मैं कौन? मनीभाई नवरत्न

“मैं कौन?” मनी, तू पल-पल मरता है, इसीलिए तू कभी पूरी तरह मरता नहीं। पूरी तरह जीता नहीं। हर इच्छा, हर डर, हर उम्मीद — तेरी दीवारों पर नई दरारें छोड़ जाते हैं। तू भोग रहा है —  क्योंकि तू दुखी है।  तू चाहता है —  क्योंकि तू भीतर से सूना है। हर सुख की … Read more

चाह गई चिंता मिटी: एक प्रेरणादायक कविता

चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।जिनको कछु न चाहिए, वे साहन के साह॥ रहीम कहते हैं कि किसी चीज़ को पाने की लालसा जिसे नहीं है, उसे किसी प्रकार की चिंता नहीं हो सकती। जिसका मन इन तमाम चिंताओं से ऊपर उठ गया, किसी इच्छा के प्रति बेपरवाह हो गए, वही राजाओं के राजा हैं। … Read more

दीपोत्सव का आत्मप्रकाश

दीपोत्सव का आत्मप्रकाश(एक आध्यात्मिक कविता) हर वर्ष आता दीप पर्व, लाता रोशनी का संदेश,पर क्या जलाया अंतर्मन, या फिर दीप विशेष?भीतर झांको, पूछो खुद से, क्या बढ़ा है ज्ञान?या अब भी छाया है भीतर, अज्ञान का संधान? निरंतर आत्म-मूल्यांकन, यही है सच्ची दीवाली,हर क्षण खुद को देखो तुम, ना हो आंतरिक खाली।बाहर की चकाचौंध व्यर्थ … Read more

ब्रह्मचर्य का सत्य- मनीभाई नवरत्न

ब्रह्मचर्य का सत्य ब्रह्मचर्य कोई व्रत नहीं, न ही वस्त्र का नाम,यह तो है आत्मा की भाषा, अंतर का काम।निरंतर ध्यान की धारा, ना केवल संयम का रूप,यह तो है चेतना की चोटी, जहां मिले अनूप। कामनाओं के जाल में, जो न उलझे मन,वही तो ब्रह्मचारी है, पा गया जो अमन।नारी-पुरुष का भेद नहीं, आत्मा … Read more

स्वप्नों के पार -मनीभाई नवरत्न

स्वप्नों के पार सपनों की इस बगिया में, छिपा है एक रहस्य,नयन मूँदते ही खुलता, अंतरतम का दर्पण विशेष्य।जहाँ न कोई सीमा होती, न बंधन का नाम,केवल भाव बहते रहते, अंतर्मन की ध्वनि संग्राम।। चेतन की सीमाओं से, जब मन आगे जाए,अवचेतन की गहराई में, नयी दुनिया दिख जाए।वहाँ दबे हुए स्वप्नों का, होता है … Read more