दोषी पर कविता ( १६,१४ ताटंक छंद )
सामाजिक ताने बाने में,
पिसती सदा बेटियाँ क्यों?
हे परमेश्वर कारण क्या है,
लुटती सदा बेटियाँ क्यों?
मात पिता पद पूज्य बने हैं,
सुत को सीख सिखाते क्या?
जिनके सुत मर्यादा भूले,
पथ कर्तव्य बताते क्या?
दोष तनय का, यह तो तय है,
मात – पिता सच, दोषी है।
बेटों को सिर नाक चढ़ाया,
यही महा मदहोंशी है।
बेटी को दोयम दर्जा दे,
क्षीण बनाकर खेते हैं।
बेटों के फरमान सींच कर,
शेर बनाकर सेते हैं।
संतति के पालन पोषण में,
भेद भाव ही दोषी है।
जिनके औलाद निकम्मी है,
मात-पिता सच दोषी है।
दुष्कर्मी को दंड मिले पर,
यह तो बस मजबूरी है।
मात-पिता को सजा मिले,
यह अब बहुत जरूरी है।
बिटिया का सम्मान करें हम,
नैतिक, जिम्मेदारी है।
जाति धर्म से परे बेटियाँ,
तनया,नर-महतारी है।
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बाबू लाल शर्मा, बौहरा,