श्रीकृष्ण पर कविता – रेखराम साहू
महाव्याधि है मानवता पर, धरा-धेनु गुहराते हैं।
आरत भारत के जन-गण,हे कान्हा! टेरते लगाते हैं।।
चित्त भ्रमित संकीर्ण हुआ है,
हृदय हताहत जीर्ण हुआ है।
धर्मभूमि च्युतधर्म-कर्म क्यों,
अघ अधर्म अवतीर्ण हुआ है ।।
संस्कृति के शुभ सुमन सुगंधित शोकाकुल झर जताते हैं।
महाव्याधि मानवता पर है,धरा- धेनु गुहराते हैं।।
काल,काल-कटु कंस हुआ है,
तम-त्रिशूल विध्वंस हुआ है।
बंदी हैं वसुदेव,देवकी,
भय-भुजंग-विष-दंश हुआ है।।
त्राहि-त्राहि!त्रिपुरारि!याचना के स्वर व्यथा सुनाते हैं।
महाव्याधि मानवता पर है,धरा-धेनु गुहराते हैं।।
हर पद,हर-हरि भाद्रपदी हो,
शक्ति-भक्ति संयुक्त सदी हो।
पतित-पावनी,पाप-मोचिनी,
प्रेम-प्रीति की पुण्य नदी हो।।
जन्माष्टमी,यमी के तट,फिर-फिर हे कृष्ण!बुलाते हैं।
महाव्याधि मानवता पर है,धरा-धेनु गुहराते हैं।।
वज्रायुध टंकार रहे हैं,
प्रलय-मेघ ललकार रहे हैं ।
गिरधर!मीरा,गोपी राधा,
व्रज के प्राण पुकार रहे हैं ।।
तेरी वंशी के स्वर से ही प्रलय,सृजन बन जाते हैं ।
महाव्याधि मानवता पर है,धरा-धेनु गुहराते हैं।।
कृष्णवंत यौवन कर जाओ,
भीमार्जुनवत् मन कर जाओ।
पञ्चजन्य-गीता अनुनादित,
धरती-दिशा-गगन कर जाओ।।
युधिष्ठिर हो राष्ट्र-प्रेम- प्रण आराधन कर जाते हैं।
महाव्याधि मानवता पर है,धरा-धेनु गुहराते हैं।।
कर्मवीर,श्रमवीर यहाँ हों,
मृत्युञ्जय रणधीर यहाँ हों ।
ज्योति और ज्वाला नयनों में,
चिन्गारी हो नीर यहाँ हो ।।
कान्हा आना इन सब में,तेरे ये रूप सुहाते हैं ।
महाव्याधि मानवता पर है,धरा-धेनु गुहराते हैं ।।
रेखराम साहू (बिटकुला बिलासपुर छग )