धरती को सरसा जाओ
कोयल केकी कीर सभी को,
फिर से अब हरषा जाओ।
उमड़-घुमड़ कर बरसो मेघा,
धरती को सरसा जाओ।
//1//
कोमल-कोमल पात वृक्ष को,
फिर से आज सजाएंगे।
भू में दादुर नभ में खगदल,
गीत प्रीति के गाएंगे।
हरित तृणों की ओढ़ चुनरिया,
धरती रूप संवारेगी।
कलिया भी भौरे के आगे,
अपना तन मन हारेगी।
रिमझिम-रिमझिम ले फुहार का,
रूप धरा में आ जाओ।
उमड़-घुमड़ कर बरसो मेघा,
धरती को सरसा जाओ।
//2//
माटी के सौंधी खुशबू से ,
महके भू से व्योम तलक।
जीव सभी हर्षित हो जाए,
मनुज रोम से रोम तलक ।
पुरवइया के मधुर झकोरें,
छू जाए अंतर्मन को ।
भीग-भीग कर इस अमृत में,
धन्य करें सब जीवन को ।
मन में छाप अमिट जो छोड़े,
सुधा वही बरसा जाओ।
उमड़-घुमड़ कर बरसो मेघा,
धरती को सरसा जाओ।
★★★★★★★★★
स्वरचित-©®
डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”
छत्तीसगढ़,भारत
मो. 8120587822