हे दिवाकर तुम्हें प्रणाम
हे दिनकर ,दिवाकर,भानु,भास्कर,
हे आक,आदित्य,दिनेश,मित्र,,
हे सूर्य,अरुण,अंशुमालि,पतंग,
हे विहंगम,प्रभाकर तू मार्तण्ड,
इन्हीं ढेरों नाम में तेरा और है एक रवि नाम।
हे दिवाकर तुम्हें प्रणाम,
हे प्रभाकर तुम्हें प्रणाम ।।
इस श्रृष्टि में जब मेरा अस्तित्व नहीं था,हे मित्र।
जब से मैं अस्तित्व में आया देखु तेरा,साक्षात चित्र।
अद्भुत प्रकाश से दुनिया में उजाला करते हो,हे अंशुमालि।
संसार को अनुपम,अलौकिक करता है, तेरी लाली।
भोर की लालिमा देख विहंगम
माँग रहा दुनिया वरदान ।
हे दिवाकर तुम्हें प्रणाम ,
हे प्रभाकर तुम्हें प्रणाम ।।
तेरे हीं प्रकाश से होये श्रृष्टि में संचार,हे मन्दार।
गर तू अपना करवट बदल जो बदले, हो अंधकार ।
तुम दर्पण हो,तू दर्शन हो,हे आदित्य ।
तेरे बिना इस पृथ्वी पर मेरा नहीं कोइ औचित्य।
तू नहीं होते जो हे भानु, मेरी होती नहीं पहचान ।
हे दिवाकर तुम्हें प्रणाम, हे प्रभाकर तुम्हें प्रणाम।।
बाँके बिहारी बरबीगहीया