रूह में समाया है
माना के उसके जिस्म को भी मैंने चाहा है
मगर उस से ज्यादा उसे रूह में समाया है l
ये सावन उसको भुलाने नहीं देता मुझको
बारिश में उसकी यादों के लम्हे ले आया है l
जब चाँद की चांदनी में निकलता हूँ घर से
मेरा साया भी लगता मुझे उसका साया है l
जब आँखों में मेरे समंदर आके ठहरा है
फिर भी क्यों दिल जैसे सदियों से प्यासा है l
क्यों हर बार की तरह तेरी कलम ने फौजी
दर्द में डूबे डूबे अल्फाजों को लिखवाया है ll
फौजी मुंडे सोहन लाल मुंडे