रक्षा बन्धन एक महत्वपूर्ण पर्व है। श्रावण पूर्णिमा के दिन बहनें अपने भाइयों को रक्षा सूत्र बांधती हैं। यह ‘रक्षासूत्र’ मात्र धागे का एक टुकड़ा नहीं होता है, बल्कि इसकी महिमा अपरम्पार होती है।
कहा जाता है कि एक बार युधिष्ठिर ने सांसारिक संकटों से मुक्ति के लिये भगवान कृष्ण से उपाय पूछा तो कृष्ण ने उन्हें इंद्र और इंद्राणी की कथा सुनायी। कथा यह है कि लगातार राक्षसों से हारने के बाद इंद्र को अपना अस्तित्व बचाना मुश्किल हो गया। तब इंद्राणी ने श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन विधिपूर्वक तैयार रक्षाकवच को इंद्र के दाहिने हाथ में बांध दिया। इस रक्षाकवच में इतना अधिक प्रताप था कि इंद्र युद्ध में विजयी हुए। तब से इस पर्व को मनाने की प्रथा चल पड़ी।
राखी चंदा पहुँच गई है….
पृथ्वी ने भेजी है राखी ,
चंदा तक पहुंचाने को ।
विक्रम-प्रज्ञान हैं बने संवदिया,
भाई-राखी बंधवाने को ।
राखी में भरकर है भेजा,
आठ-अरब का प्यारा- प्यार ।
इसरो ने उसको पहुँचाया ,
सोलह-बरस ,मेहनत का सार ।
भारत संग जहान यह सारा,
चंद्रयान पर गर्व करें ।
उज्ज्वल भविष्य ,चमकते सपने ,
जन-जन की आंखों में भरे ।
लघु को कमतर ना माना करते ,
व्यापक सोच के मानक पर ।
अंतरिक्ष असीम-अपरिमित,
पर होगा प्रज्ञान-असर ।
मानवता के कदम बढ़े हैं,
अंतरिक्ष में चांद की ओर ।
मंगल, शनि , शुक्र और सूर्य ,
छूना हर ब्रह्मांड का छोर ।
हाथ तिरंगा ,आँखों सपने,
विश्व-गुरु की कसौटी पर ।
छोटे-छोटे कदमों से चलकर ,
बने विश्व इक कुटुम्ब का घर ।
देशों के शामिल प्रयासों से ही,
नए गगन तक पहुंच बने ।
अंतरिक्ष की रक्षा भी हो,
चला कारवां ,ना कभी थमें ।
विविध-विविधता लेकर भारत,
भीम-जनतंत्र से एक बना ।
विश्व-परिवेश भी एक बने तो,
कैसा हो ये नेकसपना ?
हथियार-होड़ की हठ से हटकर,
नई राह को चुनना है ।
जहां मानव खुशहाल भविष्य हो,
संसार को ऐसा बुनना है ।
सहपृथ्वी, शताधिक बहनों ने,
प्यार अपना पहुँचाया है ।
चंदामामा वो जग के बन गए,
भारत-प्रज्ञान सरमाया है
सोलह-अरब आंखों के सपने,
भारत पर ही अब उम्मीद ।
राखी-चंदा पहुंच गई है ,
सूर्य-सर्वोदय, अब होंगे दीद ।
अमृत-महोत्सव ,’स्वर्ण-चिड़िया ‘ का,
खुले अंतरिक्ष में मनाएंगे ।
‘स्वाधीनता दिवस दो हजार सैंतालीस ‘
‘अजस्र’ सपने सजाएंगे ।
*डी कुमार-अजस्र(दुर्गेश मेघवाल, बून्दी/राज.)*