वो कांधा ना दिखा – आदित्य मिश्रा
सब कहते हैं बहुत मजबूत हो
आंखे तुम्हारी बरसती ही नहीं।
मुस्कुराती हो हमेशा ही तुम
क्या गम से कभी गुजरी ही नहीं।
मैं खिलखिला जाती हूं
आंसू आंखों में छुपाती हूं।
कैसे कहूं उनसे अब मैं
रोना तो बहुत चाहा था मैंने
पर कोई मजबूत कांधा ना मिला।
पी ले मेरे आसुयों को कोई
ऐसा कोई शख्स ही ना दिखा।
तो बेवजह तुझे अपना दुख क्यों बताऊं
अपना जुलूस क्यों निकलवाऊं।
जब अपने गमों से खुद ही निपटना है
तो किस बात का रोना,धोना हैं ।
स्वरचित ✍️
साहित्यकार आदित्य मिश्रा
दक्षिणी दिल्ली,दिल्ली 9140628994