है।
दुनिया रंग बिरंगी लेकिन,
होती देखी नहीं सगी है।
इसीलिए गाता अफसाने,
रूठ गया क्यों मीत मेरा।
एक खनकता गीत मेरा।।
मैं तो सच्चे मन का सेवक,
खूब समझता पीर पराई।
लेकिन दुनिया, दुनिया वाले,
सबने मेरी पीर बढ़ाई।
मैं भी भूलूँ इस दुनिया को,
तू भी सुन संगीत मेरा।
एक खनकता गीत मेरा।।
प्रीत करें तो नीति रीति से,
अपनेपन के भाव बिखेरे।
शाम सुनहरी, रात रुहानी,
खिले खिले हर रोज सवेरे।
इतनी ही बस चाहत थी यह,
जीवन जाता बीत मेरा।
एक खनकता गीत मेरा।।
पास बैठो और सुनो बस,
एक खनकता गीत मेरा….
एक खनकता……..।।
✍©
बाबू लाल शर्मा, बौहरा
सिकंदरा, दौसा,राजस्थान