राजकिशोर धिरही की कविता “योग दिवस पर” योग के महत्व और उसके द्वारा मिलने वाले शारीरिक और मानसिक लाभों को उजागर करती है। यह कविता शोभन छंद में रची गई है, जो सरल और प्रवाहमयी है, ताकि पाठक इसे आसानी से समझ सकें और इसके संदेश को आत्मसात कर सकें।
योग दिवस / राजकिशोर धिरही
योग करते जो यहां पर,मस्त अनुभव भाय।
देह चंगा हो सदा ही,खूब जीवन पाय।।
जान लो आसन सभी को,फायदा कुछ होय।
है सरल व्यायाम करना,लाभ लेवत कोय।।
जान ले अनुलोम योगा,गोमुखासन जोर।
विश्व में फैले बहुत ही,देख हर पल शोर।।
पेट चर्बी कम करे हम,योग से यह काम।
ज्ञान प्राणायाम रख ले,ध्यान में रख नाम।।
(विधा-शोभन छंद)
राजकिशोर धिरही
तिलई,जांजगीर छत्तीसगढ़
योग दिवस पर कविता में कवि राजकिशोर धिरही ने योग के महत्व और लाभों को शोभन छंद के माध्यम से प्रस्तुत किया है। योग के नियमित अभ्यास से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है, और यह जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और खुशहाली का संचार करता है। कविता में सामूहिक रूप से योग करने का आह्वान किया गया है, जिससे समाज में एकता और स्वस्थ जीवनशैली का निर्माण हो सके। यह कविता पाठकों को योग के प्रति जागरूक करने और इसे अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाने के लिए प्रेरित करती है।