संविधान दिवस पर कविता
हां
मैं सेकुलर हूँ
समता का समर्थक हूँ
मैं संविधान प्रस्त हूँ
सेकुलर होना गुनाह नहीं
गुनाह है
सांप्रदायिक होना
गुनाह है
जातिवादी होना
गुनाह है
पितृसत्ता का
समर्थक होना
गुनाह है
भाषावादी होना
गुनाह है
क्षेत्रवादी होना
गुनाह है
भेदभाव का
पोषक होना।
-विनोद सिल्ला©