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मोहब्बत की कविता-कोई मेरी ओर नहीं है

मोहब्बत की कविता-कोई मेरी ओर नहीं है

गुलाब

फंसा इश्क के चक्रव्यूह में मिलता ठौर नहीं है
सभी विरोधी हुए आज कोई मेरी ओर नहीं है।।

नही किसी को दोष यहां मैं खुद ही गुनाहगार हूँ.
प्यार जताने चला बना नफरत का शिलाधार हूँ.

फलते फूलते उद्यानों की धीमी पड़ी बहार हूं.
सब दर्दों को छुपा लिया क्या उम्दा कलाकार हूं.

गम के अंधकार मे क्या नवउदिता भोर नहीं है
सारे विरोधी हुए आज कोई मेरी ओर नहीं है ।।

इश्क बहुत बेरहम हुआ दिल तंग हुआ आजमाने में.
उनमे भरा गुमान बहुत ये पता चला अफसाने में.

इतना भी कमजोर नही कि डर जाऊं प्यार जताने में.
अब मैं किससे डरूं हूँ पहले ही बदनाम जमाने में.

साबित क्यों कर रहे अमन इज्जत का दौर नहीं है.
सारे विरोधी हुए आज कोई मेरी ओर नहीं है ।।

मजबूरी मे फंसा समझ कुछ आता नही है मन में.
दर्द भरा है सीने मे और कंप पड़ गया तन में.

किस मोड़ पे खड़ी जिन्दगी मेरी वक्त बड़ा उलझन में.
इम्तिहान पर इम्तिहान मिल रहा हमें क्षण क्षण में.

थाम रखा है कहर अभी गर्दिश का शोर नहीं है
सारे विरोधी हुए आज कोई मेरी ओर नहीं है ।।


रचनाकार-
आर्यन सिंह यादव

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