प्रकृति से खिलवाड़ का फल – महदीप जंघेल

प्रकृति से खिलवाड़ का फल -महदीप जंघेल

प्रकृति से खिलवाड़ का फल - महदीप जंघेल
हसदेव जंगल


विधा -कविता
(विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस)

बादल बरस रहा नही,
जल बिन नयन सून।
प्रकृति से खिलवाड़ का फल,
रूठ गया मानसून।

प्रकृति रूठ गई है हमसे,
ले रही ब्याज और सूत।
धरती दहक रही बिन जल,
सब मानवीय करतूत।

विकास की चाह में हमने,
न जाने कितने पर्वत ढहाए ?
जंगल,पर्वत का विनाश करके,
न जाने कितने सड़क बनाए ?



अनेको वृक्ष काटे हमने,
कई पहाड़ को फोड़ डाले।
सागर,सरिता,धरणी में दिए दखल,
प्रकृति के सारे नियम तोड़ डाले।

जीव-जंतु का नित आदर करें,
तब पर्यावरण संतुलित हो पाएगा।
गिरि,जल,वन,धरा का मान न हो ,
तो जग मिट्टी में मिल जायेगा।

आज प्यासी है धरती,
कल जलजला जरूर आएगा।
न सुधरे तो दुष्परिणाम हमे,
ईश्वर जरूर दिखलायेगा।


रचनाकार
महदीप जंघेल,खैरागढ़
राजनांदगांव(छग)

0 thoughts on “प्रकृति से खिलवाड़ का फल – महदीप जंघेल”

Leave a Comment